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‘मर्दानी’ के देश की ऐसी खराब छवि!

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची सुबह-सुबह गोलुवा ने काका के सामने यक्ष प्रश्न रखा- ‘‘बाबा! अगर किसी महिला के शादीशुदा होने के बारे में जानना हो तो उसके गले में मंगलसूत्र या माथे पर सिंदूर देख कर आसानी से पता लगाया जा सकता है. लेकिन पुरुष के शादीशुदा होने के बारे में कैसे जानेंगे?’’ इस […]

लोकनाथ तिवारी
प्रभात खबर, रांची
सुबह-सुबह गोलुवा ने काका के सामने यक्ष प्रश्न रखा- ‘‘बाबा! अगर किसी महिला के शादीशुदा होने के बारे में जानना हो तो उसके गले में मंगलसूत्र या माथे पर सिंदूर देख कर आसानी से पता लगाया जा सकता है. लेकिन पुरुष के शादीशुदा होने के बारे में कैसे जानेंगे?’’
इस पर काका ने इस खाकसार की इज्जत मटियामेट करके रख दी- ‘‘अरे बबुआ! अपने बाप की सूरत नहीं देखता. जिसके चेहरे पर हर समय बारह बजे हों, रोनी सूरत बनाये रहे, चेहरे से बेचारगी झलकती रहे, वह यकीनन शादीशुदा भारतीय पुरुष होता है.’’ किशोरावस्था से जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे गोलुवा ने इसके बाद जो कहा उसने काका को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. गोलुवा ने कहा, ‘‘जिस देश में महिलाएं इतनी दबंग हैं कि पुरुष डर कर रहते हैं, तो उसकी छवि दुनिया में स्त्री-विरोधी क्यों बन गयी है?’’ इसका जवाब काका दें भी तो क्या दें.
स्त्रियों के खिलाफ चंद घटनाओं से दुनिया में यह राय बन रही है कि भारत मूलत: एक स्त्री-विरोधी देश है, भले ही वह अपनी सभ्यता-संस्कृति का डंका पीट कर खुद को एक श्रेष्ठ समाज बताने की कोशिश कर रहा हो. पिछले दिनों जर्मनी की लिपजिग यूनिविर्सटी की एक प्रोफेसर ने तो एक भारतीय छात्र को अपने यहां इंटर्नशिप देने से इसलिए मना कर दिया कि भारत में बलात्कार बहुत होते हैं, सो भारतीय पुरु षों को भरोसेमंद नहीं माना जा सकता. जिस देश में पुरुषों की अपनी पत्नियों के समाने घिग्घी बंध जाती है, उस देश के बारे में ऐसी धारणा को हम सही कैसे ठहरा सकते हैं?
बाहरी लोगों को यह नहीं सूझता कि भारत में बलात्कार और स्त्री के उत्पीड़न में शामिल लोगों से लाखों गुना बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जो अपना सब कुछ झोंक कर इन बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाना चाहते हैं, और उठा भी रहे हैं. इसकी प्रेरणा उन्हें कहीं बाहर से नहीं, अपनी संस्कृति से ही मिलती है, जिसमें औरत-मर्द की बराबरी और स्त्री के प्रति सम्मान का भाव सदा से मौजूद रहा है. नारी को पूजे जाने की बात आज भले ही लफ्फाजी लगे, लेकिन सभी धार्मिक अनुष्ठानों में पति-पत्नी की एक साथ उपस्थिति की अनिवार्यता कोई छोटी चीज नहीं है.
एक आम हिंदुस्तानी का मन इन्हीं चीजों से बनता है और यह उसे साहस के साथ बुराइयों का सामना करने के लिए भी तैयार करता है. देश को कलंकित करने वाले कुछ लोग बाकी करोड़ों लोगों पर और उनकी छवि पर भारी नहीं पड़ सकते. मैं तो कहता हूं कि किसी शादीशुदा वीर बहादुर में ऐसा साहस नहीं है, जो अपनी पत्नी की बातों को सरेआम काट दे. जिस देश में शादीशुदा लोग अपनी पत्नियों की झूठी व गलत बात को भी शिरोधार्य करने में अपनी व परिवार की भलाई समझते हैं, लाख प्रताड़ना के बावजूद सात जन्मों तक पति बनने की कसमें खाते हैं, उस देश के बारे में तो कम से कम ऐसी धारणा नहीं ही होनी चाहिए.

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