स्मार्ट सिटी योजना में स्मार्ट एनर्जी, स्मार्ट वाटर, स्मार्ट बिल्डिंग, स्मार्ट इंटीग्रेशन वगैरह सबकुछ होगा, पर हमें क्या पुरानी रांची दे सकेंगे, जो केवल अब यादों के झरोखों में है?
25-30 साल पहले जो रांची की आबोहवा और स्वच्छ खूबसूरती होती, वह अब कचरों के ढेर और बिना किसी प्लानिंग की बिल्डिंगों की भीड़ में खो गयी है.
यूं तो रांची का हर मौसम सुहाना होता था. बरसात और जेठ की दोपहरी प्यारी लगती थी. गर्मी की शाम भी बारिश के झोंकों से सुहानी हो जाती थी.
सड़क के किनारे लगे बड़े-बड़े पेड़ों की छांव एसी और कूलर से कहीं अधिक आरामदायक हुआ करती थी. अब सड़क के चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ों की कटाई हो गयी है.
बरसात में बच्चों का पानी में छप-छप करके खेलना तथा बड़ों की मंडली नुक्कड़ की चाय और मूढ़ी के सोंधे स्वाद में खो जाती थी. अब मॉनसून आया नहीं कि नाली का कचरा, मकानों और इमारतों से निकलने वाला गंदा पानी सड़क पर जमा हो जाता है. इस जलजमाव को देख कर कोई भी कहता है, हे राम! यह बरसात है या आफत?
कोई कहता है-हे प्रभु कोई रोप-वे बना दो, ताकि सड़क पर चलना न पड़े. पहले सरकार यहां के निवासियों को पीने का साफ पानी, नाली के पानी की निकासी और कचरों के निष्पादन के लिए कुछ करे, फिर रांची को स्मार्ट सिटी बनाने की पहल करे.
यह भी सही है कि रांची को स्वच्छ बनाने में हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है कि हम शहर को साफ रखें, लेकिन कैसे? प्रशासन ने फ्लैटों का नक्शा पास कर तो दिया, लेकिन उसमें पेड़ कहां लगेंगे?
यदि गलियों और सड़कों पर गंदा पानी बहता है, तो उसकी निकासी की व्यवस्था तो सरकार ही करेगी. अत: सरकार इस पर गंभीरता से विचार करे.
शीला प्रसाद, रांची