राजस्थान सरकार ने आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तक से जवाहरलाल नेहरू को हटा दिया है. अब इस पाठ्यक्रम में इतिहास के हिस्से में इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री कौन थे और उनकी उपलब्धियां क्या थीं. इस पुस्तक से यह जानकारी भी हटा दी गयी है कि महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी. नेहरू के अलावा स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेनेवाले अनेक सेनानियों के विवरण भी हटा दिये गये हैं.
राष्ट्र-निर्माताओं और ऐतिहासिक चरित्रों को स्कूली किताबों से हटाना न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि शैक्षणिक उद्देश्यों के साथ क्रूर मजाक भी है, जो भावी भारत के बेहद खतरनाक हो सकता है. राजस्थान की सरकार और शिक्षा व्यवस्था आखिर किस तरह के नागरिक तैयार करना चाहती हैं? पड़ोसी देश पाकिस्तान में दशकों पहले शुरू हुई ऐसी ही कवायदों में भारत के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पाठ्यक्रमों में रखा गया. अशोक, अकबर, गांधी, भगत सिंह, नेहरू आदि महापुरुष किताबों से बाहर कर दिये गये. स्वतंत्रता आंदोलन की मनमानी व्याख्याएं प्रकाशित की गयीं.
इन कारगुजारियों का जो नतीजा पाकिस्तान को भुगतना पड़ रहा है, वह हम सबके सामने है. आज वहां पाठ्यक्रमों को दुरुस्त करने के लिए आंदोलन हो रहे हैं. अभी हाल ही में सिंध की एसेंबली ने इस संबंध में प्रस्ताव भी पारित किया है. और आज राजस्थान सरकार उसी रास्ते पर चल पड़ी है जो पाकिस्तान ने पचास साल पहले अख्तियार किया था.
सरकार को नेहरू या अन्य नेताओं की विचारधारा से मतभेद हो सकता है, नेहरू की नीतियों में कमियां भी हो सकती हैं, लेकिन क्या स्वतंत्रता आंदोलन और आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू जैसे नेताओं की उत्कृष्ट भूमिका को खारिज किया जा सकता है? उनकी नीतियों की कमियों पर बहस हो सकती है, पर इतिहास से उन्हें बाहर करना राजस्थान सरकार के संकीर्ण और अदूरदर्शी रवैये का ही परिचायक है. यदि सरकार को ऐसा लगता है कि पाठ्यक्रमों में कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों को स्थान दिया जाना चाहिए, तो वह उन्हें जोड़ सकती है. शिक्षा का आधार तर्कसंगत होना चाहिए. राजस्थान सरकार को अपने दुराग्रही रवैये में अविलंब सुधार करना चाहिए.