।। प्रो एसपी सिंह।।
अमेरिका में हुए एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि भूतपूर्व नौ राष्ट्रपतियों के साथ तुलनात्मक मूल्यांकन किये जाने पर केनेडी को 85 फीसदी लोगों ने अधिक लोकप्रिय माना. उनकी हत्या की खबर सुन कर सोवियत प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव रो पड़े थे. यहां तक कि अमेरिकी मान्यता अस्वीकृत कर दिये जाने के बावजूद चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. पंडित नेहरू ने इस नृशंस हत्या को विश्व की एक दर्दनाक त्रसदी बताया.
अमेरिका में हुए एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि भूतपूर्व नौ राष्ट्रपतियों के साथ तुलनात्मक मूल्यांकन किये जाने पर केनेडी को 85 फीसदी लोगों ने अधिक लोकप्रिय माना. उनकी हत्या की खबर सुन कर सोवियत प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव रो पड़े थे. यहां तक कि अमेरिकी मान्यता अस्वीकृत कर दिये जाने के बावजूद चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. पंडित नेहरू ने इस नृशंस हत्या को विश्व की एक दर्दनाक त्रसदी बताया.
केनेडी अमेरिकी इतिहास की महान विभूतियों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण कड़ी हैं. इन राष्ट्र नायकों में बेंजमिन फ्रैंकलिन, जॉर्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, वूड्रो विल्सन तथा फ्रैंकलिन रूजवेल्ट की गिनती होती है. वैचारिक भिन्नता, जातीय विद्वेष, रंग-भेद, धार्मिक घृणा और नस्ली हिंसा की कुत्सित भावनाओं से ग्रस्त अमेरिकी गृह एवं विदेश नीति को नये सिरे से परिभाषित करने के फलस्वरूप केनेडी की गिनती आधुनिक विश्व इतिहास की चंद असरदार शख्सीयतों में की जाती है. किसी ने उनकी तुलना रूप-रंग के उपासक कवि लार्ड बायरन से की है, तो खुद उनकी पत्नी जैकलिन केनेडी ने उनमें राजा आर्थर की रूमानियत की खोज की. एफबीआइ व सीआइए के पास उनकी जिंदगानी के अनगिनत छुए-अनछुए प्रकरणों के मालूमात एकत्र थे. पूर्व राष्ट्रपति के विवादित व्यक्तिगत चरित्र, उनकी कई असाध्य बीमारियों के छुपाये गये रहस्यों, उनके वायदों की भरमार के मुकाबले वास्तविक सुधारों की निहायत धीमी गति को लेकर निस्संदेह कई विवाद उठते रहे हैं. यह भी सही है कि दक्षिणी वियतनाम में विस्तारवादी दृष्टिकोण और वहां के राष्ट्रपति की हत्या में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए द्वारा रचित साजिश के साथ-साथ उसके निकटवर्ती देश लाओस तथा सुदूर अश्वेत अफ्र ीका में जनवादी शक्तियों के खिलाफ अमेरिका की कठोर कार्रवाइयों में केनेडी के समर्थन से इनकार नहीं किया जा सकता है. परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिकी विदेश नीति पर जॉन फोस्टर डलेस के दृष्टिकोण तथा जनरल मैकार्थर के सैनिकवादी प्रभावों को कमतर करते हुए केनेडी ने उसे एक उदारवादी स्वरूप प्रदान करने में कामयाबी हासिल की. घरेलू नीति के क्षेत्र में उन्होंने समतामूलक समाज की अपनी परिकल्पना को वास्तविकता में उतारने की भी चेष्टा की और अपने इन्हीं साहसिक क्रियाकलापों के फलस्वरूप उत्पन्न हिंसक प्रतिक्रिया में वे अकाल मृत्यु के शिकार भी हो गये.
