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नेतन्याहू की चौथी पारी के निहितार्थ
इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी के नेतृत्व में फिर गंठबंधन सरकार बनना तय हो गया है. इजरायल के लोगों की सुरक्षा संबंधी चिंताओं, नेतन्याहू की आर्थिक नीतियों, फिलस्तीन के साथ उनके अड़ियल रवैये और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा ईरान से बातचीत के मसले पर मतभेद आदि के कारण माना जा […]
इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी के नेतृत्व में फिर गंठबंधन सरकार बनना तय हो गया है. इजरायल के लोगों की सुरक्षा संबंधी चिंताओं, नेतन्याहू की आर्थिक नीतियों, फिलस्तीन के साथ उनके अड़ियल रवैये और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा ईरान से बातचीत के मसले पर मतभेद आदि के कारण माना जा रहा था कि जायोनिस्ट यूनियन के नेतृत्व में उदारवादी गंठबंधन सत्ता में आ सकता है.
गाजा पर हमलों, फिलस्तीनियों द्वारा स्वतंत्रता के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती सक्रियता, मध्य-पूर्व में अशांति आदि मामलों के साथ उपर्युक्त कारकों ने इस चुनाव में दुनिया की दिलचस्पी बहुत बढ़ा दी थी. अब कुछ अति-दक्षिणपंथी राजनीतिक समूहों के साथ शुरू होनेवाले नेतन्याहू के चौथे कार्यकाल के दौरान पर्यवेक्षकों की नजर मध्य-पूर्व की राजनीति और ओबामा प्रशासन के साथ इजरायल के संबंधों पर होगी.
नेतन्याहू स्वतंत्र फिलस्तीनी राष्ट्र की संभावना से इनकार कर चुके हैं और ईरान के साथ अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों को इजरायल तथा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरनाक बता चुके हैं. हालांकि परदे के पीछे वे सऊदी अरब और मिस्र के साथ कुछ सांठगांठ बनाने में कामयाब रहे हैं, पर फिलस्तीनियों की जमीन पर लगातार यहूदी बस्तियां बनाने और गाजा पर हमले के कारण मध्य-पूर्व के देशों में इजरायल-विरोधी माहौल बहुत सघन है.
नेतन्याहू की नीतियों के कारण बड़ी संख्या में फिलस्तीनी और अरबी लोग हमास की नीतियों के साथ खड़े होने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जिसे ईरान के अलावा कई अतिवादी समूहों का परोक्ष समर्थन है. खूंखार इसलामिक स्टेट भी इजरायल के खिलाफ बयान देता रहा है. फिलस्तीन की जायज मांगों के साथ कई पश्चिमी देश भी खड़े हो रहे हैं. ऐसे में ओबामा के साथ बढ़ती तल्खी नेतन्याहू के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है.
फिलहाल ऐसी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है कि नयी सरकार अपने रवैये में बहुत बदलाव करेगी. जीत के बाद के उनके बयान इसी ओर संकेत करते हैं. हमास और फतह की तरफ से आयी प्रतिक्रियाएं भी स्वाभाविक हैं. इस स्थिति में क्षेत्रीय अस्थिरता और इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय खींचतान में जल्द किसी सकारात्मक बदलाव की उम्मीद बहुत कम है.
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