डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
एक दोस्त से मिलने उसकी कोठी पर गया था. दोस्त अमीर आदमी है. अमीर हो जाने के बाद भी, दोस्त भी है और आदमी भी, सुन कर हैरानी हो सकती है. क्योंकि अमीर हो जाने के बाद दोस्त होने की तो छोड़िए, आदमी रह पाना भी मुश्किल है. अमीर तो आदमी बनता ही आदमीयत छोड़ने के बाद है.
आदमीयत अमीरी की कैंची है, उसी तरह जैसे ‘उधार प्रेम की कैंची’ है, बल्कि उससे भी ज्यादा. उधार की कैंची से प्रेम अगर कटता है, तो बढ़ता भी है. कटने के कारण ही बढ़ता है, कलमी पौधे की तरह. बढ़ता ही नहीं, रह-रह कर उमड़ता भी रहता है. प्रेम की उस बाढ़ में उधार देनेवाला कभी-कभी उधार लेनेवाले को डुबा भी देता है, पर फिर फौरन उबार भी लेता है.
जब तक उधार वसूल नहीं हो जाता, तब तक पूरी तरह से डुबाये भी तो कैसे? उधर उधार लेनेवाला भी आसानी से उधार न चुका कर इस प्रेम-संबंध को प्रगाढ़ बनाये रखने में भरपूर योगदान करता है. इस तरह उधार तो प्रेम की कैंची ज्यादा नहीं है, पर आदमीयत अमीरी की पूरी कैंची है और अमीरी दोस्ती की.
फिर भी कुछ अमीर लोग किसी गरीब को दोस्त बनाये रखते हैं. इसलिए नहीं कि वक्त-जरूरत वे उस गरीब के काम आ सकें, बल्कि इसलिए कि वक्त-जरूरत वह गरीब ही उनके काम आ सके. उसे आगे कर वे दिखा सकें दुनिया को कि एक अदद सुदामा इस कृष्ण के पास भी है. अगर कभी चुनाव में खड़े होने का कोई मौका मिल जाये, तो उस गरीब दोस्त की बदौलत वोट मांगे जा सकें.
अमीर लोग कोठी में रहते हैं. मतलब जिसमें भी रहते हैं, उसे कोठी कहते हैं. कोठी के बड़े-से गेट पर एक तख्ती टंगी होती है, जिस पर एक कटखने-से कुत्ते की तसवीर बनी होती है, जिसे देख कर लगता है कि हो न हो, यह आगंतुक को तख्ती में से निकल कर ही काट लेगा.
जो इतने से नहीं डरते, उनके लिए एक तहरीर भी तख्ती पर लिखी होती है- ‘बिवेयर ऑफ डॉग’ यानी ‘कुत्ते से सावधान’. ज्यादातर लोग तो कोठी देख कर ही हतोत्साहित हो जाते हैं, कुछ कटखने कुत्ते की तसवीर देख कर और रहे-सहे ‘बिवेयर ऑफ डॉग’ पढ़ कर. पढ़ाई का और कोई फायदा हो या न हो, बंदा कुत्ते से सावधान तो हो ही जाता है. फिर इस संतोष के साथ खुद को कुत्ते से कटवा पाता है कि सावधान तो हो गया था.
दोस्त की कोठी पर भी अब तक ऐसी ही तख्ती लगी होती थी, पर अब वह बदल गयी थी. अब तख्ती पर कुत्ते की जगह एक गाय ने ले ली थी. तहरीर पर ‘बिवेयर ऑफ डॉग’ की जगह ‘बिवेयर ऑफ काऊ’ यानी ‘गाय से सावधान’ लिखा हुआ था.
पोर्च में खड़ी बीएमडब्ल्यू की नंबर-प्लेट पर भी अब बड़ा-सा ‘गोभक्त’ शब्द जगमगा रहा था. मैंने बेल बजायी, तो दरवाजा खोलनेवाले नौकर ने ‘नमस्ते’ के बजाय ‘जय गोमाता’ कह कर स्वागत किया. इतने में दोस्त भी आ गया. मैंने पूछा कि यह क्या माजरा है, तो बोला, यार कुत्ते से घर की सही रखवाली नहीं हो पा रही थी, इसलिए उसकी जगह मैंने एक गाय पाल ली है.
अब कोई आसपास भी नहीं फटकता, उलटे लोग मुझसे ही डरने लगे हैं. पड़ोसी बहुत बनता था, कल गोकशी के आरोप में ठुकवा दिया उसको. वह मुझे अपनी गो-विषयक उपलब्धियों और भावी योजनाओं के बारे में बता ही रहा था कि नौकर पेय लेकर आ गया. मैंने गिलास उठाया, तो उसकी तेज गंध से मुझे मितली-सी आने को हो गयी. मैंने फौरन गिलास वापस रख दिया और इससे पहले कि वे उसे जबरदस्ती मुझे पिलाते, वहां से बतौर मुहावरा, रस्सा तुड़ा कर भाग लिया.