झारखंड में सरकार गठन के लगभग दो माह पूरे होने को हैं. विकास के नाम का ढिंढोरा पीट कर सत्ता में आनेवाली भाजपा सरकार की नीयत भी अब साफ नहीं लग रही है. शपथ ग्रहण समारोह में केवल चार मंत्रियों को शपथ दिलायी गयी थी, लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या ये चारों मंत्री सरकार के पूरे काम को सुचारु रूप से गति दे पा रहे हैं?
यदि नहीं, तो कैबिनेट विस्तार में इतना विलंब क्यों? हो सकता है, इसके पीछे सरकार की राजनीतिक मजबूरियां हों, लेकिन इससे विपक्ष के पाले में एक मुद्दा भी चला गया है और अंतत: इसमें राज्य की भोली-भाली जनता ही पिस रही है. राज्य गठन के बाद पहली बार किसी पार्टी को बहुमत मिला है, जिससे राज्य में स्थायी सरकार के गठन का सपना पूरा हो पाया है. अब इस मौके को भुनाते हुए विकास की गंगा बहाने के बजाय, सरकार विकास-विमुखी हो गयी है.
सूरज हेंब्रम, पोड़ैयाहाट, गोड्डा