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नारी के प्रति मानसिकता बदले समाज
नारी किसी भी समाज, धर्म, जाति व समुदाय का एक बहुत ही मजबूत व अहम हिस्सा है. अगर आसान शब्दों में कहें, तो नारी एक आधारभूत स्तंभ है, जो एक समाज, श्रेष्ठ धर्म व श्रेष्ठ समुदाय के निर्माण में सहायक होती है.पुरुष जितना भी प्रयास करे, उसके पीछे प्रोत्साहन नारी का ही होता है. फिर […]
नारी किसी भी समाज, धर्म, जाति व समुदाय का एक बहुत ही मजबूत व अहम हिस्सा है. अगर आसान शब्दों में कहें, तो नारी एक आधारभूत स्तंभ है, जो एक समाज, श्रेष्ठ धर्म व श्रेष्ठ समुदाय के निर्माण में सहायक होती है.पुरुष जितना भी प्रयास करे, उसके पीछे प्रोत्साहन नारी का ही होता है.
फिर भी तब एक नारी की दयनीय स्थिति दिखती है, जब उस पर अत्याचार होते हैं.नारी का मानिसक-शारीरिक शोषण होता है. कुछ घरों में एक बहन, बहू, बेटी और मां को उचित स्थान व सम्मान प्राप्त नहीं होता, तो नारी को देवी बतानेवाली सभी बातें बेमानी ही लगती है.
आश्चर्य तो तब होता है, जब आज के युवाओं की भी विचारधारा में ऐसी बीमार सोच मिलती है.हद तो तब हो जाती है, जब दोस्ती, भाई-बहन और बाप-बेटी के रिश्ते भी शर्मसार और सहमे-सहमे से नजर आते है.
शायद इसकी वजह एक ऐसी मानिसकता है, जिसके अंतर्गत महिलाओं को बराबरी का नहीं, बल्कि दोयम दर्जे का समझा जाता है. उसी मानिसकता के चलते कुछ लोग महिलाओं को एक भावनाओं से भरी इंसान की जगह उपभोग की कोई वस्तु समझते हैं.
इतना ही नहीं, कुछ लोग तो लड़कियों को बोझ मान कर कन्या भ्रूण हत्या जैसा घोर पाप कर बैठते है, परंतु बिना नारी के हम किसी भी समाज की कल्पना भी नहीं कर सकते.
हमें जरूरत है, तो महिलाओं के प्रति अपनी सोच और विचारधारा बदलने की. किसी व्यक्ति को विचारधारा उसके समाज, घर-परिवार व स्कूल से ही प्राप्त होती है.
यदि घरों में बच्चों को नैतिक मूल्यों और महिलाओं का सम्मान सिखाया जाये, तो महिलाओं को शोषित होने से बचाया जा सकता है. इसके साथ ही, हमारा समाज एक बहुत बड़ कलंक से भी बच सकता है.
मनोरथ सेन, जामताड़ा
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