दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका में ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में ताले जड़ दिये गये हैं. लाखों कर्मचारियों को छुट्टी दे दी गयी है, क्योंकि सरकार के पास वेतन देने के लिए रकम नहीं है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि जन साधारण को स्वास्थ्य सुरक्षा देनेवाली राष्ट्रपति बराक ओबामा की महत्वाकांक्षी योजना पर होनेवाले खर्च के विरोध के कारण एक अक्तूबर से शुरू होनेवाले नये अमेरिकी वित्त वर्ष का बजट मंजूर नहीं हो पाया है. कर्मचारियों की बिना वेतन अनिश्चितकालीन छुट्टी से जरूरी सेवाओं को छोड़ कर अन्य सेवाएं अचानक रुक गयी हैं.
हालांकि अमेरिका के लोकतांत्रिक इतिहास में कांग्रेस (सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव) द्वारा बजट अनुमति के अभाव में सरकारी तौर पर आंशिक कामबंदी पहले भी 17 बार हो चुकी है. पिछली बार 1995-1996 में ऐसा हुआ था, तब राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के अध्यक्ष न्यूट गिंग्रिच के बीच ठन गयी थी. तब कामबंदी 28 दिनों तक चली थी. अमेरिकी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति कई मामलों में सर्वेसर्वा है, पर अपनी मर्जी का कानून तब तक नहीं पास करवा सकता, जब तक अमेरिकी कांग्रेस के दोनों हिस्से (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट) उसे मंजूरी न दे दें. फिलहाल हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में रिपब्लिकन का जोर है, जबकि सीनेट में डेमोक्रेट्स का. डेमोक्रेट्स ओबामा की योजना को धन देना चाहते हैं, पर रिपब्लिकन इसे फिजूलखर्ची मानकर विरोध कर रहे हैं.
रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स की लड़ाई का समाधान शीघ्र न निकला तो आंशिक कामबंदी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दिवालिया भी बना सकती है. लंबे समय तक वेतन न मिलने पर कर्मचारी बैंकों से लिया कर्ज नहीं चुका पायेंगे. साथ ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को रोज 30 करोड़ डॉलर का घाटा होगा. अमेरिका अपनी कानूनी बाध्यता के कारण 16.7 ट्रिलियन डॉलर तक ही उधारी ले सकता है. अक्तूबर अंत तक अमेरिका उधारी की इस सीमा तक पहुंच जायेगा. उधारी के अभाव में अमेरिका के पास कर्ज चुकाने की रकम नहीं होगी और वह डिफॉल्टर घोषित हो सकता है. इन समस्याओं का त्वरित समाधान जरूरी है, लेकिन कामबंदी की स्थिति के कारण कीमती समय हाथ से निकल भी सकता है.