दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले में 13 सितंबर को अदालत का फैसला आया. क्या इससे पहले भी बलात्कार मामले में न्याय की गति इतनी ही तीव्र थी? क्या ऐसे सभी मामलों में सजा–ए–मौत का ही हुक्म होता है? दामिनी मामले ने देशवासियों को क्यों झकझोर दिया? मीडियावाले क्यों पल–पल की खबरें जुटाते रहे?
पुलिस क्यों बारीकी से जांच करती रही? जवाब मिलना बाकी है. गत 13 सितंबर को साकेत कोर्ट का फैसला, आनेवाले दिनों में भी दोहराया जायेगा या समाज को इससे कोई संदेश मिलेगा, ऐसा नहीं है.
सजा का हकदार तो समाज है, जो ऐसे अपराध रोकने में अक्षम है. जो हर मामले को सड़क से संसद तक नहीं ले जाता. आगे ‘साकेत’ की सजा बरकरार रहेगी या नहीं, समय ही बतायेगा. उपचार और इलाज के लंबे दौर में कौन गुनहगार हो जाये, मालूम नहीं.
एमके मिश्र, रांची