10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बदलिए ‘हर मौसम आम’ की मानसिकता

।। सत्य प्रकाश चौधरी ।।(प्रभात खबर, रांची) आज रुसवा साहब पूरे रंग में हैं. मीडिया से वह खार खाये रहते हैं, सो आज भी उसी पर नजला गिरा रहे हैं. हालांकि, पप्पू पनवाड़ी और मेरे सिवा उनकी तकरीर सुननेवाला कोई नहीं है, पर वह अपनी रौ में बहे चले जा रहे हैं. कहते हैं, ‘‘टीवी […]

।। सत्य प्रकाश चौधरी ।।
(प्रभात खबर, रांची)

आज रुसवा साहब पूरे रंग में हैं. मीडिया से वह खार खाये रहते हैं, सो आज भी उसी पर नजला गिरा रहे हैं. हालांकि, पप्पू पनवाड़ी और मेरे सिवा उनकी तकरीर सुननेवाला कोई नहीं है, पर वह अपनी रौ में बहे चले जा रहे हैं. कहते हैं, ‘‘टीवी खोलिये या अखबार, दिमाग खराब हो जाता है. मानो अक्ल से दुश्मनी कर रखी हो. अरे अक्ल को जाने दीजिए, कॉमन सेन्स तक नहीं है इन नामाकूल अखबारनवीसों में.’’ मीडिया से रुसवा साहब की दुश्मनी से वाकिफ हूं, पर अपनी बिरादरी की बेइज्जती भला किसे बरदाश्त होती है. मैंने उन्हें टोका, माजरा क्या है, यह भी बताइएगा या फिर ऐसे ही मुंह से फेन गिराते रहियेगा?’’

मेरी बात ने आग में घी का काम किया. तिलमिलाते हुए उन्होंने जवाब दिया, ‘‘सब्जियों में लगी आग, प्याज निकाल रहा आंसू, आंखें दिखा रहा है लाल टमाटर, थाली से सब्जी गायबक्या है यह सब? जितनी मेहनत तुम लोग खबरों की हेडिंग लगाने में करते हो, अगर उसका सौवां हिस्सा भी दिमाग लगाने में करते, तो इस तरह की बेवकूफियों से बाज आते.

जरा अपने कॉमन सेन्स का इस्तेमाल करो. बारिश के मौसम में जब सब्जियां कम पैदा होती हैं, तो सस्ती कैसे मिलेंगी? याद करो अपने बचपन के दिन. बरीफुलौरी की सब्जी खाकर पूरा बरखा बीत जाता था. नहीं तो आलूप्याज या फिर सुखायी गोभी का सहारा रहता था. अरे बारिश में सब्जी मिल जा रही है, यही क्या कम है? और, हर सब्जी महंगी भी नहीं है. तरहतरह के साग बिल्कुल वाजिब भाव पर मिल रहे हैं. जेब और जिस्म, दोनों की सेहत के लिए बढ़िया. पर आजकल लोग निकम्मे हो गये हैं. साग को धोने, छांटने, काटने की जहमत उठाना नहीं चाहते. उन्हें तो टमाटर जैसी सब्जी ही चाहिए, जो चुटकियों में कड़ाही में डालने के लिए तैयार हो जाये. अब ऐसी कामचोरी पसंद है, तो जेब ढीली करनी ही पड़ेगी.’’

रुसवा साहब उंगली पर अटका चूना चाटने के लिए रुके, तो मैंने कहा, ‘‘भाई, एक तो हम लोग आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी खबरों को लहरा कर छापते हैं, ऊपर से आप हमें ही छील रहे हैं.’’ वह बोले,‘‘तुम लोग आम आदमी का भला नहीं कर रहे, बल्कि उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर रहे हो. उसे बाजार का खिलौना बना रहे हो. हर मौसम आम सिर्फ एक इश्तेहार नहीं, बल्कि इनसान का दिमाग बंद कर देने की साजिश है. बस पैसा फेंको और खाओपीयो. मत देखो कि अभी जाड़े का मौसम है या बरसात का. मत देखो कि अभी मटर की फसल का वक्त है या कलमी साग का. मत देखो कि अभी गायभैंस ब्याने का समय है या फिर उनके बकेन होने का. पहले लोग यह समझते थे और उसी हिसाब से खातेपीते थे. महंगाई का दर्द मैं समझता हूं, पर कुछ जिम्मेदार हम भी हैं.’’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें