डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
कभी-कभी तो मुझे लगता है कि भगवान ने हमें बनाया ही हमारे ऊपर अपनी मरजी थोपने के लिए है. वरना आप ही बताइए, उसने ऐसा क्यों किया? वह तो बताता नहीं. लोग पूछ-पूछ कर थक गये कि दुनिया बनानेवाले, क्या तेरे मन में समायी, काहे को दुनिया बनायी?
जवाब में बस एक ही बात उसने कही, बताते हैं कि एकोsहं बहुष्याम यानी मैं अकेला हूं, बहुकेला होना चाहता हूं. वह भी दुकेला हुए बिना ही.
हालांकि, उसकी बनायी दुनिया में लोग अपना अकेलापन दूर करने के लिए अकेले से पहले दुकेले होते हैं, भले ही बाद में पछताएं कि इससे तो अकेले ही अच्छे थे. लेकिन, यह ज्ञान तो बाद में पैदा होता है, अकेले रहते हुए तो सभी अकेले जल्द-से-जल्द दुकेले होना चाहते हैं और इसके लिए तरह-तरह की तिकड़में भिड़ाते हैं. उनमें से कोई-न-कोई तिकड़म ‘फ्लैश सेल हेल्पर’ का-सा काम कर जाती है.
कुछ चाइनीज कंपनियां पता नहीं कैसे, पहले से स्थापित कंपनियों के तिगुने-चौगुने महंगे मोबाइल फोनों में भी न मिलनेवाले फीचर्स अपने सस्ते मोबाइल फोन में देने की घोषणा कर हफ्ते में एक दिन अपनी वेबसाइट पर उसकी फ्लैश सेल आयोजित करती हैं. स्वभावत: कुछ ही मिनटों में फोन आउट ऑफ स्टॉक हो जाता है. ऐसे में ‘फ्लैश सेल हेल्पर’ जैसी एप्प ग्राहकों के काम आती है, जो पता नहीं किस विधि से वह फोन आनन-फानन में एप्प-यूजर की कार्ट में डाल देती है.
अकेले लोगों की तिकड़में भी इस एप्प की तरह ही उनकी मदद कर उन्हें दुकेला बनाने में सहायक होती हैं और फिर वे संयुक्त प्रयासों से बहुकेले होते हैं, लेकिन भगवान दुकेला हुए बिना ही बहुकेला हो गया. बना डाली दुनिया और थोपने लगा उस पर अपनी मरजी, खासकर हम भारतवासियों पर.
हम ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहते, पर भगवान की मरजी के आगे लाचार हैं. बच्चे भगवान की देन हैं और हम उन्हें लेते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते, सिवाय इसके कि वे बच्चे अगर लड़कियां हों, तो उन्हें लेते ही वापस लौटा दें. बेशक, वह भी अपनी मरजी से नहीं, भगवान की ही मरजी से.
सरकार ने बहुत कोशिश की समझाने की कि यह भगवान की मरजी नहीं है और इसकी रोकथाम की जा सकती है. उसने परिवार-नियोजन का कार्यक्रम चलाया, मुफ्त निरोध बांटे और लोगों को शिक्षित किया
कर्मचारियों ने गांव-गांव जाकर लोगों को पेड़ों के ठूंठ पर निरोध चढ़ा कर बताया कि उसका इस्तेमाल कैसे करना है. फिर भी जब बच्चे पैदा होने में कोई कमी नहीं आयी, तो गांवों में वापस जाकर पूछताछ की. पता चला कि गांव वाले तो पूरी निष्ठा से उनकी शिक्षा का पालन कर रहे थे. वे मुख्य कार्यक्रम से पहले हमेशा किसी पेड़ के ठूंठ पर निरोध को ठीक उसी तरह चढ़ा आते थे, जैसे उन्हें बताया गया था. फिर भी बच्चे पैदा होने में कोई कमी नहीं आ रही, तो इसका कारण सिवाय इसके क्या हो सकता है कि भगवान की यही मरजी है.
जनसंख्या बढ़ाने के अलावा भी भगवान हमारे हर काम में अपनी मरजी घुसेड़ता रहा है और अभी तक बाज नहीं आया है. इसका ताजा उदाहरण कोलकाता में आठ-नौ साल से निरंतर बन रहे पुल का ढह जाना है, जिसके पीछे भी पुल बनानेवाली कंपनी ने भगवान की ही मरजी बतायी है. देवद्रोही पुलिस ने कंपनी के कुछ अधिकारियों की धर-पकड़ की है, पर अंतत: उनका कुछ बिगड़ेगा, ऐसी भगवान की मरजी लगती नहीं है.