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‘बाबा’ स्वरेपानंद!
डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार ‘बा’ बड़ा प्यारा शब्द, या उपसर्ग वगैरह जो भी आप कहना चाहें, है. अदब के साथ जुड़ कर आदमी को आनन-फानन में बाअदब बना देता है. फिर वह बामुलाहिजा भी हो जाता है और होशियार तो फिर उसे होना ही पड़ता है. आबरू के साथ जुड़ कर उसे बाआबरू बना […]
डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
‘बा’ बड़ा प्यारा शब्द, या उपसर्ग वगैरह जो भी आप कहना चाहें, है. अदब के साथ जुड़ कर आदमी को आनन-फानन में बाअदब बना देता है. फिर वह बामुलाहिजा भी हो जाता है और होशियार तो फिर उसे होना ही पड़ता है.
आबरू के साथ जुड़ कर उसे बाआबरू बना देता है, यह अलग बात है कि आदमी को और उसमें भी शायर किस्म के आदमी को बेआबरू ही रहना भाता है, शायद इसलिए कि बेआबरू होकर किसी के भी कूचे से निकलने में आसानी रहती है. गालिब तक ने बड़े फख्र से बताया है कि वे एवें ही नहीं, बल्कि बड़े बेआबरू होकर किसी के कूचे से निकले थे.
ईमान के साथ जुड़ कर ‘बा’ आदमी को बाईमान भी बनाने की कोशिश करता है, हालांकि शायद बना नहीं पाता, क्योंकि बेईमान उस पर इतना भारी पड़ता है कि बाईमान कहीं देखने-सुनने में ही नहीं आता. बावफा होना भी आदमी को बहुत भारी पड़ता है, क्योंकि आजकल हर जगह बेवफा की ही पूछ है, यानी जो हमारे साथ तो बावफा रहे, पर हमारी ओर से दूसरों के साथ पूरी बेवफाई बरते. शायर को इसीलिए कहना पड़ा- हम बावफा थे इसलिए नजरों से गिर गये, शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी!
‘बा’ का ‘ई’ से भी गहरा ताल्लुक है. ‘ई’ के आगे जुड़ते ही वह इज्जतदार महिला का स्वरूप प्रस्तुत कर देता, जैसे लक्ष्मी बाई.
हालांकि आदमी ने औरत को किसी भी रूप में इज्जतदार रहने नहीं दिया और बाई को भी वेश्या बना छोड़ा. यही कारण है कि आज लक्ष्मी बाई से ज्यादा जलेबी बाई की इज्जत है. सब उसी से पूछते हैं, तू कौन देश से आयी? जवाब में वह आगा-पीछा सब हिला कर बताती है कि वह है-
जलेबी बाई!
‘ई’ ही नहीं, ‘ऊ’ से भी ‘बा’ अच्छा राबता रखता है. पंजाबी में बाऊ ‘बू’ से जुड़े ‘बा’ यानी बाबू के अर्थ में प्रयुक्त होता है.हालांकि, पहले-पहल जिसने भी बाबू शब्द का इस्तेमाल किया, काफी हीन अर्थ में किया. ‘बा’ यानी सहित और ‘बू’ यानी गंध, जिसका मतलब होता तो किसी भी तरह की गंध है, पर समझा दुर्गंध जाता है. बंगाली भाई मच्छी खाने के कारण एक खास तरह की बू का प्रसार करते रहते थे, जिसके कारण गैर-बंगालियों ने उन्हें बाबू यानी बदबूदार कह कर पुकारा. बंगालियों का बड़प्पन कहा जाये या कुछ और, कि उन्होंने इसे सगर्व अपनाया और उसके साथ महाशय को भी जोड़ कर बाबू मोशाय बन गये.
‘बू’ की तरह ही एक ‘पू’ भी होता है, जिसके साथ जुड़ कर ‘बा’ बापू यानी पिता का अर्थ देता है. महात्मा गांधी को लोग प्यार से बापू भी कहते थे. लेकिन जबसे आसाराम को भी बापू कहा जाने लगा, तब से बापू की सारी गरिमा घट गयी, बाप की तो पहले से ही घटी हुई थी.
‘बा’ दूसरों के साथ जुड़ कर सब अच्छा ही अच्छा करता है, पर खुद अपने यानी ‘बा’ के ही साथ जुड़ कर जुल्म ढा देता है. डबल ‘बा’ यानी बाबा आज हर तरह के अनाचार और दुराचार का पर्याय हो गया है.
बाबा बंगाली बन कर कहीं वह किसी को संतान दिलाने के लिए किसी और की संतान की बलि चढ़वा रहा है, तो कहीं महज गोलगप्पे खिला कर सस्ते में ही किरपा बरसा रहा है, जो बाद में बड़ी महंगी पड़ती है. लेकिन सबसे ज्यादा अंधेर वह औरतों को अंधेरे में रख कर उनके साथ दुराचार करके करता है. अभी हाल ही में सामने आये एक बाबा ने तो सुना है, स्वरूपानंद के बजाय स्वरेपानंद बन कर सौ से अधिक महिलाओं के साथ रेप किया. यह सेंचुरी बाबा पकड़ा गया है, पर सैंया भये कोतवाल, फिर डर काहे का? क्यांेकि बाबा तो फिर खुद कोतवालों का सैंया होता है.
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