करिश्माई व्यक्तित्व के धनी और डेमोक्रेटिक पार्टी के नुमाइंदे के रूप में केनेडी ने मात्र 29 साल की आयु में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के रूप में प्रवेश किया और छह वर्षो तक वे इसके सदस्य बने रहे. 1960 में, कैथोलिक धर्मावलंबी होने के बावजूद लॉस एंजलिस में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार नामजद हुए. इस मौके पर उन्होंने न्यू फ्रंटियर नामक प्रख्यात अवधारणा प्रस्तुत की. इसके तहत केनेडी ने नामालूम नये अवसरों एवं जोखिमों, अपूर्ण आशाओं एवं स्वप्नों के अलावा विज्ञान तथा अंतरिक्ष के साथ-साथ युद्ध एवं शांति की अनसुलझी समस्याओं का उल्लेख किया. अपने तूफानी निर्वाचन-भाषणों के दौरान न्यू फ्रंटियर का उल्लेख करते हुए उन्होंने उस नये अमेरिका की परिकल्पना प्रस्तुत की, जो बीमारी, भय एवं युद्ध से ग्रस्त मानसिकता से मुक्त होने के लिए आतुर था. शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, महंगाई-नियंत्रण एवं ग्रामीण क्षेत्रों के कल्याण की प्राथमिकता का उन्होंने उल्लेख किया. तनाव में कमी एवं शीत युद्ध के समापन का बड़ी शिद्दत के साथ उन्होंने जिक्र किया. नवंबर 1960 में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के उपराष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को पराजित कर सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति का पदभार संभाला. उनकी नीतियों एवं विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के फलस्वरूप उनका स्थान इतिहास के पन्नों में सुरिक्षत हो गया.
20 जनवरी 1961 को अपने उद्घाटन भाषण के क्र म में केनेडी ने गरीबी, बीमारी और युद्ध के खिलाफ आवाज उठायी. स्वाभाविक रूप में उन्होंने गुट-निरपेक्ष आंदोलन तथा तीसरी दुनिया के बारे में सकारात्मक रवैया प्रकट किया. पूर्व राष्ट्रपति आइजन हावर, उनके विदेश सचिव जॉन फॉस्टर डलेस एवं उप-राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की विस्तारवादी व जन-विरोधी नीतियों को उन्होंने बदल डाला. पूर्व उपनिवेशों में चल रहे राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम को भी उन्होंने समर्थन दिया. कई अफ्रीकी एवं एशियाई नेताओं के साथ उन्होंने पत्रचार किया और उनमें से कुछ को उन्होंने राष्ट्रपति भवन में सम्मानित भी किया. यहां तक की संयुक्त अरब गणराज्य (मिस्र) के नेता कर्नल नासिर की कई रूपों में उन्होंने मदद भी की, तथा साथ ही साथ इस्नइल के साथ अरब देशों को सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये रखने की नसीहत भी उन्होंने दी.
उद्घाटन भाषण में केनेडी ने दोनों महाशक्तियों से शांति की अपील की, ताकि विज्ञान की विनाशकारी शक्ति के जरिये विश्व को सुनियोजित बर्बादी से सुरक्षित किया जा सके. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने घोषणा की- न तो भय के चलते समझौता करना चाहिए और न ही समझौता करने से भय करना चाहिए. उन्होंने शस्त्र-नियंत्रण एवं उसके निरीक्षण हेतु कई प्रस्ताव भी रखे. अपने इस ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने लैटिन अमेरिकी देशों को गरीबी की बेड़ियों से मुक्त कराने का वादा भी किया.
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के तकरीबन एक माह के भीतर, 22 फरवरी 1961 को केनेडी ने वियना में सोवियत प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव के साथ शिखर सम्मेलन का प्रस्ताव रखा, ताकि शीत युद्ध की समाप्ति पर विचार-विमर्श हो सके. इस पर मास्को ने सकारात्मक प्रतिक्रिया प्रकट की. केनेडी ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति चाल्र्स द-गॉल से मुलाकात की और तनाव घटाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने की चेष्टा की. बर्लिन के प्रश्न पर केनेडी का रवैया सख्त था, उन्होंने पुरजोर तौर पर इसके विभाजन की मुखालफत की. सारे विरोधों के बावजूद अगस्त 1963 में दोनों महाशक्तियों ने नाभकीय संधि पर हस्ताक्षर किये. जिसके फलस्वरूप बाद के वर्षो में शस्त्र-परिसीमन तथा तनाव-शैथिल्य का मार्ग प्रशस्त हुआ.
केनेडी की नीतियों का व्यापक परिणाम आज के विश्व-पटल पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है. एकीकृत जर्मनी, तनावमुक्त यूरोप, यूरोपीय संघ का गठन तथा पूर्वी यूरोप सहित पूर्व सोवियत संघ से साम्यवाद का सफाया, संपूर्ण आणविक निशस्त्रीकरण, तृतीय विश्व में व्यापक अमन-चैन की बहाली, अंतरिक्ष के क्षेत्र में हुई बेशुमार प्रगति- केनेडी के स्वप्निल संसार की ये अनेक कल्पनाएं साकार हो चुकी हैं.
