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क्या जनता रेत-पत्थर खायेगी!

इन दिनों पूरे देश में भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश पर चर्चा हो रही है. इसे सदन के दोनों सदनों में पास कराने के लिए सरकार एड़ी से चोटी का जोर लगा रही है, लेकिन वह इस बात को भूल गयी है कि यह किसानों के लिए नुकसानदेह है. यदि किसानों की […]

इन दिनों पूरे देश में भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश पर चर्चा हो रही है. इसे सदन के दोनों सदनों में पास कराने के लिए सरकार एड़ी से चोटी का जोर लगा रही है, लेकिन वह इस बात को भूल गयी है कि यह किसानों के लिए नुकसानदेह है.
यदि किसानों की जमीन अधिगृहीत कर ली जायेगी, तो वे कहां जायेंगे? वे क्या करेंगे? उनके बच्चों का भविष्य का क्या होगा? इस तरह के कई अनुत्तरित सवाल खड़े हो रहे हैं.
पूरा देश किसानों पर निर्भर है. इन किसानों द्वारा उपजाये जानेवाले अनाज से लोगों का पेट भरता है. जब किसानों की जमीन ही नहीं रहेगी, तो लोगों का पेट कहां से भरेगा? देश के निवासी अनाज के बदले रेत-पत्थर का भोजन तो नहीं करेंगे? आज स्थिति यह है कि सरकार खेती को प्रोत्साहित करने के बजाय अनाजों के आयात को प्रोत्साहित कर रही है. लोगों का पेट भरने के लिए विदेशों से अनाज मंगवाना पड़ रहा है. आखिर ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों हो रही है, यह सोचनेवाली बात है.
लोकतंत्र में जनता का राज कहा जाता है, लेकिन यहां जनता दरकिनार कर दी जा रही है और सत्तासीन लोग मनमर्जी से विधेयक पास करवा रहे हैं. किसानों की जमीन जबरदस्ती अधिगृहीत करनेवाला विधेयक पास कराया जा रहा है. किसानों को मरने के लिए मजबूर किया जा रहा है. सरकार उनकी जमीन लेकर नयी तकनीक स्थापित करने जा रही है. यह कैसी तकनीक आयेगी किसी को पता नहीं है.
जब देश के किसान ही खुश नहीं रहेंगे, तो देश में खुशहाली कैसे आयेगी? देश के नेताओं की कोशिश तो यह होनी चाहिए कि इस विधेयक को संसद में पास ही नहीं होने देना चाहिए. सरकार इसे वापस ले आये, तो बेहतर होगा. इसी में सबकी भलाई है.
सरिता कुमारी, बोकारो

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