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विचारों की लड़ाई हथियारों से न लड़ें

नीरजा चौधरी राजनीतिक विश्लेषक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी कई सवाल खड़े करती है. इस प्रकरण से संबंधित जो वीडियो सामने आया है, उसमें आपत्तिजनक नारे लगाये जा रहे हैं. इस वीडियो को देख कर किसी भी हिंदुस्तानी का गुस्सा फूट पड़ना स्वाभाविक है. मैं खुद भी ऐसे नारे लगाने […]

नीरजा चौधरी
राजनीतिक विश्लेषक
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी कई सवाल खड़े करती है. इस प्रकरण से संबंधित जो वीडियो सामने आया है, उसमें आपत्तिजनक नारे लगाये जा रहे हैं. इस वीडियो को देख कर किसी भी हिंदुस्तानी का गुस्सा फूट पड़ना स्वाभाविक है. मैं खुद भी ऐसे नारे लगाने को आपत्तिजनक मानती हूं. यह अलग बात है कि नारा लगानेवालों का कश्मीर को लेकर कोई अपना नजरिया रहा हो या उन्हें लगता हो कि अफजल गुरु के साथ न्याय नहीं हुआ.
पर, अफजल गुरु के मामले में जो कानूनी कार्यवाहियां हुईं, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उसे फांसी हुई, उसमें कानून का पूरी तरह पालन हुआ और इससे ज्यादा कुछ हो भी नहीं सकता था. लेकिन, जिन लोगों ने अफजल के शहीद होने को लेकर नारे लगाये, उन्हें पकड़ने के बजाय सरकार ने जेएनयू परिसर में पुलिस फोर्स भेजा, जिसने छात्रसंघ अध्यक्ष को गिरफ्तार किया और कुछ अन्य लड़कों को हिरासत में लिया. हालांकि, इस मामले में अब तक इनकी संलिप्तता सामने नहीं आयी है. अब यह मामला इतना बढ़ गया है और इससे देशभर के छात्र संगठनों व समुदायों में ऐसा संकट उत्पन्न हो गया है, जो हमारे शिक्षा जगत के लिए बेहद चिंता का विषय है.
जेएनयू भारत का एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसे अपने विचाराें और मूल्यों (आइडियाज एंड वैल्यूज) के लिए देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों में शुमार किया जाता है. वहां हर तरह के विचारों को जगह दी जाती है और उस पर बहस-मुबाहिसे होते रहते हैं. वह संवाद की एक बेहतरीन जगह है, जहां से नये और आधुनिक विचारों का प्रस्फुटन होता है.
हैदराबाद विश्वविद्यालय में हुई रोहित वेमुला आत्महत्या की घटना को लेकर जेएनयू में कुछ दिनों से छात्र गतिविधियां चल रही थीं. बहरहाल, वहां जो कुछ भी हुआ, प्रशासन ने यह तथ्य ही नहीं बताया कि किस आधार पर कन्हैया कुमार और कुछ लड़कों की गिरफ्तारी हुई. जिन लोगों ने नारे लगाये, उनके खिलाफ उचित धारा के तहत उचित कार्रवाई बनती है, लेकिन उन नारों को सेडिशन (राजद्रोह) नहीं माना जा सकता. इसलिए वहां सेडिशन के तहत हुई गिरफ्तारी कहीं से भी उचित नहीं है.
सेडिशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा के मुताबिक- किसी व्यक्ति के द्वारा षड्यंत्र बना कर राज्य और सरकार के खिलाफ हिंसात्मक कार्य करना सेडिशन यानी राजद्रोह है. सेडिशन बहुत ही गंभीरतम आरोप (सीरियस चार्ज) है. जेएनयू में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिस पर सेडिशन के तहत कोई कार्रवाई की जाये.
कुछ माह पहले हार्दिक पटेल पर सेडिशन का चार्ज लगाया गया और अब कन्हैया कुमार पर लगाया गया है. इस बात पर असहमति हो सकती है कि पाटीदारों को आरक्षण मिले या नहीं, लेकिन हार्दिक की इस मांग पर यह कहना कि वह सेडिशन कर रहा है, सरासर गलत है.
