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प्राथमिकता में नीचे आयी उच्च शिक्षा भी

चालू वित्त वर्ष में उच्च शिक्षा के लिए आवंटित 16,900 करोड़ में से केंद्र ने 3,900 करोड़ की कटौती कर दी है. इसका असर आइआइटी के उन आठ नये संस्थानों पर पड़ेगा, जो चालू सत्र में स्थायी शैक्षणिक परिसर पाने का सपना संजोये बैठे थे. जिस देश में नॉलेज कमीशन कह चुका हो कि उच्च […]

चालू वित्त वर्ष में उच्च शिक्षा के लिए आवंटित 16,900 करोड़ में से केंद्र ने 3,900 करोड़ की कटौती कर दी है. इसका असर आइआइटी के उन आठ नये संस्थानों पर पड़ेगा, जो चालू सत्र में स्थायी शैक्षणिक परिसर पाने का सपना संजोये बैठे थे.
जिस देश में नॉलेज कमीशन कह चुका हो कि उच्च शिक्षा की जरूरतों के मद्देनजर कम-से-कम 1,500 विश्वविद्यालयों का निर्माण जरूरी है, वहां उच्च शिक्षा के मद में यह कटौती हतोत्साहित करनेवाली है.
इससे पहले सरकार स्वास्थ्य मद में मंजूर राशि में 20 प्रतिशत यानी 66 अरब रुपये की कटौती कर चुकी है. जानकार बताते हैं कि इस कटौती का असर टीबी और एड्स जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों के उपचार पर तो पड़ेगा ही, प्रस्तावित नेशनल हेल्थ एश्योरेंस मिशन की शुरुआत भी बाधित होगी. इस मिशन की घोषणा से एक उम्मीद जगी थी कि भारत सबको स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने की दिशा में बढ़ेगा, पर स्वास्थ्य मद में कटौती ने इस तकलीफदेह सच को लगभग नकार दिया है कि देश में सरकारी स्वास्थ्य-व्यवस्था अभावग्रस्त है और हर साल करीब 4 करोड़ लोग महंगे इलाज के कारण गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं.
उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य के मद में बजट कटौती से पहले कम-से-कम 11 राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र को पत्र लिख चुके थे कि मनरेगा और ग्रामीण सड़क योजना के मद में दी जानेवाली रकम कम न की जाये. उधर, वित्त मंत्रलय का तर्क है कि सामाजिक मद में की जा रही कटौती की वजह चालू खाते के घाटे का बढ़ना है.
लेकिन आंकड़े बताते हैं कि बीते वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा 21.8 अरब डॉलर था, जबकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मात्र 7.8 अरब डॉलर. रिजर्व बैंक भी बीते दिसंबर में कह चुका है कि चालू खाते के घाटे के मामले में हम ‘तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति’ में हैं. फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आयी गिरावट के कारण सरकार को इस मद में भी राजस्व का फायदा हो रहा है.
ऐसे में सामाजिक मद में होनेवाली कटौती केंद्र सरकार की प्राथमिकता का संकेत दे रही है. सरकार ढांचागत विकास में बड़ी पूंजी के निवेश को बढ़ावा दे रही है, जबकि मानव-संसाधन का विकास ही किसी देश की प्रगति का वास्तविक सूचक है.

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