केनेडी ने बहुलवादी विश्व में वैचारिक मतभेदों की शिथिलता की वकालत की. उन्होंने तृतीय विश्व के प्रति पूर्व अमेरिकी प्रशासन के उदासीन रवैये को बदला. लैटिन अमेरिकी देशों की सहायता के लिए उन्होंने 20 अरब डॉलर की योजना बनायी, सपत्नीक उन्होंने छह लैटिन अमेरिकी देशों की यात्र की और क्यूबा को छोड़ कर अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के 200 प्रतिनिधियों को व्हाइट हॉउस में आमंत्रित किया. सीआइए योजना के तहत क्यूबा में सैनिक हस्तक्षेप तथा सोवियत संघ द्वारा फिदेल कास्त्रो को दी गयी बेशुमार सैनिक सहायता का मामला खूब गरमाया, मगर दोनों महाशक्तियों की समझदारी से विश्व संकट टल गया.
केनेडी प्रशासन के बदलते हुए विश्वव्यापी रुख के फलस्वरूप भारत के प्रति भी अमेरिकी रवैये में आमूल-चूल परिवर्तन दिखने लगा. प्रधानमंत्री नेहरू और केनेडी के निजी संबंधों ने इसका आधार तैयार किया. केनेडी के आमंत्रण पर खुद नेहरू ने अमेरिका की यात्र की और जैकलिन केनेडी ने भारत की. अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने करीबी मित्र तथा हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रख्यात अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गॉलब्रेथ को दिल्ली में अपना राजदूत नियुक्त किया. फलत: भारत-अमेरिका संबंधों में पहले के बनिस्बत, चीन के साथ सीमा संकट के दिनों में संबंध बेहतर हुए. यह सच है कि गोवा तथा कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर अमेरिका का रवैया पहले की तरह ढुलमुल ही बना रहा. ज्ञातव्य है कि केनेडी ने क्यूबा संकट से घिरे रहने के बावजूद भी भारत को नैतिक समर्थन तो दिया ही, साथ-साथ सैन्य सहायता भी दी और सोवियत संघ से प्राप्त सहायता पर भी कोई आपत्ति नहीं की. यहां तक की नसाऊ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकमिलन से हुई शिखरवार्ता में भी चीनी आक्र मण के दौरान भारत की सैन्य सहायता के विषय पर गुफ्तगू की. बोकारो स्टील प्लांट प्रोजेक्ट पर सीनेट के प्रबल विरोध के मद्देनजर उन्होंने कनाडा और पश्चिमी जर्मनी से भारत के लिए सहायता बढ़ाने का अनुरोध किया.
अंतरिक्ष क्षेत्र में केनेडी ने सोवियत संघ की सफलताओं को स्वीकारते हुए पांच अरब डॉलर की धनराशि का प्रबंध किया, ताकि दशक के अंत तक चांद पर मानव के पदार्पण तथा अपोलो कार्यक्र म को सुनिश्चित किया जा सके. और यह सब समय के पूर्व ही संपन्न हो गया. केनेडी ने 139 देशों में शांति सेना बहाल की, जिसके स्वयंसेवकों ने यथासंभव इनकी आर्थिक संरचना सुधारने का प्रयास किया.
केनेडी की असामियक मृत्यु के 50 वर्षो बाद भी उनका बहुआयामी व्यक्तित्व व्यापक चर्चा का विषय बना हुआ है. अमेरिका में हुए एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि भूतपूर्व नौ राष्ट्रपतियों के साथ तुलनात्मक मूल्यांकन किये जाने पर उन्हें 85 फीसदी लोगों ने अधिक लोकप्रिय माना. उनकी हत्या की खबर सुन कर सोवियत प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव रो पड़े थे. यहां तक कि अमेरिकी मान्यता अस्वीकृत कर दिये जाने के बावजूद चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने भी उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. पंडित नेहरू ने इस नृशंस हत्या को विश्व की एक दर्दनाक त्रसदी बताया. विश्व पटल पर ऐसा लगा मानो वक्त ठहर सा गया है.
(लेखक ऑक्सफोर्ड, लंदन, हल तथा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विजिटिंग फेलो रहे हैं.)