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जन-भरोसे के दो वर्ष
किसी सरकार को किस आधार पर खरा-खोटा कहा जाये? सत्ता की बागडोर जिनके हाथों में होती है, वे शासन की खूबियां गिनाते नहीं थकते, जबकि जो सत्ता से बाहर हैं उन्हें सरकार में दोष ही दोष दिखता है! दोनों के पास अपने-अपने तर्क और आंकड़े होते हैं. आज शासन के दो साल पूरे कर रही […]
किसी सरकार को किस आधार पर खरा-खोटा कहा जाये? सत्ता की बागडोर जिनके हाथों में होती है, वे शासन की खूबियां गिनाते नहीं थकते, जबकि जो सत्ता से बाहर हैं उन्हें सरकार में दोष ही दोष दिखता है! दोनों के पास अपने-अपने तर्क और आंकड़े होते हैं.
आज शासन के दो साल पूरे कर रही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही है. सत्ता पक्ष जहां इन दो वर्षों में देश के विकास के लिए जवाबदेही के साथ उल्लेखनीय काम करने और भ्रष्टाचार मुक्त व पारदर्शी शासन देने के दावे कर रहा है, वहीं विपक्ष को लगता है कि सरकार गरीबों-बेरोजगारों से वादाखिलाफी करने के साथ-साथ हर मोरचे पर विफल रही है.
ऐसे में, दावों-प्रतिदावों के बीच यह तय कर पाना एक तरह से हिमालय लांघने जैसा ही काम है कि सरकार का काम कितना खरा रहा, कितना खोटा.
फिलहाल, राजनीतिक दावों-प्रतिदावों और आंकड़ों की बाजीगरी से परे जाकर गौर करें तो इन दो वर्षों में सबसे बड़ा बदलाव यह दिखा है कि देश अब ‘कुछ न होने’ की निराशा के भंवर से बाहर निकल चुका है.
‘पॉलिसी पैरालिसिस’ जैसे शब्द अब सुर्खियों से दूर हो चुके हैं और मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट सिटी, ग्राम उदय से भारत उदय, स्वच्छता अभियान, जन-धन योजना, फसल बीमा योजना, जन सुरक्षा योजना, मुद्रा योजना आदि जैसी अनेकानेक महत्वाकांक्षी एवं दूरगामी पहलों के साथ केंद्र सरकार हर क्षेत्र में कुछ नयी शुरुआत या कुछ बड़े बदलाव के इरादे से काम करती दिख रही है. डिजिटल इंडिया के तहत इंटरनेट के देशव्यापी विस्तार और जनहित से जुड़े सार्वजनिक कार्यों में सूचना तकनीक के अधिकतम उपयोग के जरिये जन-सुविधाओं तक आम लोगों की पहुंच आसान हुई है.
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम के तहत सब्सिडी का पैसा सीधे लोगों के बैंक खातों में पहुंचने से जन-कल्याण की योजनाओं में फर्जीवाड़ा कम हुआ है. स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसी पहलकदमियों से युवाओं का भविष्य संवरने की नयी उम्मीद जगी है. इसमें दो राय नहीं कि ऐसी दूरगामी योजनाओं की उपलब्धियों का आकलन करने के लिए दो साल का वक्त काफी कम है.
इसलिए इन दो वर्षों में निर्यात की रफ्तार थमने, अपेक्षा के अनुरूप रोजगार सृजन नहीं हो पाने, या राष्ट्रव्यापी सूखे के बीच ग्रामीण और खेतिहर भारत की मुश्किलें हल न हो पाने को लेकर विपक्ष की ओर से सरकार की आलोचना वक्ती ही कही जायेगी, क्योंकि ये चीजें वक्त के साथ सुधरती-बिगड़ती रही हैं. खेती और खेतिहरों को संकट से उबारने, युवाओं के लिए रोजगार को बढ़ावा देने आदि के लिए जो विशेष प्रावधान आम बजट में बताये गये हैं, उनके नतीजे धरातल पर दिखने में अभी वक्त लगना लाजिमी है.
हां, इन दो वर्षों में सामाजिक मोर्चे पर जरूर कुछ घटनाएं चिंता बढ़ानेवाली हुई हैं, जिनमें धार्मिक कट्टरता और सामाजिक भेदभाव से निपटने में नाकाम रहने के आरोप सरकार पर लगे हैं. कुछ चुनौतियां विदेश नीति के मोर्चे पर भी बरकरार हैं.
सत्ता पक्ष का दावा है कि प्रधानमंत्री की विदेश-यात्राओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का मान बढ़ा है, लेकिन जानकार बताते हैं कि न तो चीन अपनी पुरानी चालाकियों से बाज आया है और न ही पाकिस्तान की हरकतों पर अंकुश लगाने में भारत कामयाब हुआ है. उलटे पड़ोसी देश नेपाल के साथ हमारे पारंपरिक रिश्ते अब तक के सबसे खराब दौर में पहुंच गये हैं.
ऐसे में विभिन्न पहलों और चुनौतियों के बीच, सरकार के बारे में लोगों की धारणा क्या है, लोकतंत्र में यह जानने का एक माध्यम है चुनाव. 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र सत्ता पर काबिज हुआ था. लेकिन, 2015 में दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने संकेत किया कि नरेंद्र मोदी के वादों पर लोगों का भरोसा कुछ कम हुआ है.
अब मई 2016 में पांच और राज्यों के चुनावी नतीजों से भाजपा यह सोच कर भले खुश हो सकती है कि वह देश को कांग्रेस-मुक्त बनाने की दिशा में बढ़ रही है, लेकिन जिन जगहों पर उसका मुकाबला कांग्रेस से नहीं था, वहां पार्टी कारगर विपक्ष के रूप में भी नहीं उभर सकी है. दिल्ली और बिहार के बाद केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के नतीजे साफ संकेत करते हैं कि आम आदमी आंकड़ों में दर्ज होनेवाले तेज आर्थिक विकास की जगह रोटी-कपड़ा-मकान और रोजी-रोजगार के बुनियादी सवालों को तेजी से हल होते देखना चाहते हैं.
ऐसे में दो साल पूरे होने के मौके पर लोग स्वाभाविक ही अपने-अपने नजरिये से मोदी सरकार को ‘अच्छे दिन’ के उसके चुनावी वादों की कसौटी पर कस रहे हैं. लेकिन, फिलहाल मोदी सरकार जिस तेजी से विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाओं पर लगातार काम करती दिख रही है, हर क्षेत्र में कुछ नयी पहलकदमियां कर रही हैं, उम्मीद करनी चाहिए कुछ महीनों या वर्षों के बाद उनके नतीजे सामने आने पर देश एक बड़े बदलाव की आहट महसूस करेगा.
उम्मीद यह भी करनी चाहिए कि मोदी सरकार और भाजपा बीते दो वर्षों के चुनावी जनादेश के संकेतों को समझते हुए भविष्य में सामाजिक मोर्चे पर सद्भाव के साथ ‘सबका साथ-सबका विकास’ और आम आदमी के जीवन में खुशहाली जल्द लाने के उपायों पर नये सिरे से गौर करेगी.
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