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चले गये बॉलीवुड के प्राण

* खास पत्र * ।। अभिमन्यु पांडेय ।। (हीरापुर, धनबाद) असल जिंदगी में बहुत नेक, नरम– दिल इनसान, लेकिन परदे पर ऐसी खलनायकी कि पात्र जीवंत हो उठे, ऐसी बेमिसाल शख्सीयत के धनी थे प्राण साहब. बल्लीमारान की गलियों से बॉलीवुड तक के सफर में अपनी बेहतरीन अदायगी की छाप छोड़नेवाले इस मशहूर अभिनेता का […]

* खास पत्र *

।। अभिमन्यु पांडेय ।।

(हीरापुर, धनबाद)

असल जिंदगी में बहुत नेक, नरमदिल इनसान, लेकिन परदे पर ऐसी खलनायकी कि पात्र जीवंत हो उठे, ऐसी बेमिसाल शख्सीयत के धनी थे प्राण साहब. बल्लीमारान की गलियों से बॉलीवुड तक के सफर में अपनी बेहतरीन अदायगी की छाप छोड़नेवाले इस मशहूर अभिनेता का आज हमारे बीच होना फिल्म जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है. दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजे गये प्राण साहब ने अपनी बेहतरीन अदाकारी का देशदुनिया में लोहा मनवाया. शायद ही ऐसा कोई किरदार हो, जिसमें उन्होंने अपने अभिनय की छटा बिखेरी हो.

दर्शक उनके एकएक दृश्य के मुरीद थे. दर्शकों को इससे कोई मतलब नहीं था कि उनका किरदार क्या है. प्राण साहब का हर किरदार मुकम्मल होता था. वजह यह थी कि वे हर भूमिका को अपने पहले काम की तरह निभाते थे. लेकिन उन्हें विशेष पहचान खलनायकी से मिली, जिसने उन्हें अमर बना दिया. परदे पर बुरे आदमी का किरदार करते हुए प्राण आक्रामक, कमोबेश प्राणघातक लगते थे. परदे पर उनके चेहरे की एक कुटिल मुसकान, खास अंदाज में संवाद बोलने की कला दर्शकों के बीच खौफ का पर्याय थी. विलेन के तौर पर उनकी छवि लोगों के दिमाग में इस कदर हावी हो गयी थी कि लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना छोड़ दिया था.

छह दशकों के अपने फिल्मी कैरियर में करीब 400 फिल्मों में अभिनय करनेवाले प्राण साहब ने खलनायक के रूप में अपने सशक्त अभिनय से जहां दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी, वहीं बतौर अभिनेता उन्होंने काफी ख्याति अर्जित की. एक दौर ऐसा भी था जब प्राण साहब को फिल्म के नायक से अधिक पारिश्रमिक मिलने लगा था. ऐसे महान अभिनेता का रहना फिल्म जगत के एक अध्याय का अंत है.

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