जहां तक जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष पर सेडिशन के चार्ज का मामला है, तो जिसने नारे लगाये थे उसके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय एक संस्था के रूप में जेएनयू और उसके संपूर्ण छात्र समुदाय के खिलाफ कार्रवाई की गयी, यह कहते हुए कि जेएनयू राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का अड्डा है, तो मैं समझती हूं कि प्रशासनिक और कानूनी तौर पर यह किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं है. जेएनयू परिसर में पुलिस फोर्स को भेजना वैसा ही है, जैसे मक्खी मारने के लिए एके-47 का इस्तेमाल करना. किसी भी विश्वविद्यालय में शालीनता का माहौल होता है, वहां नवीन विचारों का जन्म होता है, छोटे-बड़े विषयों पर शोध होते हैं, विभिन्नताओं का सम्मान होता है.
अगर आप इस माहौल का सम्मान नहीं करेंगे, स्वतंत्र विचारों का आदर नहीं करेंगे और विचारों की विभिन्नता को उत्साहित नहीं करेंगे, तो नये विचारों और नयी सोच का समाज में आ पाना बहुत ही मुश्किल है. सरकार ने विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस फोर्स भेज कर एक प्रतिष्ठित संस्था पर गंभीर आरोप लगाये, लेकिन ठोस सबूत नहीं दिया. देश के गृह मंत्री तक ने बयान देने से पहले इतना भी नहीं सोचा कि बिना ठोस सबूत के वह किसी पर कोई आरोप लगा रहे हैं, तो उसका असर क्या होगा. किसी गृह मंत्री को बयान देने में इतनी जल्दी नहीं करनी चाहिए, वह एक बड़ी जिम्मेवारी वाले पद पर बैठा व्यक्ति होता है.
हमारे देश में कुछ लोगों में एक तरह का माइंडसेट बन गया है कि अगर आप उनसे सहमत नहीं हैं, तो आप राष्ट्र-विरोधी हैं. दिल्ली के पटियाला कोर्ट में वकीलों और भाजपा नेता ने मिल कर जिस तरह से कुछ छात्रों और पत्रकारों को पीटा, यह इसकी तस्दीक करता है. यह लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है. लगता है कि भाजपा व आरएसएस वाले चाहते हैं कि जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान, जो वामपंथ का गढ़ रहा, पर किसी तरह कब्जा जमाया जाये. कोई भी पार्टी या दल किसी संस्थान में उचित तरीके से अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश करे, इसमें कोई बुराई नहीं है. यह पार्टियों या छात्र संगठनों का बुनियादी हक है.
लेकिन, विश्वविद्यालय में पुलिस फोर्स भेज कर, किसी पर सेडिशन का चार्ज लगा कर अपने से विरोधी विचारधारा को पटखनी देने का अनुचित प्रयास करना सरासर गलत है. विचारों की लड़ाई विचारों से ही लड़ी जानी चाहिए, न कि पुलिस बल की ताकत से. लोकतंत्र के लिए यह बहुत ही चिंता का विषय है कि विचारों की लड़ाई हथियारों से लड़ी जा रही है. इससे हमारे देश-समाज में एक प्रकार की असहजता पनपती है, जो नुकसान पहुंचा सकती है. ऐसी घटनाएं कभी-कभी तो हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर हम किस ओर बढ़ रहे हैं! ऐसा सोचते हुए हमें हमारी दशा और दिशा पर संदेह-सा होने लगता है.
हो सकता है कि कुछ लोग ऐसी घटनाओं को किसी पार्टी विशेष के लिए खुराक की तरह मानें, लेकिन राजनीतिक रूप से भी ये घटनाएं किसी को लाभ पहुंचानेवाली नहीं हैं. मौजूदा सरकार के बनने के वक्त इस पर सबसे ज्यादा भरोसा युवाओं को था. ये युवा छात्र-छात्राएं हैं. लेकिन, पिछले कुछ महीनों से छात्रों के खिलाफ जो घटनाएं सामने आयी हैं, चाहे वह रोहित वेमुला की आत्महत्या वाली घटना हो या फिर अब जेएनयू वाली घटना हो, उससे यही लगता है कि अब देश के युवाओं में मौजूदा सरकार को लेकर एक नकारात्मकता पनप सकती है.
राष्ट्र-विरोधी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, इससे कोई भी इनकार नहीं करता. लेकिन असहमति को राष्ट्र-विराधी करार देना लोकतंत्र और उसके मूल्यों पर ज्यादती करने जैसा है. जिन युवाओं ने नरेंद्र मोदी को वोट किया था, अब उन्हें भी यह सब अच्छा नहीं लग रहा है. इसलिए सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधािरत)

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