झारखंड में नयी सरकार ने 100 दिन पूरे कर लिये हैं. यह कोई इतनी बड़ी अवधि नहीं कि इसमें किसी सरकार के कामकाज का आकलन किया जा सके, लेकिन चूंकि यह एक रस्म सी बन गयी है, इसलिए एक नजर डाल लेते हैं. बीते 14 सालों में झारखंड अपने कुशासन और राजनीतिक अस्थिरता के लिए देश भर में चर्चित रहा.
इसलिए जब राज्य बनने के बाद पहली बार, चुनाव-पूर्व गंठबंधन को बहुमत मिला, तो लोगों में यह उम्मीद स्वाभाविक रूप से जागी कि नयी सरकार बिना लड़खड़ाये चलेगी और अच्छा शासन देगी. राज्य को ऐसा मुख्यमंत्री भी मिला जो जमीन से जुड़ा हुआ है. झारखंड में युवाओं के सामने बेरोजगारी की समस्या गंभीर है. बड़े पैमाने पर सरकारी पद खाली पड़े हैं, पर नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं. क्योंकि स्थानीयता नीति अभी तक तय नहीं हो पायी है. पर अच्छी बात यह है कि रघुवर दास सरकार इस पर तेजी से काम कर रही है.
सरकार के राजस्व मंत्री ने कहा है कि स्थानीयता नीति इसी महीने लागू हो जायेगी. अगर सरकार यह काम कर ले गयी, तो उसकी बड़ी उपलब्धि होगी. 14 साल में जो काम नहीं हो पाया, वह 100 दिन से कुछ ही ज्यादा वक्त में हो जायेगा. राज्य बनने के समय से ही एक और विषय लगातार चर्चा में रहता है, वह है नयी राजधानी के निर्माण का. नये मुख्यमंत्री इस दिशा में काफी सक्रियता दिखा रहे हैं. इसमें अगर सफलता मिलती है, तो यह भी बड़ी उपलब्धि होगी. लेकिन जनता की उम्मीद इतनी भर नहीं है. सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बेहद खराब है और इन दिशा में सरकार कुछ ज्यादा करती नहीं दिख रही. सरकारी स्कूलों में अंडा परोसने से बच्चों के पोषण का स्तर सुधर सकता है, पर शिक्षा का नहीं.
पीएचसी की तो छोड़िए, सदर अस्पतालों में ठीक से इलाज नहीं हो पा रहा. जिस पीपीपी मोड के सहारे सरकार है, उससे गरीबों को इलाज मिल पाने की उम्मीद नहीं दिखती. झारखंड में एक बड़ा मसला माओवाद है, जिसे सरकार दूसरे उग्रवादी संगठनों के जरिये खत्म करने की नीति अपना रही है. यह घातक है. रघुवर दास के सामने सुनहरा मौका है. उनके पास बहुमत है. केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार है. अब उनका संकल्प होना चाहिए- अरे अभी तो मीलों मुझको, मीलों मुझको चलना है..