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सिंगूर से हासिल सबक
बीते एक दशक से पश्चिम बंगाल की राजनीति के केंद्र में रहे सिंगूर भूमि अधिग्रहण विवाद का पटाक्षेप हो गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने एक निजी कंपनी की औद्योगिक परियोजना के लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों से ली गयी जमीन को तुरंत वापस करने का आदेश दिया है. वर्ष 2006 में वाम मोरचे की तत्कालीन […]
बीते एक दशक से पश्चिम बंगाल की राजनीति के केंद्र में रहे सिंगूर भूमि अधिग्रहण विवाद का पटाक्षेप हो गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने एक निजी कंपनी की औद्योगिक परियोजना के लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों से ली गयी जमीन को तुरंत वापस करने का आदेश दिया है.
वर्ष 2006 में वाम मोरचे की तत्कालीन सरकार ने टाटा की नैनो कार फैक्टरी के लिए करीब हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था, लेकिन भारी विरोध के कारण दो साल बाद टाटा ने इस फैक्टरी को गुजरात स्थानांतरित कर दिया था. वर्ष 2011 में ममता सरकार ने अनिच्छुक किसानों की लगभग 400 एकड़ जमीन वापस करने का विधेयक विधानसभा से पारित किया था.
तब से यह मामला अदालत में था. इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जोर-जबरदस्ती से जमीन अधिगृहीत करने के सरकारी रवैये के खिलाफ संघर्षरत सिंगूर के किसानों की जीत तो है ही, सरकारों के लिए एक सबक भी है कि किसी भी परियोजना के लिए जमीन लेते समय कायदे-कानूनों और किसानों की सहमति का लिहाज करना चाहिए. सिंगूर प्रकरण वाम मोरचे के करीब साढ़े तीन दशकों के अबाध शासन को समाप्त करने में एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ था. देश के विभिन्न हिस्सों में औद्योगिक और विकास परियोजनाओं के लिए जमीन लेने में हो रही गड़बड़ियों के कारण ही नाराज किसानों को विरोध के लिए मजबूर होना पड़ता है. इसी विरोध का एक नतीजा हाल में देखने को मिला, जब केंद्र सरकार को भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लेना पड़ा.
वर्ष 2006 से 2013 के बीच विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसइजेड) के लिए ली गयी जमीन के 53 फीसदी से अधिक हिस्से पर कोई काम शुरू नहीं हुआ है. पिछले साल सीएजी की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि इस अवधि में अधिग्रहित 60,375 हेक्टेयर (करीब 600 वर्ग किलोमीटर) में से 31,886 हेक्टेयर जमीन खाली पड़ी हुई है.
बंगाल और उड़ीसा में लगभग 96 फीसदी, महाराष्ट्र में 70 फीसदी तथा गुजरात और आंध्र प्रदेश में 48 फीसदी जमीन बिना किसी उपयोग के पड़ी हुई है. छह राज्यों ने एसइजेड की 14 फीसदी जमीन को दूसरे वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की मंजूरी दे दी है. महाराष्ट्र सरकार खाली पड़ी जमीनों को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम से जुड़ी कंपनियों को देने पर विचार कर रही है.
गुजरात और राजस्थान ने नये अधिग्रहण विधेयक पारित करा लिया है. ऐसे समय में सिंगूर विवाद पर आये फैसले का सबक यही है कि विकास योजनाओं के लिए जरूरत भर ही जमीन ली जाये तथा अधिग्रहण किसानों की सहमति, पर्याप्त मुआवजे और पुनर्वास कार्यक्रम के साथ पारदर्शिता से किया जाये.
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