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खरीद के इंतजार में बेहाल गेहूं किसान

बेमौसम बरसात के कहर के बाद केंद्र सरकार ने किसानों के साथ खड़े होने का भरोसा दिया था. गेहूं की खरीद से संबंधित गुणवत्ता नियमों में ढील देने की घोषणा भी हुई थी. पर, इस महीने के शुरुआती कुछ दिनों में गेहूं खरीद गत वर्ष की तुलना में चार फीसदी कम हुई है. खबरों के […]

बेमौसम बरसात के कहर के बाद केंद्र सरकार ने किसानों के साथ खड़े होने का भरोसा दिया था. गेहूं की खरीद से संबंधित गुणवत्ता नियमों में ढील देने की घोषणा भी हुई थी. पर, इस महीने के शुरुआती कुछ दिनों में गेहूं खरीद गत वर्ष की तुलना में चार फीसदी कम हुई है.
खबरों के मुताबिक अब तक 2.17 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद हो सकी है, जबकि पिछले साल इस अवधि में खरीद की मात्र 2.25 करोड़ टन थी. बीते दिनों खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने संसद में बताया था कि इस वर्ष गेहूं की सरकारी खरीद तीन करोड़ टन से कम रह सकती है, पर उन्होंने यह उम्मीद जतायी थी कि गुणवत्ता नियमों में छूट से इस कमी को काफी हद तक पूरा किया जा सकता है. बारिश और ओलावृष्टि के चलते चालू फसल वर्ष में गेहूं की उपज पूर्व के आकलन 9.57 करोड़ टन से चार से पांच फीसदी कम रहने की आशंका है.
इस बार अच्छे औसत गुणवत्ता के गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. सरकार ने भारतीय खाद्य निगम और उसकी सहायक एजेंसियों को 10 से 50 फीसदी तक क्षतिग्रस्त गेहूं को 3.63 रुपये कम में खरीदने का निर्देश दिया है. लेकिन, कई राज्यों की मंडियों से आ रही खबरों के मुताबिक, गेहूं लेकर पहुंच रहे किसान सरकारी खरीद के इंतजार में परेशान हो रहे हैं.
पिछले महीने की 21 अप्रैल से शुरू हुई सरकारी खरीद कई मंडियों में सिर्फ नौ दिन चली, जबकि खरीद बंद होने की कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गयी है. कई मंडियों में खरीदा गया गेहूं वहीं पड़ा है और खराब गुणवत्ता की आड़ में भुगतान में पेच फंसाया जा रहा है.
सरकार को समझना होगा कि अगर किसान अपनी ऊपज को सही समय और मूल्य पर नहीं बेच पायेंगे, तो यह उनकी तबाही का दूसरा कारण बनेगा. इससे पहले बेमौसम बरसात के बाद के छह हफ्तों में ही महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 150 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली.
देश की 60 फीसदी आबादी खेती पर आश्रित है. ऐसे में किसानों की तकलीफ के समाधान के लिए जहां कारगर दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है, वहीं त्रसदी की इस घड़ी में उसे तात्कालिक राहत की भी दरकार है, जिसे उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेवारी है.

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