अव्यवस्था, अराजकता, कुशासन झारखंड राज्य से नाभिनालबद्ध रहे हैं. जब से राज्य बना है, यही आलम है. इसी की एक बानगी दिखी रविवार को नयी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में. जिस वक्त नयी सरकार अस्तित्व में आ रही हो, उम्मीद की जाती है कि नौकरशाही चौकस रहेगी, पूरा सरकारी अमला मुस्तैद रहेगा, ताकि कहीं कोई गड़बड़ न हो और उसे नयी सरकार का कोपभाजन न बनना पड़े.
लेकिन, झारखंड की नौकरशाही अपनी पुरानी चाल में ही दिखी. जिसका नतीजा हुआ, शपथ ग्रहण समारोह में बदइंतजामी. आयोजन बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम में था, जो बहुत योजनाबद्ध ढंग से निर्मित है. इसके बावजूद राज्य के अफसरान यह इंतजाम नहीं कर पाये कि कौन किस गेट से प्रवेश करेगा और कहां बैठेगा.
इसके चलते अफरा-तफरी मच गयी. कई आइएएस अफसर आम लोगों की गैलरी में जा कर समारोह का हिस्सा बने, तो कई अफसर गेट पर भीड़ देख कर ही लौट गये. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को मीडिया गैलरी में बैठ कर कार्यक्रम देखना पड़ा. समारोह के बाद निकास द्वारों पर भगदड़ जैसी स्थिति बन गयी. धक्का-मुक्की में मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहन प्रेमवती देवी समेत कई लोगों को चोट लग गयी. यह बदइंतजामी सरकार के लिए पहले ही कौर में मक्खी आ जाने की तरह है.
इसे कतई हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. जिन अफसरान पर इस समारोह के इंतजाम की जिम्मेदारी थी,उनके खिलाफ कड़े कदम उठाये जाने चाहिए. इससे यह संदेश जायेगा कि नयी सरकारी गड़बड़ करनेवालों को छोड़ेगी नहीं. अगर उन्हें बख्श दिया गया, तो गलत नजीर स्थापित होगी. सरकारी अमले में ‘चलता है’ वाला नजरिया कायम रहेगा. पूरे राज्य में अभी अपराध चरम पर है. चोरी, डकैती, लूट, हत्या, बलात्कार, फिरौती, रंगदारी की दर्जनों वारदातें रोज सामने आ रही हैं. जब तक लोगों का आक्रोश नहीं फूटता, शासन-प्रशासन हरकत में नहीं आता. नयी सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में कई महत्वाकांक्षी फैसले लिये हैं, जो राज्य को एक उछाल दे सकते हैं. लेकिन यह तभी हो पायेगा जब नौकरशाही और सरकारी महकमों में लगी बरसों पुरानी जंग को छुड़ाने के लिए सख्ती दिखायी जाये.