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चांद दिखा क्या?

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार चांद का आदमी की जिंदगी में भारी महत्व है, चांद को पता हो न हो. बल्कि शायद उसे नहीं ही पता, क्योंकि एक फिल्मी गाने में बड़े दर्दभरे अंदाज में बताया गया है कि चांद को क्या मालूम, चाहता है उसे कोई चकोर. वैसे चकोर ही नहीं, कौवे और बाज […]

डॉ सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

चांद का आदमी की जिंदगी में भारी महत्व है, चांद को पता हो न हो. बल्कि शायद उसे नहीं ही पता, क्योंकि एक फिल्मी गाने में बड़े दर्दभरे अंदाज में बताया गया है कि चांद को क्या मालूम, चाहता है उसे कोई चकोर. वैसे चकोर ही नहीं, कौवे और बाज भी उसी की चाह रखते हैं. यहां तक कि चांद मिलने के इंतजार में जो खुद चांद हो गये हैं, यानी जिनके सिर पर चांद निकल आया है, वे भी अपने लिये चांद की ही मांग करते हैं.

पिछले दिनों एक परिचित से मिला, तो बातों-बातों में पता चला कि उन्हें हाल ही में पता चला था कि उनका लड़का शादी-लायक हो गया है.

यह पता चलने में उन्हें इतनी देर हो गयी थी कि थोड़ी देर और हो जाती, तो लड़का न तो लड़का रहता, न शादी-लायक. उन्होंने मुझसे उसके लिए कोई लड़की बताने को कहा. मैंने पूछा, कैसी लड़की चाहिए, तो बोले, कॉन्वेंट में पढ़ी हो, लड़का इंजीनियरिंग ग्रेजुएट है तो इतनी पढ़ी-लिखी तो हो ही, नौकरी करती हो, घर में एडजस्ट कर ले और चांद-सी सुंदर हो. मैंने कहा, ऐसी लड़की क्या लड़के में भी ये सब गुण नहीं चाहेगी?

सुन कर वे उखड़ गये. सभी लड़केवालों को लगता है कि लड़की या उसके घरवालों की तो कोई मांग होती ही नहीं. उनकी नजर में लड़कीवाले कितने ही अमीर हों, असल में भिखारी होते हैं और अगर उन्होंने अंगरेजी पढ़ी हो, तो उन्हें इस कहावत का पता ही होगा कि बैगर्स यानी भिखारी चयनकर्ता यानी चूजर्स नहीं होते.

चांद आदमी के जेहन पर इस कदर छाया हुआ है कि लड़कियां भी खुद को चांद समझा जाना पसंद करती हैं और इस मामले में औरतें भी पीछे नहीं. रामकली ने एक दिन अपनी पड़ोसिन को बताया कि अरी, पता है, बगल में रहनेवाले लड़के ने मुझे चांद कहा! वो कैसे- पड़ोसिन पूछा, तो रामकली ने बताया- कल शाम जब मैं अपनी लड़की के साथ घूम रही थी, तो लड़के ने मेरी लड़की को देखकर कहा- वो जा रहा चांद का टुकड़ा!

जो आदमी किसी चांद को अपना नहीं बना पाते, वे उसके बच्चों के चंदा मामा बन कर ही गुजारा कर लेते हैं.ये चंदा मामा अक्सर इतनी गहरी नींद में सोते हैं कि उन्हें यह कह कर जगाना पड़ता है कि सुबह हो गई मामू! मूर्ख बनाने को भी मामू बनाना कहते हैं और पागल होने को लूनेटिक, जो ‘लूना’ शब्द से बना है जिसका मतलब है चांद.

हमारे तीज-त्योहार भी चांद द्वारा संचालित होते हैं. इस चक्कर में कभी-कभी होली-दीवाली दो-दो दिन भी पड़ जाती हैं.

करवा चौथ का व्रत चांद देखने पर ही खुलता है. बैंक-कर्मी ईद की छुट्टी की फिक्र में बुधवार को इस तरह ‘चांद दिखा क्या?’ पूछते फिरे, मानो सबने करवा चौथ का व्रत रखा हुआ हो. बैंकों में हिंदू कर्मचारी ईद पर त्योहार-अग्रिम (त्योहार के अवसर पर मिलनेवाला बिना ब्याज का कर्ज) ले लेते हैं, तो मुसलमान कर्मचारी होली-दीवाली पर. इसमें किसी का धर्म आड़े नहीं आता. ईद भी चांद दिखने पर ही मनती है, जो अलग-अलग जगह अलग-अलग दिन दिखता है.

इस बार भी कहीं बुध को मनी ईद, तो कहीं बृहस्पत को. एक मुसलमान दोस्त ने फेसबुक पर सबको ईद की बधाई दी, पर चित्र ऐसा लगाया, जिसमें मुसलमान भाइयों को ही ईद की मुबारकबाद दी गयी थी. हमने कभी किसी त्योहार को धर्म-विशेष के त्योहार की तरह नहीं देखा, सबको अपना ही माना. अभी कुछ दिनों से ही पता चलने लगा है कि यह हिंदुओं का त्योहार है, यह मुसलमानों का. अलबत्ता त्योहार खुद नहीं जानता होगा कि उसका भी कोई धर्म है.

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