कुछ वर्षो में दुष्कर्म की वारदातें बढ़ती जा रही हैं. इसकी वजह तलाशने पर हम यह पाते हैं कि इनसान के चाल-चरित्र पर उसकी संगति और माहौल का बड़ा प्रभाव पड़ता है. आज घटिया साहित्य, सिनेमा, संगीत, विज्ञापन, पोशाकों से झांकता शरीर और शराब का बढ़ता चलन, यह सब मिलकर सारे वातावरण को निरंतर कामुक बना रहे हैं.
ऐसी परिस्थिति में कितने लोग चरित्रवान बने रह सकते हैं भला! जिनका संस्कार प्रबल है और जिनके घर का वातावरण भी शुद्ध है, वही ऐसे माहौल में अपने चरित्र की रक्षा कर सकता है.
इसके अतिरिक्त जो लोग हैं, उनका पतन निश्चित है. और जब गलत काम का भूत मन में सवार होता है तो व्यक्ति सूट-साड़ी या बच्ची-बूढ़ी का भेद नहीं समझता. और तो और, उसे रिश्ते-नातों की भी परवाह नहीं रह जाती. ऐसे दूषित मानसिकता को कठोरतम सजा मिलनी चाहिए.
आशुतोष पांडेय, निरसा, धनबाद