गिरींद्र नाथ झा
ब्लॉगर एवं किसान
बिहार में इन दिनों पंचायत चुनाव हो रहे हैं. महात्मा गांधी ने गांव में स्वराज की बात कही थी, इन चुनावों में लोगों के जोश को देख कर अब यकीन होने लगा है कि गांव-घर अब और मजबूत होगा.
गौर करने की बात यह भी है कि बिहार इस साल चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष भी मना रहा है और इसी बीच सूबे के मुख्यमंत्री ने संपूर्ण शराबबंदी का एलान कर दिया है. यह सब बता रहा है कि बिहार अब कई स्तरों पर खुद को बदल रहा है और एक ब्रांड के तौर भी उभर रहा है.
हाल ही में गांव के दक्षिण टोले में शाम को जाना हुआ. वहां बच्चे पढ़ रहे थे. एक नौजवान सभी को पढ़ा रहा था. कुछ लोग मचान पर गांव की राजनीति पर चर्चा कर रहे थे. तभी एक महिला बाहर आती है और मुझे बताती है, ‘शराबबंदी की वजह से आप यह सब देख पा रहे हैं, नहीं तो ये सभी न बच्चे को पढ़ने देते, न इतनी शांति से मचान पर बैठे मिलते. सब शाम ढलते ही अपनी दुनिया में रम जाते थे.’
शराबबंदी के फैसले का असर सबसे निचले पायदान पर दिखने लगा है, लेकिन अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
हाल ही में दरभंगा में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा था कि ‘कुछ अंगरेजी बोलनेवाले लोग’, जो कि खाने-पीने को किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार बता कर इसकी आलोचना कर रहे हैं, हम ऐसे अंगरेजी बोलनेवालों को स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि शराब मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं है.’ गौरतलब है कि बिहार सरकार ने पिछले पांच अप्रैल से प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू की है.
अब करना यह होगा कि इस निर्णय को हम सबको सहारा देना होगा. हाल ही में महाराष्ट्र से कुछ लोग आये थे और उन लोगों ने बिहार सरकार के शराबबंदी के फैसले की सराहना की.
अब चाहिए यह कि समाज के हर तबके के लोग, जिनकी बातों का असर जनमानस पर पड़ सकता है, वे शराबबंदी के समर्थन में मुहिम चलायें. बॉलीवुड के लोग सामने आयें, तो और भी अच्छा होगा. आखिर शराब क्यों खराब है, सब इस पर खुल कर बोलें.
देश भर में कई सामाजिक संगठन हैं, उन्हें बीड़ा उठाना होगा. यह हम सब का सामाजिक दायित्व है.
गाम से लेकर शहर तक सामाजिक बदलाव लाने की जरूरत है. सोच में बदलाव लाने की जरूरत है. स्वच्छता के क्षेत्र में काम करनेवाली प्रमुख संस्था सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने बिहार में शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री की पहल की प्रशंसा की है और कहा है कि यह समाज के विकास के लिए एक साहसिक कदम है.
उन्होंने समाजशास्त्रियों से शराबबंदी के प्रभाव का अध्ययन करने की अपील करते हुए कहा कि यह निकट भविष्य में सामाजिक संरचना में सीधे तौर पर बदलाव लायेगा. पाठक की तरह अन्य लोग भी खुले मंच से ऐसी बातें कहें, ताकि लोग यह समझें कि शराबबंदी को लेकर राजनीति नहीं होगी, यह समाज के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है.
मेरा मानना है कि सुलभ की तरह अन्य संस्थाएं, प्रभावी सामाजिक कार्यकर्ता, अभिनेता, उद्योगपति शराबबंदी को समर्थन दें, ताकि लोगों के मानस से शराब जैसी चीज का दाग ही खत्म हो जाये. सुलभ का अपना बहुत बड़ा नेटवर्क है, वह काफी कुछ कर सकती है. हम-आप भी अपने स्तर से कर सकते हैं.
बस आगे आना होगा. यहां और भी कई संस्थाएं हैं, जिन्हें आगे आना होगा, ताकि देश के हर गांव की वह महिला, जो अपने घरवाले की नशे की आदत की वजह से परिवार को टूटते देख रही थी, वह आराम से अपने परिवार के संग शाम में बैठ सके और खुल कर बोल सके कि- ‘अब शाम सुहानी होती है…’