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पाकिस्तान का खटराग

राष्ट्र युद्ध लड़ते हैं और युद्ध की यादों को जीवित रखने के उपक्रम भी करते हैं. ज्यादातर सभ्य राष्ट्र ऐसी कोशिश के जरिये अपने नागरिकों और विश्व-बिरादरी को यह संदेश देना चाहते हैं कि युद्ध कोई भी हो, अपने आखिरी नतीजे में वह विध्वंस लानेवाला साबित होता है. इसलिए आपसी अमन ही मनुष्यता की रक्षा […]

राष्ट्र युद्ध लड़ते हैं और युद्ध की यादों को जीवित रखने के उपक्रम भी करते हैं. ज्यादातर सभ्य राष्ट्र ऐसी कोशिश के जरिये अपने नागरिकों और विश्व-बिरादरी को यह संदेश देना चाहते हैं कि युद्ध कोई भी हो, अपने आखिरी नतीजे में वह विध्वंस लानेवाला साबित होता है.
इसलिए आपसी अमन ही मनुष्यता की रक्षा का एकमात्र रास्ता है. सभ्य राष्ट्र जानते हैं कि युद्ध की यादों को हर वक्त सीने से लगाये रखना मृत्युपूजा सरीखी मनोविकृति है. लेकिन ढेर सारी विसंगतियों वाला देश पाकिस्तान इस मामले में भी बाकी राष्ट्रों से अलग हट कर है. वह युद्ध की अपनी यादों को जिलाये रखने की कोशिश करता है, ताकि दुनिया को बता सके कि वह जंग लड़ने को आमादा है. युद्ध को लेकर पाकिस्तानी मानस में मौजूद इसी मनोविकृति की सूचना है वहां की सेना के प्रमुख राहील शरीफ का भारत को खबरदार करते हुए यह बयान कि ‘दुश्मन छोटा हो या बड़ा, अगर उसने हमला किया, तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे.’
राहील शरीफ के ये बोल भारत-पाक युद्ध (1965) की पचासवीं बरसी पर रावलपिंडी में आयोजित कार्यक्रम में गूंजे यानी युद्ध की एक याद का इस्तेमाल अनागत एक और युद्ध की दुंदुभि बजाने के रूप में किया गया. पाकिस्तान ने अपने जन्म के साथ दुनिया के सामने अपना युद्धप्रेम जाहिर किया और कश्मीर के नाम पर भारत से लड़ाई छेड़ी और राहील शरीफ का बयान इस बात की मुनादी है कि उनका मुल्क आज के दिन तक अपनी इस मनोविकृति से उबर नहीं पाया है.
1947 के बाद से अब तक पाकिस्तान का खटराग एक ही रहा कि ‘कश्मीर हमारा है और भारत हमारा एकमात्र दुश्मन राष्ट्र’. इस खटराग को मौका देख कर कभी पाकिस्तान के जन-प्रतिनिधि दोहराते हैं और कभी सैन्य-प्रमुख. ये दोनों चुप रहें, तो इस खटराग को दोहराने का काम पाकिस्तानी जमीन पर कायम आतंकी जमातें करती हैं. हाल के दिनों में बलूचिस्तान में होनेवाले मानवाधिकार हनन से लेकर पाक अधिकृत गिलगित-बाल्तिस्तान तक पर भारत ने कड़ा रुख अपनाया और पाकिस्तान के सामने स्पष्ट किया है कि चीन को ग्वादर पोर्ट सौंप कर भारत को घेरने की उसकी कोशिश कामयाब नहीं होनेवाली. भारत के इस रुख के बाद से पाकिस्तान का युद्धराग कश्मीर-प्रेम के बहाने कुछ ज्यादा ही बजने लगा है.
कश्मीर से लगती नियंत्रण सीमा पर गोलीबारी, कश्मीर में तैनात फौजियों पर आतंकी हमले और राहील शरीफ का बयान इसी की बानगी है. दक्षिण एशिया में शांति कायम रखने के लिए बेहतर यही है कि पाकिस्तानी भड़कावे के आगे पूरी सतर्कता बरतते हुए अपने हितों और सीमाओं की रक्षा का काम भारत धैर्यपूर्वक करता रहे.

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