आजादी के बाद भारत पहली बार ऐसे गहरे नकारात्मक राजनीतिक दौर से गुजर रहा है. ऑक्सफोर्ड- हार्वर्ड में पढ़े लोग आज भारत को सही दिशा नहीं दे पा रहे. देशभक्त जागरूक नेताओं के साथ-साथ देश की जनता में खलबली मची हुई है. भ्रष्टाचार सभी दफ्तरों को अपने शिकंजे में पूरी तरह कैद कर चुका है. भ्रष्ट मंत्री, अधिकारी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आयोजित कार्यक्रमों के चीफ गेस्ट बन रहे हैं.
स्वच्छ और ईमानदार शासन की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है. ईमानदार व्यक्ति पागल और मूर्ख समङो जा रहे हैं. जो जितना नीचे गिर रहा है उतनी ही संपत्ति खड़ी कर रहा है. इन्हीं भ्रष्ट अधिकारी, मंत्री को हमारे देश के भोले-भाले नागरिक भविष्य निर्माता समझ रही है. जब ऐसी स्थिति उस देश की हो जिसमें आधे से अधिक आबादी युवाओं की है, तो समझा जा सकता है कि युवा वर्ग अपना कर्तव्य का पालन सही तरीके से नहीं कर रहा है और वह कहीं न कहीं अपनी राह से भटक गया है. दिनोंदिन स्वार्थ का दायरा बढ़ता जा रहा है.
लोग अपने और देश को अलग समझने लगे हैं. अब ऐसी स्थिति में युवाओं को अपनी नींद से जाग कर सक्रि य होना पड़ेगा. अपने देश की अच्छी और गंदी राजनीति को समझना पड़ेगा. ब्रांडेड जींस, टी-शर्ट और सैंडल से ऊपर उठ अपने देश के बारे में भी सोचना पड़ेगा. अभी युवाओं की जिम्मेदारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सारी पार्टियां इस वर्ग पर नजरें गड़ाये हुए हैं और इसे शीशे में उतारने के लिए तरह-तरह के लुभावने जाल भी फेंके जाने लगे हैं. अब वक्त की मांग है कि युवा राजनीति करें या नहीं, पर राजनीति जरूर समङो और इसका इस्तेमाल आगामी चुनावों में अवश्य करे. युवाओं को जागने का यही सही वक्त है, वरना काफी देर हो चुकी होगी.
हरिश्चंद्र कुमार, डंडार कलां, पांकी