आज अधिकतर नेता खुद को युवाओं का मार्गदर्शक कहते हैं. बड़े-बड़े दावे करनेवाले नेता खुद को देश का उत्तराधिकारी मान बैठते हैं, लेकिन उनकी वास्तविकता जनता के सामने तब आती है, जब वे मंच पर खड़े होते हैं.
आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो सदा से चलता आ रहा है, पर हमें लगता है कि पहले लोग शिष्टाचार का पालन करते थे. आज किसी को झूठा, बेवकूफ या भ्रष्ट आदि कहने में लोग जरा भी नहीं कतराते.
ये क्या समझते हैं कि इसका असर आम जनता पर उनके पक्ष में पड़ेगा? चुनाव के पहले नेता एक-दूसरे की चाहे कितनी भी खिंचाई क्यों न कर लें, वोट तो उन्हें ही मिलेगा जो इसके लायक होगा. वास्तविकता जनता के सामने है और वह इसे याद रखती है. देश की बागडोर नेताओं के हाथों में है, अगर वे ही शिष्टाचार का पालन नहीं करेंगे, तो बच्चे क्या सीखेंगे?
टीएसपी सिन्हा, ई-मेल से