।। चंदन श्रीवास्तव ।।
(एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस)
– दुर्गा की कर्तव्यपरायणता के कोरस में हम शामिल हों, यह जायज है, लेकिन उतना ही जरूरी है अपने उन सपनों को कोसना जो भ्रष्टाचार का कारण खुद के भीतर नहीं, कहीं और खोजती है.–
एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल को निलंबित करके कल तक यूपी सरकार मूछों पर ताव दे रही थी. समाजवादी पार्टी के नेता बदले की आग में उबल कर बोल रहे थे ‘अपने को ईमानदार और राजनेताओं को भ्रष्ट जतानेवाली यह अधिकारी कहीं ज्यादा कठोर सजा के लायक है.’ लेकिन आज वही यूपी सरकार मुंह छिपाने के लिए चोर दरवाजे खोज रही है. मध्यवर्ग, मीडिया और नौकरशाही की सक्रियता के बीच सपा के सांसद कह रहे हैं कि ‘एसडीएम के निलंबन मामले में बीच का कोई न कोई रास्ता निकल ही आयेगा.’
भाव–मुद्रा में यह बदलाव इसलिए आया क्योंकि मीडिया इस मामले में मुस्तैद है. भला हो टीवी चैनल के उस स्टिंग ऑपरेशन का जिसने एक झटके में दुर्गा के निलंबन का सच सबके सामने कर दिया. लोगों ने देखा–सुना यूपी एग्रो के चेयरमैन नरेंद्र भाटी के प्रतिशोधी हुंकार को कि कैसे उन्होंने नोएडा में बैठे–बैठे मुलायम सिंह यादव के पास फोन घुमाया और महज 40 मिनट के भीतर गौतमबुद्ध नगर के डीएम कार्यालय में एसडीएम दुर्गाशक्ति के निलंबन का आदेश पहुंच गया.
मीडिया ने भाटी की जन्मकुंडली सबके सामने खोल दी और सवाल खड़ा कर दिया कि जो आदमी विधायक तक नहीं, उसका रुतबा इतना कैसे बुलंद है कि सपा ने उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे रखा है? एसडीएम दुर्गा के निलंबन के बाद जो आदमी ग्रामीणों की सभा में अपने कारनामे को बयान करते हुए खुद को लोकतंत्र का नायक बना कर पेश कर रहा था, मीडिया ने उसकी खलनायकी उजागर कर दी. भाटी दुर्गा को ‘सांप्रदायिक सौहाद्र्र बिगाड़ने वाला अधिकारी’ साबित करने पर तुले थे, पर स्टिंग ऑपरेशन के बाद उन्हें डर ये सता रहा होगा कि कहीं वह खुद नोएडा में सक्रिय खनन–माफिया का सरदार न साबित हो जायें.
मामले से जुड़े सारे तथ्य 2010 बैच की आइएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल की कर्तव्यपरायणता की दुहाई दे रहे हैं. गौतमबुद्ध नगर के एसडीएम के रूप में बीते 26 जुलाई को उन्होंने जिले के डीएम को चिट्ठी में लिखा था कि नोएडा एक्सप्रेस–वे पर निरीक्षण के दौरान अवैध खनन की रेत–बालू ले जाते 15 ट्रक पकड़े गये और 10 व्यक्तियों के विरुद्ध एफआइआर दर्ज की गयी. 27 जुलाई को उनका निलंबन हुआ और 28 जुलाई को स्टिंग ऑपरेशन के जरिये निलंबन कराने वाले नरेंद्र भाटी की गर्वोक्ति सबके सामने आ गयी. डीएम ने रिपोर्ट लगायी कि मसजिद की दीवार ग्रामीणों ने गिरायी थी जो एक तरह से दुर्गा के बयान की पुष्टी करता है कि गांव में सांप्रदायिक सद्भाव का कोई खतरा ना था.
मध्यवर्ग का सबसे मुखर तबका फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय है. वह दुर्गा की कर्तव्यपरायणता के पक्ष में मुहिम चला रहा है. मुख्यधारा का मीडिया मुस्तैद है, वह सपा के स्थानीय नेता और नोएडा में सक्रिय खनन–माफिया की पोल खोल रहा है. नागरिक–संगठन आगे आकर लोगों को चेता रहे हैं कि नेताओं और खनन–माफिया की सांठगांठ ईमानदार लोगों की जान ले रही है.
अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य कह रहे हैं कि धार्मिक भावनाओं की आड़ लेकर सियासत नहीं होनी चाहिए. किसी भी लोकतंत्र के लिए यह एक गौरवशाली क्षण होना चाहिए, क्योंकि चतुर्दिक यही आवाज गूंज रही है कि लोकतंत्र में किसी एक आदमी या संस्था का राज नहीं चलता, कानून का राज चलता है और चलना चाहिए.
