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ढह गया एक मजबूत स्तंभ
प्रभात खबर के 20 दिसंबर, 2015 के अंक में नेशनल हेरॉल्ड पर प्रकाशित समाचार पढ़ कर बहुत दुख हुआ. के विक्रम राव तथा अन्य विद्वानों ने इस प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र के दुखद अंत पर प्रकाश डाला है, जो किसी दुखांत नाटक की कहानी से कम नहीं है. इन लेखों को पढ़ कर यही कहा […]
प्रभात खबर के 20 दिसंबर, 2015 के अंक में नेशनल हेरॉल्ड पर प्रकाशित समाचार पढ़ कर बहुत दुख हुआ. के विक्रम राव तथा अन्य विद्वानों ने इस प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र के दुखद अंत पर प्रकाश डाला है, जो किसी दुखांत नाटक की कहानी से कम नहीं है.
इन लेखों को पढ़ कर यही कहा जा सकता है कि नेशनल हेरॉल्ड तेरे नाम पर रोना आया. पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके उत्तराधिकारियों ने आखिर इस समाचार पत्र के साथ ऐसा क्यों किया? भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के अग्रदूत कहे जानेवाले नेहरू के अरमान के रूप में नेशनल हेरॉल्ड ने एक अलग पहचान बनायी थी.
पंडित नेहरू के प्रति श्रद्धा रखनेवाले प्राय: हर देशवासी को यह जानने का अधिकार है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन्होंने पंडित नेहरू की विरासत को नीलाम कर दिया? उनके ऐसा करने से आज पत्रकारिता का एक मजबूत स्तंभ ढह गया.
– भगवान ठाकुर, तेनुघाट
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