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उफा वार्ता से उम्मीदें
रूस के शहर उफा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की वार्ता से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की उम्मीदें फिर बंधी हैं. कई महीनों की संवादहीनता के बाद दोनों पड़ोसी देशों ने तय किया है कि उनके सैन्य अधिकारी अब नियमित रूप से मुलाकातें करेंगे, ताकि घुसपैठ और गोलाबारी जैसी घटनाओं पर लगाम लगायी जा […]
रूस के शहर उफा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की वार्ता से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की उम्मीदें फिर बंधी हैं. कई महीनों की संवादहीनता के बाद दोनों पड़ोसी देशों ने तय किया है कि उनके सैन्य अधिकारी अब नियमित रूप से मुलाकातें करेंगे, ताकि घुसपैठ और गोलाबारी जैसी घटनाओं पर लगाम लगायी जा सके.
मुंबई हमले की सुनवाई में एक-दूसरे को सहयोग करने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक पर भी सहमति बनी है, जिसमें आतंकवाद से जुड़े तमाम मसलों पर चर्चा होगी. इन सराहनीय पहलों के अलावा दोनों देशों में गिरफ्तार मछुआरों को 15 दिनों के भीतर जब्त नावों के साथ छोड़ने का भी निर्णय किया गया है. संयुक्त घोषणा में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए समुचित प्रयास करने की बात भी कही गयी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पहली बार मई, 2014 में मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में मिले थे. फिर नवंबर में दक्षेस शिखर सम्मेलन में उनकी संक्षिप्त मुलाकात हुई थी, परंतु उसके बाद तनावपूर्ण माहौल के कारण कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हो सकी थी. ऐसे में सद्भावना भरे माहौल में हुई यह वार्ता महत्वपूर्ण है. इसमें यह रेखांकित किया गया है कि क्षेत्र में शांति और विकास के प्रति दोनों देशों की साझा जिम्मेवारी है. अगले वर्ष दक्षेस सम्मेलन के लिए पाकिस्तान यात्रा के निमंत्रण को भी प्रधानमंत्री मोदी ने स्वीकार कर लिया है. ऐसे सकारात्मक माहौल में पाकिस्तान को यह बात जरूर याद रखनी होगी कि आतंक के जरिये भारत से छद्म युद्ध लड़ने की उसकी रणनीति का खामियाजा उसे भी भुगतना पड़ा है.
इसलिए नवाज शरीफ को पाक सेना और राजनीति के उन तत्वों के साथ सख्ती से निपटना होगा, जो भारत-विरोधी वातावरण बनाते रहते हैं. उफा में वार्ता से पहले भी चार दिनों के भीतर पाकिस्तानी रेंजरों की गोलीबारी में सीमा सुरक्षा बल के दो जवान शहीद हुए हैं. युद्ध विराम के ऐसे उल्लंघन भरोसे के माहौल को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं. भारत में भी ऐसे संगठन हैं, जो पाक विरोधी माहौल बना कर अपनी राजनीति चलाते हैं.
इनमें से कुछ संगठन सरकार के समर्थक भी हैं. प्रधानमंत्री मोदी को भी ऐसे तत्वों को काबू में रखने की कोशिश करनी होगी. दोनों पड़ोसी देशों के शीर्ष नेता और अधिकारी मिलें, व्यापार के अवसर बढ़ें और दोनों देशों के नागरिक आसानी से आवाजाही कर सकें, तभी दोनों देश अमन-चैन के साथ आगे बढ़ सकते हैं. आशा है, उफा वार्ता से भारत-पाकिस्तान संबंध का एक नया अध्याय शुरू होगा.
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