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चीनी पत्रकारों के बहाने पंगेबाजी

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी ‘शिनह्वा’ के तीन पत्रकारों की वीजा अवधि नहीं बढ़ा कर भारत ने उसके ‘इगो’ को आहत किया है. ये तीन पत्रकार हैं, शिनह्वा के दिल्ली ब्यूरो चीफ वू छियांग, मुंबई ब्यूरो के मुख्य संवाददाता थांग लू और संवाददाता मा कियांग. जुलाई 2016 के […]

पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी ‘शिनह्वा’ के तीन पत्रकारों की वीजा अवधि नहीं बढ़ा कर भारत ने उसके ‘इगो’ को आहत किया है. ये तीन पत्रकार हैं, शिनह्वा के दिल्ली ब्यूरो चीफ वू छियांग, मुंबई ब्यूरो के मुख्य संवाददाता थांग लू और संवाददाता मा कियांग. जुलाई 2016 के आखिर तक इन तीनों के स्थान पर पेइचिंग से दूसरे पत्रकारों को ज्वाॅइन करना था. शिनह्वा ने अनुरोध किया था कि जब तक चीन से नये लोग नहीं आ जाते, इन तीनों पत्रकारों के वीजा की अवधि बढ़ा दी जाये. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे स्वीकार नहीं किया.
बस इतनी सी बात को बतंगड़ बनानेवाले कुछ मीडियाकर्मियों ने कहानी बनायी कि भारत ने तीन चीनी पत्रकारों को ‘देश से निकाल’ दिया है. चीनी दैनिक ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने मिर्च से भरपूर तड़का मार कर संपादकीय लिखा कि एनएसजी की सदस्यता में भारत सरकार ने चीनी अवरोध का बदला लिया है. अगर यह बात है, तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. ग्लोबल टाइम्स के इस धमकीनुमा संपादकीय का शीर्षक है, ‘भारत की ओछी हरकत!’
यों, भारतीय विदेश मंत्रालय ने वीजा अवधि न बढ़ाने का कोई कारण नहीं दिया है. मगर ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने मीडिया में हुई चर्चा के हवाले से लिखा कि इन तीनों चीनी पत्रकारों ने छद्म नामों से दिल्ली, मुंबई के कुछ संस्थानों में घुसने, क्लासिफाइड दस्तावेज हासिल करने, व तिब्बत से निष्कासित लामाओं से मुलाकात करने की कोशिश की थी. संपादकीय में इन वजहों पर चर्चा के साथ टिप्पणी है कि भारत का दिमाग शक्की है, और वहां रह रहे दूसरे चीनियों को भी ऐसी दिक्कतों का सामना करते रहना पड़ता है.
‘ग्लोबल टाइम्स’ ऐसी टिप्पणी करके खुद ही स्वीकार कर रहा है कि चीनी पत्रकार भारत में जासूसी की नीयत से काम करते रहे हैं.
इसे कहते हैं, चोर की दाढ़ी में तिनका! यह शिनह्वा जैसी न्यूज एजेंसी की जिम्मेवारी है कि पेइचिंग से आनेवाले जिन पत्रकारों को भारत में ज्वाॅइन करना है, उनके लिए समय से पहले वीजा के वास्ते आवेदन करे. जो पहले से नियुक्त पत्रकार हैं, उनकी वीजा अवधि बढ़ाने के आवेदन के साथ, नये काॅन्ट्रेक्ट की काॅपी विदेश मंत्रालय को भेजी जाती है. विदेशी पत्रकारों के लिए ऐसा नियम दुनिया के सभी देशों में लागू है. चीनी पत्रकारों के लिए दिल्ली, मुंबई कोई खाला का घर तो है नहीं कि उनके लिए सारे नियम शिथिल कर दिये जायें.
यों, इस मामले में ‘शिनह्वा’ से अधिक पेट में मरोड़ ‘ग्लोबल टाइम्स’ को हुआ है. ग्लोबल टाइम्स जैसे भोंपू पत्रकारिता करनेवाले चीन की ऐसी छवि बना रहे होते हैं, गोया उनके देश में विदेशी पत्रकारों को दामाद की तरह सम्मान दिया जाता है. पेइचिंग स्थित ‘चाइना रेडियो इंटरनेशनल’ की हिंदी सेवा में एक वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं, विनोद चंदोला. जर्मनी के कोलोन, बाॅन में मेरे साथ काम कर चुके पुराने साथियों को याद है कि जर्मन रेडियो ‘डाॅयचेवेले’ के लिए किसी विवादित विषय के बारे में जानकारी देने से विनोद चंदोला कितना घबराते थे.
चीन में नियुक्त विदेशी पत्रकारों की किस तरह माॅनिटरिंग की जाती है, कैसे उनके साथ बदसुलूकी होती है, किस तरह वीजा निरस्त कर उन्हें देश निकाला किया जाता है, उसका ताजा उदाहरण 31 दिसंबर, 2015 को फ्रांसीसी पत्रकार उर्सुला गोथियर को बेइज्जत कर चीन से बाहर किये जाने की घटना है.
उसका विरोध पेइचिंग स्थित फाॅरेन काॅरेस्पोंडेंट क्लब आॅफ चाइना (एफसीसीसी) ने भी किया था. ‘एफसीसीसी’ ने 2014-15 में एक सर्वे करा कर जानकारी दी थी कि चीन में विदेशी पत्रकारों के लिए ‘वर्किंग कंडीशंस’ कहीं से भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं.
चीनी दूतावास ने विदेशी पत्रकारों के वास्ते 29 पेज की गाइडलाइन जारी कर रखी है. चीन में काम करनेवाले पत्रकारों के लिए ‘जे-वन’ और ‘जे-टू’ वीजा देने में जो मनमानी होती है, उसके किस्से निर्लज्जता से भरे होते हैं.
जापान के ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्हें वीजा आवेदन को दो वर्षों से अधिक तक लटकाये रखा गया. दिसंबर 2006 में 49 देशों के 320 मीडिया संस्थानों के 616 पत्रकार चीन में काम कर रहे थे. राष्ट्रपति शी चिनफिंग के आने के बाद यह संख्या 33 देशों के 160 पत्रकारों तक सिमट कर रह गयी है. राष्ट्रपति शी के शासन में चीन में चल रहे भ्रष्टाचार, दमन से दुनिया को अवगत कराने पर सख्ती है. शिंचियांग, तिब्बत, हांगकांग की सही तसवीर पेश करनेवाले विदेशी पत्रकारों की तो खैर नहीं!

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