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मौत को दावत देता मिड डे मील

* खास पत्र ।। मुहम्मद असलम जिया ।। (पांकी, पलामू) पिछले दिनों बिहार के सारण में मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की मौत हो गयी. यह केवल सारण जिला के एक विद्यालय का मामला नहीं, बल्कि देश के तमाम सरकारी विद्यालयों की कमोबेश यही स्थिति है, जहां एक तरफ शिक्षकों एवं भवनों की […]

* खास पत्र

।। मुहम्मद असलम जिया ।।

(पांकी, पलामू)

पिछले दिनों बिहार के सारण में मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की मौत हो गयी. यह केवल सारण जिला के एक विद्यालय का मामला नहीं, बल्कि देश के तमाम सरकारी विद्यालयों की कमोबेश यही स्थिति है, जहां एक तरफ शिक्षकों एवं भवनों की कमी है तो दूसरी तरफ अशिक्षित एवं अप्रशिक्षित रसोइया को बहाल कर दिया गया है.

पहले इन अप्रशिक्षित रसोइयों के शिकार अपने परिवार के सदस्य होते थे वहीं अब इन्हें बेरोजगार लाचार समझ कर रसोइया के रूप में रख लिया गया है जो भोजन बनाने तथा उनकी बारीकियों से भी अवगत नहीं हैं. उन्हें साफसफाई की जरा भी परवाह नहीं. कई रसोइये तो काम के वक्त नशे में लिप्त रहते हैं.

अब ऐसे में उनसे जिम्मेदारीपूर्वक काम और गुणवत्तायुक्त खाने की अपेक्षा कैसे रखी जा सकती है? इतना ही नहीं, अधिकांश विद्यालयों में किचन शेड नदारद हैं, जहां भोजन खुले आसमान में या पेड़ों या घासफूस की झोपड़ियों में बनाये जाते हैं, जहां धूलधुआं, कीड़ेछिपकली गिरने की संभावना बनी रहती है.

खुले स्थान में भोजन बनाने के क्रम में कोई भी असमाजिक तत्व वैमनस्यता से ग्रस्त होकर पक रहे खाने में जहरीला पदार्थ डाल सकता है. वहीं, एमडीएम के लिए चावल, दाल, सब्जी का भी हेरफेर होता है. शिक्षकों की कमी तो पहले से ही थी, ऐसी स्थिति में उन्हें रसोई घर का निरीक्षण करने की ताकीद करना कितना उचित है?

ऐसी स्थिति में शिक्षा तथा भोजन दोनों का गुणवत्तापूर्ण होना कैसे संभव है? शिक्षकों और अभिभावकों की लंबे समय से यह मांग रही है कि एमडीएम से शिक्षकों को मुक्त किया जाये, चूंकि इससे शिक्षा का स्तर गिर रहा है और अब तो बच्चों की जिंदगी ही खतरे में दिखने लगी है. तब सरकार इनकी मांगों पर ध्यान क्यों नहीं देती?

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