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किशोर, अपराध और समाज
भारतीय किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही हैं. देशभर में आज लगभग 17 लाख किशोर विभिन्न आपराधिक मामलों में आरोपी हैं. सामाजिक भटकाव के कारण बड़ी संख्या में किशोर चोरी, हत्या, हत्या का प्रयास, दुष्कर्म जैसे अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. पिछले एक दशक में बाल अपराध 170 फीसदी बढ़ा है. इस पर समाज […]
भारतीय किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही हैं. देशभर में आज लगभग 17 लाख किशोर विभिन्न आपराधिक मामलों में आरोपी हैं. सामाजिक भटकाव के कारण बड़ी संख्या में किशोर चोरी, हत्या, हत्या का प्रयास, दुष्कर्म जैसे अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. पिछले एक दशक में बाल अपराध 170 फीसदी बढ़ा है.
इस पर समाज को सोचना होगा. केवल जुवेनाइल एक्ट में संशोधन करने से बात नहीं बनेगी. किशोरों के मानसिक भटकाव के लिए हमारा समाज और विषाक्त आसपास का माहौल बराबर दोषी है.
हमारा सामाजिक परिवेश दिनोंदिन बदलता जा रहा है. संयुक्त परिवार के विखंडन के कारण बच्चे परंपरागत पालन-पोषण से दूर हो गये हैं. आज के कथित आधुनिक बच्चे अपने माता-पिता या दादा-दादी के पास जाकर बात करने या कहानी सुनने की बजाय सोशल मीडिया पर चैटिंग करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
कहीं न कहीं, इस विषैले सामाजिक परिवेश में छोटे-छोटे बच्चों का वास्तविक बचपन भी छिनता जा रहा है. इसे हम भी नजरअंदाज कर रहे हैं. पर असर यह है िक अभिभावकों के संरक्षण के अभाव में कम उम्र में ही बच्चों को वीडियो गेम्स, टीवी, इंटरनेट आिद के माध्यम से नशाखोरी और पोर्नोग्राफी की लत लग रही है.
टीवी, सिनेमा और मोबाइल फोन की सुलभता, छोटी उम्र से ही किशोरों में भोगवाद, तनाव, ईर्ष्या और अवसाद की स्थिति को जन्म दे रही है. ऐसे में दोषी केवल किशोर ही नहीं है, बल्कि संबंधित माता-पिता व पूरा समाज दोषी है. नैतिक शिक्षा को एक विषय के रूप में पाठ्य पुस्तक में शामिल करने की चर्चा तेज है, लेकिन क्या यह काफी है?
क्या इसकी शुरुआत मानव जीवन के प्रथम पाठशाला यानी घर से नहीं की जानी चाहिए? अब भी समय है, पुन: हम इस पर गंभीरता से मनन करें और घर की परंपरा को बनायें, तभी इस संकट से मुिक्त संभव है.
– सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा
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