।।पुण्य प्रसून बाजपेयी।।
(वरिष्ठ टीवी पत्रकार)
पहली बार रामलीला मैदान से एक नया इतिहास रचने की कवायद चल रही है, जिस पर निर्णय तो भाजपा को लेना है, लेकिन कवायद संघ परिवार कर रहा है. यह कवायद नरेंद्र मोदी को लेकर है. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर मोदी के नाम का ऐलान अगर भाजपा की एकजुटता और जनता की शिरकत के साथ रामलीला मैदान में रैली से हो तो फिर चुनाव के मोड में समूचा देश आ जायेगा और भाजपा के साथ-साथ संघ परिवार भी चुनावी शिरकत शुरू कर देगा. संघ की मोदी को लेकर जो बिसात है, उसके मुताबिक संसदीय बोर्ड में मोदी पर सर्वसम्मति से ठप्पा लगे यानी कोई नेता रूठा हुआ ना लगे.
खासतौर से आडवाणी, सुषमा, मुरली मनोहर जोशी और अनंत कुमार खुले दिल से मोदी के साथ जुड़ें. चूंकि इसके तुरंत बाद मोदी पूरी तरह से चुनावी कमान संभालेंगे, तो उन्हें देश के लीडर के तौर पर रखने के लिए रामलीला मैदान में भव्य रैली हो. इसमें मोदी के नाम का प्रस्ताव लालकृष्ण आडवाणी रखें और समर्थन सुषमा स्वराज करें. फिर वे तमाम नेता मोदी के पक्ष में खुल कर आयें, जो अब तक मोदी के नाम पर रूठे हुए नजर आते रहे हैं. संघ रामलीला मैदान की रैली पर इसलिए भी जोर दे रहा है, क्योंकि वह मनमोहन सरकार को उसी तर्ज पर चुनौती देना चाहता है, जैसी चुनौती केंद्रीय सत्ता को जेपी ने 1975 में दी थी.
महत्वपूर्ण है कि 1975 में जेपी के संघर्ष के साथ आरएसएस खड़ा था. 25 जून, 1975 को जेपी ने गिरफ्तारी से पहले रामलीला मैदान में ही ऐतिहासिक रैली की थी. संघ का मानना है कि भाजपा को भी मोदी की अगुवाई में उसी तरह के संघर्ष की मुनादी रामलीला मैदान से करनी होगी. यानी सरसंघचालक मोहन भागवत अरसे बाद 1975 में सरसंघचालक रहे देवरस की उसी राजनीतिक लकीर पर चलना चाह रहे हैं, जिस पर देवरस ने चल कर पहली बार स्वयंसेवकों को सत्ता तक पहुंचाया था और तब जेपी खुले तौर पर यह कहने से नहीं चूके थे कि अगर आरएसएस सांप्रादायिक है, तो वह भी सांप्रदायिक हैं. और संघ भी उसी इतिहास को मोदी के जरिये दोहराने के मूड में है.
सवाल सिर्फ इतना है कि तब जनसंघ संघ के इशारे पर था, पर इस बार संघ को लेकर भाजपा के भीतर गहरी खामोशी है. लेकिन जिस तरह भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने संघ के साथ बैठक में चुनावी तैयारी का खाका रखा, उसने अगर मोदी की अगुवाई में भाजपा की तैयारी खुल कर बतायी, तो भैयाजी जोशी ने भाजपा के हर नेता के भाषण के उस अंश को पकड ़कर उसके चुनावी मैनिफेस्टो का खाका रखा, जो संघ के एजेंडे हैं. भाजपा फिर संघ की उसी लकीर पर चलने की तैयारी कर रही है, जिस लकीर को सत्ता पाने के लिए एनडीए तले उसने छोड़ दिया था. दरअसल दिल्ली में बैठे भाजपा नेताओं को आरएसएस हर मुद्दे पर खंगाल रहा है और मोदी के जरिये अपने स्वप्न को राजनीतिक साकार देने में लगा है. यानी भाजपा से ज्यादा राजनीतिक तैयारी संघ कर रहा है.
संघ ने तीन स्तर पर काम शुरू किया है. पहला संघ के पुराने लोगों को भी चुनावी मिशन में जोड़ना. दूसरा, भाजपा की जीत का जमीनी आकलन करना और तीसरा मोदी का नाम खुले तौर पर प्रचार करना. इस रणनीति को अमल में लाने के लिए संघ ने बकायदा पूरे देश में हर उस वोटर तक पहुंचने की कवायद शुरू कर दी है, जो कभी न कभी किसी न किसी रूप में संघ से जुड़ा रहा हो. इतना ही नहीं, संघ के प्रति सॉफ्ट रुख रखनेवालों को काम का ऑफर भी किया जा रहा है. इस काम में बूथ संभालने से लेकर अपने क्षेत्र के लोगों को मोदी के हक में वोट डालने के लिए प्रोत्साहित करना तक शामिल है. संघ का खास जोर उन 298 सीटों पर है, जिन पर बीते 33 बरस में भाजपा कभी जीती है. भाजपा के बनने के बाद वह जिस भी सीट पर जीती, वहां दोबारा जीत मिल सकती है, यह संघ का मानना है.
खास बात यह है कि पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर अब तक मोदी के नाम का ऐलान भले नहीं हुआ है, लेकिन संघ ने मोदी का नाम लेकर पुराने संघियों को समेटना शुरू कर दिया है. संघ उन विवादास्पद मुद्दों पर भी इस बार समझौता नहीं करना चाहता है, जो एनडीए की सत्ता के दौरान भाजपा ने ठंडे बस्ते में डाल दिये थे. इसीलिए बैठक में गडकरी ने अयोध्या से लेकर कॉमन सिविल कोड और संघ के गौ मुद्दे से लेकर धारा 370 की राजनीतिक जरूरत पर भाषण दिया. इसे दोबारा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा कैसे बनाये, इस पर भैयाजी जोशी ने अपना मत बताया. यानी संघ को अब लगने लगा है कि अगर भाजपा समेत संघ एकजुट हो नरेंद्र मोदी के पीछे जा खड़ा हो, तो 300 सीटों पर जीत मिल सकती है.(ब्लॉग से साभार)