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रिश्तों की यह गर्माहट
जाड़े की शुरुआत के साथ भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में आयी गर्माहट कितने दिनों तक बनी रहेगी, कोई नहीं जानता. लेकिन, इस गर्माहट से द्विपक्षीय रिश्तों पर जमी बर्फ पिघले, दोनों देशों का हित इसी में है. अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित ‘द हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन के बहाने इसलामाबाद पहुंची भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज […]
जाड़े की शुरुआत के साथ भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में आयी गर्माहट कितने दिनों तक बनी रहेगी, कोई नहीं जानता. लेकिन, इस गर्माहट से द्विपक्षीय रिश्तों पर जमी बर्फ पिघले, दोनों देशों का हित इसी में है. अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित ‘द हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन के बहाने इसलामाबाद पहुंची भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का पाकिस्तान की ओर से गर्मजोशी भरा स्वागत और फिर समग्र वार्ता शुरू करने का दोनों देशों का फैसला यह संकेत तो दे रहा है कि आपसी रिश्तों को लेकर दोनों देशों के रुख में बड़ा बदलाव आया है.
इससे पहले दोनों देश आतंकवाद रुकने और सीमा पर शांति के बाद ही बातचीत शुरू करने पर अड़े थे. ऐसे में संयुक्त बयान में दोनों देशों की ओर से सभी प्रकार के आतंकवाद की निंदा और मुंबई हमले की अदालती कार्यवाही जल्द पूरी करने का पाकिस्तान का आश्वासन द्विपक्षीय संबंधों में बेहतरी के लिहाज से उम्मीद जगानेवाला है. हालांकि, इन उम्मीदों के भरोसे भारत को फिलहाल किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए. क्योंकि संबंधों में बेहतरी की ऐसी उम्मीदें यूपीए सरकार के कार्यकाल में भी कई बार जगी थीं, लेकिन पाकिस्तान की नापाक हरकतें उन पर पानी फेरती रहीं. स्थितियां अब भी वही हैं.
विपक्ष में रहते भाजपा संसद तक में कह चुकी थी कि ‘आतंकवाद पाकिस्तान की स्टेट पॉलिसी है, इसलिए उससे राजनयिक रिश्ते तोड़ देने चाहिए’. अब नवाज शरीफ के भाषण को छोड़ दें, तो आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की पॉलिसी में बदलाव के कोई ठोस संकेत नहीं मिले हैं.
नवाज पहले भी कई मौकों पर आतंकवाद के खिलाफ शराफत भरे बयान दे चुके हैं, लेकिन कारण चाहे जो रहे हों, उनके बयान कभी जमीन पर नहीं उतरे. ऐसे में जरूरी है कि बातचीत के जरिये संबंध सुधारने की कोशिशों के साथ-साथ भारत कूटनीतिक और रणनीतिक कदमों के मामले में सतर्कता बरकरार रखे. जरूरी यह भी है कि दोनों देशों के राजनेता अपने-अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों से आगे बढ़ कर अब परिपक्वता दिखाएं और भड़काऊ बयानों व आचरणों पर विराम लगाएं. साथ ही दोस्ती की उम्मीदों को ठोस परिणति दिलाने के लिए दोनों देश अब कुछ नये व कारगर कदम भी उठाएं.
ये कदम सीमा पर शांति के रूप में हो सकते हैं, आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदमों के रूप में हो सकते हैं, व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ भरोसे की बहाली के रूप में हो सकते हैं. यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में ‘हम दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं.’
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