7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अमेरिका से ऐतिहासिक करार

यह वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत और भूमिका का ही संकेत है कि अमेरिका ने इसे अपना प्रमुख रक्षा साझीदार बनाया है. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और उनके अमेरिकी समकक्ष एश्टन कार्टर के बीच वाशिंगटन में हुए समझौते- लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट- की अहमियत का अंदाजा इससे भी लग जाता है कि […]

यह वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत और भूमिका का ही संकेत है कि अमेरिका ने इसे अपना प्रमुख रक्षा साझीदार बनाया है. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और उनके अमेरिकी समकक्ष एश्टन कार्टर के बीच वाशिंगटन में हुए समझौते- लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट- की अहमियत का अंदाजा इससे भी लग जाता है कि अमेरिका ने जहां इसे भारत-अमेरिका संबंध के इतिहास में पिछले 50 वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया है, वहीं चीन इससे घबराया हुआ है.
इस समझौते के तहत दोनों देश अब एक-दूसरे के थल, वायु और नौसेना बेस, ईंधन आपूर्ति सुविधाओं और अन्य रक्षा साजो-सामान का इस्तेमाल कर सकेंगे. यह इस्तेमाल युद्ध के लिए न होकर, रक्षा अभ्यास, प्रशिक्षण, आपदा के दौरान मानवीय सहायता एवं राहत आदि जैसे कार्यों तक सीमित होगा. साथ ही सुविधा लेनेवाला देश इसके लिए न केवल पहले अनुमति लेगा, बल्कि भुगतान भी करेगा.
अमेरिका के साथ ऐसे समझौते के लिए भारत में करीब डेढ़ दशक से मंथन चल रहा था, लेकिन वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारें इस पर असमंजस में फंसी रही थीं. अब समझौता हो जाने के बाद कुछ दलों-संगठनों की ओर से व्यक्त की जा रही चिंताओं में फिलहाल ज्यादा दम इसलिए नजर नहीं आ रहा, क्योंकि 1971 में सोवियत संघ के साथ मैत्री समझौते के वक्त भी ऐसी चिंताएं व्यक्त की गयी थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में आतंकवाद से युद्ध और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट जैसे कई वैश्विक मसलों पर भारत और अमेरिका के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत के साथ हुए इस संभवत: आखिरी बड़े समझौते से उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच भरोसा भी बढ़ेगा. इस समझौते से चीन और पाकिस्तान इसीलिए भी तिलमिलाये हुए हैं, क्योंकि दोनों देश मिल कर न केवल भारत को घेरने का प्रयास करते रहे हैं, बल्कि आतंकवाद के मसले पर भी चीन पाकिस्तान का साथ देकर भारत की राह में रोड़े अटकता रहा है. अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फोर्ब्स’ ने लिखा है कि ‘चीन को काबू में रखने के लिए ओबामा प्रशासन के कार्यकाल का यह एक बेहद अहम समझौता है.
इससे भविष्य में भारत को चीन के सामने खड़े होने के लिए मजबूत आधार मिलेगा. हालांकि, इस समझौते से भारत और उसके भरोसेमंद सहयोगी रूस के रिश्तों में तनाव आ सकता है, लेकिन नरेंद्र मोदी को इसकी परवाह नहीं है.’ हालांकि हम उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री इस समझौते से रूस की संभावित नाराजगी को दूर करने में भी सफल होंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें