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ना ले तू सेल्फी ना ले रे
डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार बजरंगी भाईजान के इस आह्वान के विपरीत कि लेले लेले लेले तू सेल्फी लेले रे, मैं लोगों का यह आह्वान करने पर विवश हूं कि ना ले ना ले ना ले तू सेल्फी ना ले रे. यह जानते हुए भी कि बजरंगी भाईजान के सामने मेरी कोई सुनेगा नहीं. जब […]
डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
बजरंगी भाईजान के इस आह्वान के विपरीत कि लेले लेले लेले तू सेल्फी लेले रे, मैं लोगों का यह आह्वान करने पर विवश हूं कि ना ले ना ले ना ले तू सेल्फी ना ले रे. यह जानते हुए भी कि बजरंगी भाईजान के सामने मेरी कोई सुनेगा नहीं. जब खुद बजरंगी भाईजान एक बार कोई कमिटमेंट कर लेते हैं, तो फिर अपनी भी नहीं सुनते, तो उनकी हर फिल्म देखने का कमिटमेंट किये बैठे उनके प्रशंसक उन्हें छोड़ मेरी क्यों सुनेंगे? और सेल्फी लेने के उनके आह्वान के बाद न लेने के बारे में तो उनकी भी सुनेंगे, मुझे शक है.
सेल्फी चीज ही ऐसी है. इसके लिए जान जोखिम में डालते लोगों को देख पता चलता है कि आजकल ‘जान है तो जहान है’ के विपरीत ‘सेल्फी है तो जहान है’. जान तो आनी-जानी है, एक दिन चली ही जानी है राजा की भी और रंक की भी, सेल्फी अलबत्ता अजर-अमर है आत्मा की तरह. वैसे भी सेल्फी शब्द अंगरेजी में आत्मा के लिए इस्तेमाल होनेवाले सेल्फ शब्द से ही बना है.
इसलिए जो कुछ भी धर्मग्रंथों में आत्मा के बारे में कहा गया है, नैनं छिंदंति वगैरह, वह सेल्फी पर भी पूर्णत: लागू होता है. सेल्फी भी न शस्त्रों से कटती है, न आग से जलती है, न पानी से गलती है और न हवा से सूखती है. सेल्फी लेने की भावना इनमें से किसी भी परिस्थिति में नहीं मिटती. चाकू-छुरे चल जायें या आगजनी हो जाये, आदमी जान बचाने से ज्यादा सेल्फी लेने पर ध्यान देता है. बाढ़ में डूबता-डूबता या आंधी में उड़ता हुआ भी कोशिश करता है कि सेल्फी ले ले. ऐसा न हो कि इन हादसों में मर कर ऊपर पहुंचने पर ऊपरवाला पूछ बैठे- सेल्फी ली थी? मना करने पर स्वर्ग भेजने के बजाय नरक में धकेल दिया तो?
‘प्राण जाये पर सेल्फी न जाये’ ही आज की जिंदगी का फंडा है. शायद इसीलिए लोग किसी के जनाजे में जाते हुए भी उसके साथ सेल्फी लेने से नहीं चूकते. जानेवाले के संग जाते-जाते ली गयी सेल्फी ही दोनों के संबंधों की प्रगाढ़ता सूचित करती है. और अपने खुद के जनाजे में तो आज के सेल्फी-सिकंदर यह कहके ही रखते हैं कि मेरे दोनों हाथ जनाजे से बाहर रखना, ताकि लोगों को पता चल जाये कि सिकंदर जब चला दुनिया से, तो उसके हाथ खाली नहीं थे, उनमें सेल्फी थी.
इस सबके बावजूद मैं भाई-बहनों को सेल्फी लेने से रोक रहा हूं, तो इसलिए कि उसकी वजह से अब जान जाने से भी बड़ा खतरा नौकरी जाने का पैदा हो गया है. जान जाने का खतरा तो आदमी एक बार झेल भी जाये, नौकरी जाने का कैसे झेलेगा? शम्मी कपूर की तरह पगला कर गाता फिरेगा- तुमने किसी की जॉब को जाते हुए देखा है, वो देखो मुझसे रूठ कर मेरी जॉब जा रही है.
सेल्फी की वजह से नौकरी का खतरा महिलाओं को ज्यादा है, यहां तक कि पुलिस में काम करनेवाली दबंग महिलाओं को भी इसका डर है. अभी हाल ही में मैक्सिको में एक महिला पुलिस अधिकारी ने ड्यूटी पर रहते हुए अपनी गश्ती कार में अपनी एक टॉपलेस सेल्फी लेकर फेसबुक पर डाल दी.
पुलिस द्वारा जी-जान से ही नहीं, बल्कि अंग-प्रत्यंग से जनता की सेवा करने का संदेश देने की भावना से ही उसने यह सेल्फी लेकर फेसबुक पर डाली होगी, पर उसके विभाग ने उसे इस उदात्त भावना से नहीं लिया और महिला को नौकरी से सस्पेंड कर दिया. अब उसकी नौकरी खतरे में है और वह महिला पुलस अधिकारी ‘अब जीकर क्या करेंगे’ के दौर से गुजर रही है. इसीलिए मना करता हूं मैं लोगों को सेल्फी लेने से.
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