लेकिन क्या गौरव के इस क्षण में कोई ऐसी बात नजर से ओझल है जो मीडिया की मुस्तैदी और सफाई–पसंद मध्यवर्ग की पोल खोले? क्या कोई ऐसी बात है, जो एक अधिकारी की ईमानदारी की दुहाइयों बीच मीडिया में आने से रह गयी या फिर जिसे ‘अछूत’ मान कर मध्यवर्ग कतराकर निकल गया है? निर्माण–कार्य होगा तो ईंट–बालू–सीमेंट–लोहा चाहिए ही चाहिए. ऐसे में खनन अनिवार्य है, चाहे वह वैध तरीके से हो या अवैध तरीके से. कहीं खनन–कार्य को वैधता देने की कोशिश हो रही है, जैसे ओड़िशा के नियमगिरि में, तो कहीं यह अवैध पर अबाध तरीके से हो रहा है, जैसे नोएडा में.
नोएडा या फिर उस सरीखा निर्माण–कार्य का केंद्र बना कोई और क्षेत्र यों ही नहीं पनपता. उसके पनपने के पीछे देश की आर्थिक–वृद्धि दर को ऊंचा से ऊंचा बनाये रखने का विचार काम करता है. देश का मध्यवर्ग आर्थिक–वृद्धि के विचार से सहमत है. उसे इस तथ्य से खुशी होती है कि देश की जीडीपी में रीयल–एस्टेट की हिस्सेदारी बढ़ कर इस साल 6.3 फीसदी हो गयी है और कुल 76 लाख रोजगार अकेले इसी क्षेत्र में सृजित होगा. मीडिया और मध्यवर्ग यह नहीं देख पा रहा कि नोएडा सरीखे उपनगर में घर बसाने की लालसा देश में किसान जन–जीवन की लाश बिछा रही है.
ईमानदार अधिकारी बनाम भ्रष्ट राजनीति की ‘दुर्गाशक्ति–कथा’ में कहां आ पाया यह तथ्य कि जीडीपी में रीयल एस्टेट का योगदान बढ़ा ही तब, जब कृषि–क्षेत्र का जीडीपी में योगदान घटते–घटते 14 फीसदी रह गया है, जबकि जीविका के लिए देश की 58 फीसदी आबादी अब भी खेती–किसानी पर ही निर्भर है. रीयल एस्टेट का कारोबार किसानी की जमीन पर ही होता है, जबरदस्ती हो तो हथियाना कहा जाता है और मान–मनौव्वल से हो तो उसे ‘लोकहित में किया गया अधिग्रहण’ कहा जाता है.
खनन–कार्य प्रकृति और प्रकृति के भीतर पनाह पाने वाले परंपरागत समुदाय को मिटा कर ही होता है, चाहे गोली–बंदूक के बल पर हो या मुआवजे की बड़ी से बड़ी रकम देकर. हर शहरीकरण की नींव किसी न किसी गांव की कब्र खोद कर रखी जाती है और हर खनन जल–जंगल–जमीन से आदमी के जरूरी रिश्ते पर कुठाराघात करता है– इस तथ्य को नोएडा के निवासियों से ज्यादा बेहतर कौन जानता होगा? आखिर यह वही नोएडा है जहां चार साल पहले यूपी की सरकार ने सोलह गांवों से खेती की 2,000 हेक्टेयर जमीन साढ़े आठ सौ रुपये प्रति वर्गमीटर की कीमत देकर ले ली थी.
बिल्डरों को दस से बारह हजार रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से बेची गयी, ताकि मध्यवर्ग का शहर में बसने का सपना ढाई लाख फ्लैट बना कर साकार किया जा सके. याद कीजिए तब गोली चली थी, किसान मरे थे, अदालत ने जमीन लौटाने को कहा और आज जो मध्यवर्ग ईमानदार अधिकारी की कर्तव्यपरायणता के पक्ष में मोर्चा खोले है, उसी के तकरीबन 6,500 सदस्य अदालत में इस अफसोस के साथ अर्जी लगाने पहुंचे थे कि हाय! हमें फ्लैट नहीं मिला, हमारा पैसा मारा गया.
सोचिए कि कल रेत–बालू का खनन–कार्य कानूनन वैध करार दे दिया जाये तो क्या होगा? तब बात एकदम ही उलट जायेगी. दुर्गा सरीखे ईमानदार ऑफिसर बालू से लदे ट्रक पकड़ते नहीं, गंतव्य पर सही सलामत पहुंचाने की ड्यूटी निभाते पाये जायेंगे. दुर्गा की कर्तव्यपरायणता के कोरस में हम शामिल हों, यह जायज है, लेकिन उतना ही जरूरी है अपने उन सपनों को कोसना जो भ्रष्टाचार का कारण खुद के भीतर नहीं, कहीं और खोजती और उस पर हमलावर हो उठती है.