अब यह तय हो गया है कि रांची-जमशेदपुर सड़क (एनएच-33) निर्धारित समय में नहीं बन पायेगी. कम से कम दो साल और लगेंगे. इस सड़क को इसी वर्ष जून तक फोर लेन कर देना था. यह सड़क ही नहीं, झारखंड की अनेक परियोजनाएं विलंब से चल रही हैं. इसका खमियाजा जनता को भुगतना पड़ता है.
इसकी लागत भी बढ़ जाती है. दरअसल योजना बनाने से लेकर इसके पूरे होने तक मानिटरिंग सिस्टम ठीक नहीं है. रांची-जमशेदपुर सड़क को बहरागोड़ा तक फोर लेना होना है. अभी कई जगहों पर जमीन का अधिग्रहण का मामला फंसा हुआ है. कई जगहों पर वन विभाग की जमीन है, जिसके लिए मंजूरी नहीं मिली है. यह सब काम पहले होना चाहिए था. बिना अधिग्रहण पूरा हुए कहीं मिट्टी भर कर छोड़ दिया गया है, तो कहीं बोल्डर तक डाल दिया गया है.
यह सही है कि जब ये सड़कें बन जायेंगी तो आना-जाना आसान हो जायेगा. वन-वे होने से दुर्घटनाएं कम होंगी. पर अभी इसी सड़क के चलते हादसे हो रहे हैं. अनेक लोगों की मौत हुई है. इसलिए इन सड़कों का समय पर बनना आवश्यक है. आज रांची-हजारीबाग की सड़क बन चुकी है. इससे न सिर्फ समय बच रहा है, बल्कि हादसे भी कम हो रहे हैं. लोग जाम में नहीं फंस रहे हैं. बाइपास बनने से समय बच रहा है, राष्ट्र का ईंधन बच रहा है. ये सब फायदे मिल रहे हैं.
इसलिए सड़कें जितनी जल्द बन जायें, राज्य के लिए बेहतर होगा. जमशेदपुर-बहरागोड़ा के बीच सड़क की स्थिति बहुत बुरी है. बहरागोड़ा के विधायक ने इसके लिए धरना भी दिया था. अन्य दलों ने भी आवाज उठायी थी. कई जगहों पर मरम्मत भी हुई है, लेकिन मरम्मत भर से काम नहीं चलनेवाला. इसलिए इस सड़क को प्राथमिकता के आधार पर जल्द बनाना चाहिए. राज्य में कई पुलों का निर्माण वर्षो से चल रहा है, लेकिन वे पूरे नहीं हो रहे.
समय पर योजना नहीं पूरी होने पर ठेकेदार को मामूली आर्थिक दंड देना पड़ता है. इससे काम नहीं चलनेवाला. योजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने से राज्य को या फिर जनता को जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई मामूली आर्थिक दंड से नहीं की जा सकती. इसलिए सरकार-अफसर ऐसे मामलों में कड़ी नजर रखें और कड़ी कार्रवाई करें, तभी हर काम समय पर हो पायेगा.