प्राण को किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होती है. सभी प्राणी के शरीर में जो स्पंदन है, जो चेतना है, वही प्राण है. शरीर के सभी अंग इसी प्राणशक्ति के कारण साधक स्वरूप को धारण करते हैं. अत: यह प्राण कर्ता-कारक के रूप में हमारी काया में विद्यमान है.
प्राण कर्ता इसी कारण सभी अंगों के संचालन की मुख्य व मूल शक्ति है. दूसरी ओर खेत-खलिहान व जंगल में हरे-भरे पेड़ झूमते व लहराते नजर आते हैं, लेकिन जैसे ही उसमें से प्राण तत्व निकल जाते हैं, तो वह सूख कर बेजान बन जाता है. इसी प्रकार ब्रह्मांड प्राणशक्ति से ही हरा-भरा दिखता है. ग्रह, तारे, उडुगन सभी प्राण के कारण ही नक्षत्रलोक में नाच रहे हैं.
जिन ग्रहों में प्राणशक्ति का आकर्षण नहीं होता, वह मृत बन कर ब्लैकहोल बन जाता है. इसी तरह से संपूर्ण प्रकृति में प्राण तत्व की मौजूदगी से ही फूल खिलते हैं, चिड़ियां गाती हैं, नदी-झरनों से कल-कल निनाद सुनायी पड़ता है. समुद्र में लहरें उठती हैं, मन में काम व क्रोध का वेग उठता है और इसी प्राणशक्ति के कारण ही मनुष्य एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होता है, प्रेम करता है, आलिंगन करता है.
प्राण संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त जीवंत ऊर्जा है, जो ग्रह, नक्षत्र, तारामंडल और प्रकृति तत्व को संचालित कर रही है. प्रकाश, ताप, ध्वनि और विद्युत प्राण के ही स्वरूप हैं. जिस प्रकार मनुष्य ब्रह्मांड से प्राणशक्ति का संचय करता है, उसी प्रकार ग्रह-नक्षत्र भी ब्रह्मांडीय शक्तियों से ऊर्जा का संचय करते हैं.
आचार्य सुदर्शन