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ये मंत्री क्या करते हैं भाई?
चंचल सामाजिक कार्यकर्ता हस्बे मामूल कई अहम् सवाल, जिसका हम रोज सामना करते हैं, पर उसके पेंच को कभी समझ भी नहीं पाते और वह अगली पीढ़ी के सामने खड़ा हो जाता है. कल का वाकया है. चटकोरा घास काटने जा रही थी. लबे सड़क लम्मरदार खड़े मिले. चटकोरा ठिठक गयी और लम्मरदार से एक […]
चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
हस्बे मामूल कई अहम् सवाल, जिसका हम रोज सामना करते हैं, पर उसके पेंच को कभी समझ भी नहीं पाते और वह अगली पीढ़ी के सामने खड़ा हो जाता है. कल का वाकया है. चटकोरा घास काटने जा रही थी. लबे सड़क लम्मरदार खड़े मिले. चटकोरा ठिठक गयी और लम्मरदार से एक सवाल पूछ दिया- ए देवर! ई मंत्री कैसा होता है, इसे कौन बनाता है?
लम्मरदार जनम के मुरहा, आंख गोल करके चटकोरा को देखा और बोले- मंत्री देख्बू? और फिस्स से हंस दिये. चटकोरा गरियाते हुए आगे बढ़ गयी. यह रोजमर्रा की घटना है. दोनों में एक अगड़ा और एक पिछड़ा, लेकिन गांव के अपने तयशुदा रिश्ते होते हैं, जो अगड़ा-पिछड़ा का भेद मिटा देते हैं.
लम्मरदार आगे बढ़े ही थे कि इतने में लाउडस्पीकर के चीखने की आवाज आयी. एक रिक्शे पर कीन उपधिया बा बुलंद आवाज में बता रहे हैं- भाइयो और बहनों! कल आपके चौराहे पर माननीय उद्यान मंत्री आ रहे है…’ ओर चौराहे की संसद में उद्यान मंत्री जेरे-बहस हो गये. चाय की दूकान पर कीन उपधिया भी रुके- लाल्साहेब! भाय, जल्दी से चाय दे दो, नहीं तो अभी निठल्लू लोगन क आगम हो जायेगी. आज हम कुकुरकाट में फंसना नहीं चाहते, दस बजे तक प्रचार खत्म कर देंगे…
कीन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि लाल्साहेब हत्थे से उखड़ गये- देख कीन! ई चाय है शरबत नहीं. इतनी ही जल्दी है, तो निकल जा अगली बाजार में… हुंह! आज पूरा दिन खराब भवा… कीन ने अर्जेंटी (रिक्शा खींचनेवाला) को आंख के इशारे से चलने को कहा ही था कि अर्जेंटी ने रोक दिया- पंडित! दूसरे का भी दुख-दर्द समझा करो, सीतलहरी देख रहे हो न, ठंड में सब सिकुड़ा पड़ा है, अपने तो कंबल ओढ़ के रेकसे पे बैठे हो, उसकी भी तो सोचो, जो रेकसा खींच रहा है…
कीन लपक के दौड़े- अबे पागल के बच्चे! लोड स्पीकर क बटन तो बंद कर देते. हुआ यूं कि अर्जेंटी जो भी बोले, सब भोंपू से बाहर जाता रहा. अब अर्जेंटी को का मालूम कि ‘लोड स्पीकर’ एक हरिजन और पंडित में कोई फर्क नहीं करता. जो कोई भी उसके नजदीक बोलेगा, वह उसकी बात को दोहरायेगा. कीन ने बटन बंद किया. भट्ठी सुलग गयी, लेकिन जिसका डर था, वह तो हो ही गया. एक-एक करके सब हाजिर. उमर दरजी, मद्दू पत्रकार, नवल उपधिया. लखन कहार…
चिखुरी ने आते ही कहा- लखन एक काम करो, पहले लकड़ी जला के अर्जेंटी का हाथ-पैर सिंकवाओ, फिर चाय पी जाये. चाय चले, उसके पहले ही उद्यान मंत्री पर बहस चल पड़ी- लम्मरदार ने चटकोरा के सवाल को संसद में जस का तस रख कर, रस लेना चाह रहे थे, लेकिन बाजी पलट गयी. मंत्री कैसा होता है, उसे कौन बनाता है?
चिखुरी चालू हो गये- लम्मरदार! इस देश का सबसे बड़ा सवाल यही है. यही अगर संभल जाता, तो देश रातो-रात बन जाता. सुराज के बाद बापू को यह आशंका थी कि आजादी के बाद हुकूमत करनेवाले खुद को राजा समझ बैठेंगे, जबकि उन्हें जनता की सेवा करना चाहिए.
कल तक जो हमारी तरह निर्भीक नागरिक था, आज मंत्री बनते ही भय में चला गया, पुलिस के घेरे में रहने का आदी हो रहा है. अचानक मिली सुविधाओं के चलते वह अपाहिज हो जाता है. सेवा भावना तो दूर, उसे और बड़ा मंत्रालय चाहिए होता है. मुख्यमंत्री को छोड़ भी दिया जाये, तो बाकी मंत्रालयों में भी बड़े और छोटे मंत्रालय बनने लगते हैं. जबकि यह गलत अवधारणा है. इस पर कभी विचार ही नहीं हुआ है. राजस्थान का मुख्य स्रोत पर्यटन है. उस सूबे का सबसे कीमती और समझदार मंत्री पर्यटन मंत्री होता है.
कांग्रेस सरकार में तीन-तीन बार पर्यटन मंत्री रही वीणा काक का नाम सबसे ऊपर गिनाया जाता है. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश समेत तमाम हिंदी पट्टी की सरकारों में सबसे दमदार मंत्रालय दो हैं. एक उद्यान और दूसरे पशुपालन मंत्रालय. ये दो मंत्रालय चाहें, तो सूबों की हालत सुधर जाये. बेरोजगारी समाप्त हो जाये. पलायन रुक जाये, क्योंकि इनका आधार खेती है. इन विभागों की नीतियों को लाल फीताशाही से बाहर निकाल कर सूबों को पटरी पर लाया जा सकता है.
पशुधन मात्र आमदनी का जरिया ही नहीं है, यह जमीन की सुरक्षा और उसकी उर्वरा शक्ति को स्थायी बनाता है.गोबर से खाद और ईंधन की किल्लत तो हटेगी ही, अंगरेजी खाद से बिगड़ चुके अन्न का स्वाद भी वापस आयेगा और बीमारियों से निजात मिल जायेगी. सब्जियों को ज्यादा दिन तक किसान सुरक्षित नहीं रख पाता, उसकी व्यवस्था होनी चाहिए… अभी चिखुरी रौ में ही थे कि उमर दरजी विषयांतर कर दिये- पंचो अब तो बथुआ का साग भी बिकने लगा है. चाय आ गयी. दो सुड़क्के में चाय पीकर नवल चलते बने- मोर पिया गये परदेस…
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