उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भड़के सांप्रदायिक दंगे में 14 लोगों के मारे जाने और करीब तीन दर्जन लोगों के घायल होने की खबर है. ज्यादा दिन नहीं बीते जब जम्मू के किश्तवाड़ में भड़की सांप्रदायिक हिंसा की लपटों ने पूरे जम्मू क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया था.
पिछले कुछ समय से विभिन्न राज्यों से सांप्रदायिक तनाव की खबरें आ रही हैं. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के मुताबिक 2013 में देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में उछाल आया है. इस साल अब तक ऐसी 451 घटनाएं दर्ज की गयी हैं, जो पिछले पूरे वर्ष के आंकड़े से भी ज्यादा है. गृह मंत्रालय ने पास आते आम चुनावों के मद्देनजर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी की आशंका जतायी है और संवेदनशील राज्यों से एहतियाती कदम उठाने को कहा है. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण सियासतदानों को खासा रास आता है.
चूंकि उत्तर प्रदेश अगले आम चुनाव में राजनीतिक दलों की किस्मत को बिगाड़ या बना सकता है, इसलिए यह आशंका निर्मूल नहीं कही जा सकती कि छोटी सी चिंगारी को हवा देकर दावानल बनाने के पीछे स्वार्थी तत्वों का हाथ हो. किश्तवाड़ के उपद्रव को लेकर भी इस तरह के संदेह जताये गये थे. यहां यह ध्यान में रखना जरूरी है कि ऐसे तत्व दोनों ओर हैं, जिनकी रोटी नफरत की आग पर ही सिंकती है.
तरक्कीपसंद समाज इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकता. यह जरूरी है कि मुजफ्फरनगर और देश के दूसरे हिस्सों में हुए हाल के सांप्रदायिक दंगों की गंभीरता से तफ्तीश की जाये और समाज में नफरत फैलानेवालों, शांति और भाईचारे के माहौल को भंग करनेवालों पर कठोर कार्रवाई की जाये. साथ ही देश के आम नागरिकों और सिविल सोसाइटी को दो मजहबों के बीच तनाव पैदा करनेवालों की साजिशों के प्रति सचेत रहने की भी जरूरत है.
ऐसी घटनाएं केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक बड़ा इम्तिहान होती हैं. वोट का गणित कई बार शासकों को सही और न्यायोचित रास्ता अपनाने से रोकता है, पर उन्हें यह याद रखना चाहिए कि सत्ता का प्राथमिक कर्तव्य अपने प्रत्येक नागरिक के प्राणों की रक्षा करना है. कोई भी सरकार, किसी भी तर्क का सहारा लेकर खुद को इस जवाबदेही से मुक्त नहीं कर सकती.