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उर्दू के साथ नाइंसाफी क्यों?

सू बा-ए-झारखंड में उर्दू को बिलकुल नजरअंदाज कर दिया गया है. राजधानी रांची के तकरीबन तमाम प्राइवेट अंगरेजी स्कूलों में कहीं उर्दू की पढ़ाई नहीं होती है, जबकि हर इंगलिश मीडियम स्कूल में बड़ी संख्या में मुसलिम बच्चे पढ़ते हैं. हांलांकि सीबीएसइ, आइसीएसइ और झारखंड बोर्ड के पाठ्यक्र में उर्दू विषय शामिल है. इसके बावजूद […]

सू बा-ए-झारखंड में उर्दू को बिलकुल नजरअंदाज कर दिया गया है. राजधानी रांची के तकरीबन तमाम प्राइवेट अंगरेजी स्कूलों में कहीं उर्दू की पढ़ाई नहीं होती है, जबकि हर इंगलिश मीडियम स्कूल में बड़ी संख्या में मुसलिम बच्चे पढ़ते हैं. हांलांकि सीबीएसइ, आइसीएसइ और झारखंड बोर्ड के पाठ्यक्र में उर्दू विषय शामिल है. इसके बावजूद इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. अगर सारे प्राइवेट स्कूलों में प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी तक उर्दू की पढ़ाई शुरू हो जाये, तो आनेवाली पीढ़ी उर्दू से बाविस्ता हो जाये और शायद उर्दू शिक्षकों को भी रोजगार मिल जाये.

हम बीएड कॉलेजों पर निगाह डालें तो पता चलेगा कि उर्दूवालों के साथ कितनी बड़ी नाइंसाफी हो रही है. रांची विवि के तमाम बीएड कॉलेजों में जहां दूसरे विषयों में दस-दस सीटें दी गयी हैं, वहीं उर्दू में सिर्फ एक सीट तय की गयी है. लेकिन अब तक इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया है. सरकार भी सोयी हुई है और यूनिवर्सिटी के इंतजामिया भी. बीएड कॉलेजों में उर्दू की सिर्फ एक सीट देकर क्या झारखंड सरकार तकरीबन 4400 उर्दू शिक्षकों के खाली पड़े पदों को भर पायेगी?

अत: झारखंड के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, रांची विवि के वाइस चांसलर और बीएड बोर्ड कमिटी के तमाम सदस्यों से मेरी दरख्वास्त है कि झारखंड के तमाम बीएड कॉलेजों में उर्दू की सीटें अधिक से अधिक बढ़ाने का अविलंब फैसला करें, ताकि बीएड के आगामी सत्र 2013-14 में झारखंड राज्य में अधिक से अधिक उर्दू शिक्षक तैयार किये जा सकें. मैं झारखंड राज्य की नयी सरकार से पूरी उम्मीद करता हूं कि मेरा मजमून पढ़ कर जल्द से जल्द इस मसले का उचित समाधान निकालेंगे.

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