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खेल का मजा खराब न करें

अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर योगराज सिंह के लिए बेहतर यही होगा कि खेल में हस्तक्षेप/टिप्पणी से बचें. जो खिलाड़ी है, अगर उसे आपत्ति है, तो वह खुद बोले. मां-पिता और परिवार को बीच में लाने से माहौल और खराब होगा. उन्हें खेल को खेल ही रहने देना चाहिए. युवराज सिंह के पिता […]

अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
योगराज सिंह के लिए बेहतर यही होगा कि खेल में हस्तक्षेप/टिप्पणी से बचें. जो खिलाड़ी है, अगर उसे आपत्ति है, तो वह खुद बोले. मां-पिता और परिवार को बीच में लाने से माहौल और खराब होगा. उन्हें खेल को खेल ही रहने देना चाहिए.
युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह ने भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी पर जिस प्रकार का आरोप लगाया है, जिस स्तर पर जा कर टिप्पणी की है, उसका असर क्रिकेट पर पड़नेवाला है. युवराज सिंह को वर्ल्ड कप (2015) के लिए भारतीय टीम में शामिल नहीं किया गया था. युवराज के पिता इसके लिए धौनी को दोषी मानते हैं. पहले भी वे इस बारे में टिप्पणी कर चुके हैं, पर इस बार तो उन्होंने हद पार कर दी. यहां तक कह दिया कि धौनी भीख मांगेंगे, उनका बुरा हाल होगा, वे घमंडी हैं, रावण का भी घमंड चूर हुआ था, आदि.
योगराज सिंह युवराज सिंह के पिता हैं और अगर किसी के बेटे का चयन टीम में नहीं होता है, तो पिता को दुख होना स्वाभाविक है. यह मानवीय कमजोरी भी है. लेकिन, इसके लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेवार करार देना, उसे कोसना उचित नहीं है. योगराज सिंह खुद भारतीय टीम में रह चुके हैं.
टेस्ट और वन डे मैच खेल चुके हैं. उन्हें पता होगा कि टीम का चयन कैसे होता है. ऐसी बात नहीं है कि जो कप्तान चाहता है, सिर्फ वही होता है. चयनकर्ताओं की बैठक होती है. उसमें कप्तान होते हैं, कोच होते हैं. सभी पहलुओं पर चर्चा होती है, तब जाकर टीम का चयन होता है. हां, कप्तान की भी बात सुनी जाती है और कप्तान अगर मजबूत हो, प्रभावशाली हो, तो उसकी बात को जल्दी कोई काटना नहीं चाहता. मैच में कौन से 11 खिलाड़ी खेलेंगे, यह कप्तान पर निर्भर करता है, पर कप्तान को असीमित अधिकार नहीं होता.
हर कोई चाहता है कि वर्ल्ड कप की टीम में उसका भी नाम हो. युवराज, सेहवाग, जहीर खान, हरभजन सभी चाहते थे कि उनका नाम हो. लेकिन जिनका चयन नहीं हुआ, अगर उनके पिता लाठी लेकर मैदान में उतरने लगे, तो इससे कुछ बनेगा नहीं, बल्कि खिलाड़ी की ही फजीहत होगी.
जैसा आचरण या व्यवहार योगराज सिंह कर रहे हैं, उसका दुष्परिणाम उन्हें नहीं, बल्कि उनके पुत्र युवराज सिंह को भुगतना पड़ेगा. यह बहस का विषय हो सकता है कि युवराज सिंह को क्यों नहीं लिया गया? इसके लिए तर्क भी दिये जा सकते हैं. पिछले वर्ल्ड कप के हीरो युवराज सिंह ही थे. अगर भारतीय टीम चैंपियन बनी, तो इसमें युवराज की बड़ी भूमिका थी. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. उसके बाद उन्होंने कैंसर को मात देकर मैदान में बेहतरीन प्रदर्शन किया. रणजी ट्रॉफी में तीन-तीन शतक लगाये. इससे उनका दावा मजबूत हुआ था. लाजवाब बल्लेबाज, बेहतरीन क्षेत्ररक्षक और अच्छे गेंदबाज.
हर तरह से टीम इंडिया में होने के प्रबल दावेदार. इसके बावजूद टीम में नहीं चुने जाने से एक बार हर किसी को झटका लगा था. दावेदार तो सेहवाग भी थे. वे भी रणजी में बेहतर खेल रहे थे, लेकिन टीम के रणनीतिकारों का लक्ष्य होता है. उनके सोचने का तरीका अलग होता है. संभव है कि युवराज के मामले में चयनकर्ता, कोच या फिर कप्तान के मन में उनकी कोई कमी, उनकी खूबियों पर भारी पड़ी हो.
वर्ल्ड कप खत्म हो गया है. भारत सेमीफाइनल तक पहुंचा. अब इसका विश्लेषण अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है. भारतीय टीम को कमजोर टीम माना गया था. खास तौर पर गेंदबाजी में. उसके बावजूद यह टीम सेमीफाइनल तक खेली, यह बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है. कप्तान और खिलाड़ियों की प्रशंसा की जा सकती है. इसके उलट युवराज सिंह के पक्ष में तर्क कम नहीं हैं. यह कहा जा सकता है कि युवराज होते, तो भारतीय टीम फाइनल खेलती, हो सकता तो कप भी जीतती.
अगर युवराज टीम में होते तो रवींद्र जडेजा ही बाहर जाते. वैसे भी जडेजा इस वर्ल्ड कप में खरे नहीं उतरे. खेल में यह सब चलता रहता है कि ‘यह होता तो वह हो जाता’. भारतीय टीम सेमीफाइनल खेल कर वापस आ चुकी है. अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से फायदा नहीं है.
संभव हो कि योगराज सिंह जो मुद्दे उठा रहे हैं, उससे युवराज सिंह को कोई लेना-देना नहीं हो. लेकिन, बदनामी तो युवराज की भी होगी. अभी आइपीएल चल रहा है. 16 करोड़ में युवराज को खरीदा गया है. बड़ा दाम लगाया गया है.
धौनी और युवराज का आमना-सामना मैच में होगा. ऐसे आरोपों से खेल का मजा किरकिरा होगा. योगराज सिंह का यह तर्क कि पिछले वर्ल्ड कप के फाइनल में नंबर छह पर बल्लेबाजी करनेवाले धौनी नंबर चार पर खेलने क्यों आ गये, जबकि युवराज पैड पहन कर आये थे. इस बात को याद रखना चाहिए कि यह कप्तान का अधिकार है कि कौन किस नंबर पर बैटिंग करेगा. ऐसे भी फाइनल में नंबर चार पर धौनी ने यादगार पारी खेल कर भारत को चैंपियन बनाया था.
इसलिए योगराज सिंह के लिए बेहतर यही होगा कि खेल में हस्तक्षेप/ टिप्पणी से बचें. जो खिलाड़ी है, अगर उसे आपत्ति है, तो वह खुद बोले. मां-पिता और परिवार को बीच में लाने से माहौल और खराब होगा. उन्हें खेल को खेल ही रहने देना चाहिए.

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