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एक तो बीमार, ऊपर से पत्नी से तकरार

घर लौटे वक्त बारिश में भीग गया था. घर पहुंचा तो बीवी ने हमदर्दी जताने के बदले कहा रेनकोट का अचार डाल रहे थे, पहन नहीं सकते थे. बीमार पड़े तो मैं कुछ करनेवाली नहीं..हां नहीं तो! इस तकियाकलाम ने मुङो चुप रहने पर मजबूर किया. खाने में बिरयानी देख मैं गम भूल गया. ख्याल […]

घर लौटे वक्त बारिश में भीग गया था. घर पहुंचा तो बीवी ने हमदर्दी जताने के बदले कहा रेनकोट का अचार डाल रहे थे, पहन नहीं सकते थे. बीमार पड़े तो मैं कुछ करनेवाली नहीं..हां नहीं तो! इस तकियाकलाम ने मुङो चुप रहने पर मजबूर किया. खाने में बिरयानी देख मैं गम भूल गया. ख्याल आया कि मैंने तो चिकेन खरीदा नहीं था. फिर आया कहां से? मुसीबत से बचने के लिए मैंने पत्रकार वाला दावं मारा. मुस्कुराते हुए कहा, हाय तुम कितनी अच्छी हो. मेरा कितना ख्याल रखती हो. बहुत दिनों से बिरयानी खाने की ख्वाहिश थी. पर, तुमने मेरे दिल की सुन ली. आज तो सरप्राइज़.. बीवी की अंगरेजी अच्छी है.

सो, बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ी. मुङो बनाओ मत. मैं ने सर पर राइस रख कर नहीं, चूल्हे पर रख कर पकायी है, समङो! यह मत सोचो कि बिरयानी तुम्हारे लिए पकायी हूं. दुआएं भेजो मेरी अम्मा को. कई दिनों तक इंतजार कराने के बाद आने से मना कर दिया. वरना खाते आज बिरयानी. अम्मा की आने खबर पर मैंने पिछले ही हफ्ते चिकेन मंगा कर फ्र ीज में रख दिया था. अब ना पकाती तो खराब हो जाता.

हां नहीं तो! इतना सुन कर पिछले हफ्ते जेब खर्च से बचाये पैसों के गुम होने का राज फाश हो गया. मुङो शक तो पहले से ही था. पैसों की खोजबीन के बीच ही बीवी ने बगैर कुछ पूछे ही कहा था होश में तो रहते नहीं हो, पैसा बाहर गिरा कर चले आये हो और घर में ढूंढ़ रहे हो. नहीं मिलेगा तो इल्जाम मेरे ही सिर मढ़ोगे. इतना सुन कर मैंने ढूंढ़ना बंद कर दिया था. बिरयानी पकाने की कहानी सुन कर लगा कि मैं बाहर तो तीसमार खां हूं, लेकिन घर में दाल बराबर भी नहीं. इतना सोच कर मैं भी चादर तान कर सो गया. रात को बुखार चढ़ा. किसी तरह रात कटी.

सुबह आंख लग गयी. उठने में देर हुई,तो बीवी ने दूर से ही आवाज लगायी.अरे ओ, क्या बात है? कब तक मुर्दे की तरह बिस्तर पकड़े रहोगे. रोज तो सवेरे ही ऐसे भागते हो जैसे तुम नहीं जाओ तो अखबार ही नहीं छपे. बीवी के ताने सुन कर मैंने कहा तेज बुखार है, दफ्तर नहीं जाऊंगा. बीवी ने फिर ताना मारा बगैर सड़क देखे तुम्हारा पत्रकार मन कैसे मानेगा? इतना सुन कर मैंने कहा, मुङो बुखार क्या लगा, तुम्हारी तो बन आयी. जाओ बिरयानी उड़ाओ. इतना सुनते ही वह मुंह बना कर चली गयी. थोड़ी देर बाद वह मेरी तरफ थैला लिये आती दिखी. बीमारी में बाजार जाने से बचने के लिये मैंने जबरन कराहना शुरू किया. पर, बीवी पास आ कर बोली, बाप रे, दादा रे मत करो. उठो और चिकेन लाओ. मैंने कहा, मुङो चिकेन नहीं खाना. बीवी ने पल्लू झटक कर कहा तुम्हें खिला कौन रहा है. अम्मा आ रही हैं. नहीं लाओगे तो क्या तुम्हारा सिर खायेंगीं. मेरा सिर नहीं चिकेन ही खायेंगीं, कहते मैंने थैला पकड़ा और बाजार की ओर चल पड़ा. रास्ते भर सोचता जा रहा था कि क्या हर घर की यही कहानी है.. या मेरे साथ ही पिछले जनम का बदला लिया जा रहा है.

शकील अख्तर

प्रभात खबर,रांची

shaIkeel. akhtar@prabhatkhabar.in

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