10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड का नया अध्याय

।।अरविंद मोहन।।(वरिष्ठ पत्रकार)सरकार अभी बनी नहीं है. अभी उसकी आलोचना या तो ज्योतिषी कर सकता है या भाजपा जैसे विपक्ष का समर्थक, जिसकी अजरुन मुंडा सरकार को गिराने के बाद अब झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुआई में सरकार बनाने की तैयारी चल रही है. झामुमो के नेताओं की मानें तो पिछली सरकार गिरने की जवाबदेही […]

।।अरविंद मोहन।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
सरकार अभी बनी नहीं है. अभी उसकी आलोचना या तो ज्योतिषी कर सकता है या भाजपा जैसे विपक्ष का समर्थक, जिसकी अजरुन मुंडा सरकार को गिराने के बाद अब झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुआई में सरकार बनाने की तैयारी चल रही है. झामुमो के नेताओं की मानें तो पिछली सरकार गिरने की जवाबदेही भी भाजपा पर है, क्योंकि वह पहले से तय फामरूले के अनुसार सरकार का नेतृत्व झामुमो को देने को तैयार न थी. अगर सरकार छह महीना पहले बनी होती तो भाजपा को कांग्रेस पर और अधिक भरोसे से आरोप लगाने का अवसर मिलता. पर तब हालत यह थी कि कांग्रेस प्रमुख ने दिल्ली चक्कर लगा रहे झामुमो और खुद अपने दल के झारखंडी नेताओं से भी भेंट नहीं की.

जो खबरें राजनीतिक चर्चाओं के रूप में आ रही हैं, उनके अनुसार अब भी सोनियाजी ही सब अच्छाइयों का कारण हैं, पर अब वे भी सरकार बनाने पर राजी हुई हैं. उन्हें यदि मधु कोड़ा वाली कहानी न दोहराये जाने का भरोसा है, तो सरकार का बनना पक्का मानिये. वैसे उन्हें या कांग्रेस को कोड़ा प्रकरण में माफ करने का कोई आधार नहीं बनता है. पर सरकार बनने के ठीक पहले अगर उत्साह और खुशी नहीं लगती, तो इसका कारण अकेले कोड़ा प्रकरण नहीं है. झारखंड का जो हाल हो गया है, उसमें मधु कोड़ा हों या न हों, पर बेहिसाब लूट-खसोट न हो यह बहुत बड़ी बात होगी. ऐसे में मुख्य खिलाड़ियों में जो गंभीरता दिखनी चाहिए, उसका अभाव राज्य के मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व में दिखता है.

इस आनेवाली सरकार को जिस तरह से जोड़-तोड़ कर खड़ा किया जा रहा है, उसमें राज्य के लिए ज्यादा कुछ हो पाने की गुंजाइश कम ही है. असल मामला अगला लोकसभा चुनाव है और उसके नफा-नुकसान को ध्यान में रख कर ही कांग्रेस ने सरकार बनाने का फैसला किया है. यह गणित गुरुजी या झामुमो नेताओं के दिमाग में नहीं होगा, यह मानना गलत होगा, पर इतना तय है कि एक साथ सरकार में रहने या समर्थन की राजनीतिक कीमत को देख कर ही लालू प्रसाद के राजद और नीतीश कुमार के जदयू का रुख अलग-अलग होता लग रहा है. राजद के पांच विधायकों में से कुछ मंत्री बनेंगे, तो जदयू के दो विधायक बाहर से भी समर्थन नहीं देंगे.

कांग्रेस, झामुमो, राजद और अन्य सभी को सिर्फ अगला लोकसभा चुनाव ही दिखता हो, यह मानना भी गलत होगा. उन्हें झारखंड के खजाने भी दिख ही रहे होंगे. प्राकृतिक संसाधनों से भरा होकर भी अगर यह प्रांत बिहार से अलग होने के बाद बदहाल है, तो मुख्यत: नेताओं के हल्के और लोभी आचरण के चलते ही. कितने पूर्व मंत्री जेल में हैं और उनके कितने साथी भगोड़ा, इसका हिसाब मुश्किल है. यह तब है, जबकि पूरा मामला चारा कांड के समय से ही देश-दुनिया के मीडिया की नजर के सामने है. सत्ता-पैसों के सहारे फिर से राजनीतिक ताकत बढ़ाने का लोभ भी यहां की राजनीति की विशेषता बनी हुई है. जब से राज्य बना है तभी से यह संकट जारी है, इसमें किसका दोष है यह पहचानने की कोशिश भी नहीं हो रही है. ऐसे में कांग्रेस ने वैकल्पिक सरकार बनवाने में जल्दबाजी न करने का फैसला किया, तो इसे अच्छा ही मानना चाहिए. इसमें अगर किसी सचमुच की ऊंची मंशा की जगह कोड़ा शासन के समय मिली बदनामी वाला डर हो, तब भी शुभ ही मानना चाहिए. लोकतंत्र में लोकलाज का डर हो तो यह अच्छी बात ही है.

भाजपा की अजरुन मुंडा सरकार ने कोड़ा सरकार जैसी लूट भले न मचाई हो, (यह घोषणा करना भी खतरे से खाली नहीं है) पर उसने बहुत साफ-सुथरा और दूरदर्शितापूर्ण शासन दिया हो, यह दावा भी नहीं किया जा सकता. मुंडा सरकार क्यों गिरी, इस बहस को ज्यादा खींचने की जरूरत नहीं है. अगर सरकार बननेवाले दिनों को याद करें, तो साफ लगेगा कि झामुमो के पास तो कई विकल्प थे, पर भाजपा के पास विकल्प नहीं थे. भाजपा कांग्रेस को सरकार बनवाने के खेल से बाहर करने के नाम पर जल्दी में थी- उसके वही विवादास्पद सांसद और व्यवसायी दोस्त इसके सूत्रधार बने, जिनमें से एक पर गुरुजी के लिए अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगा. पार्टी अपनी सरकार को बचाने के सवाल पर उतनी सचेत नहीं थी, जितनी वह सरकार बनवाने के समय थी. सरकार की ‘उपलब्धियां’ गिनवाने में भी पूरी पार्टी एकजुट नहीं दिखती है. अब नयी सरकार के बनने से पूर्व ही उसके खिलाफ मोरचा खोल कर वह भी अगले चुनाव की राजनीति ही कर रही है, कोई सैद्घांतिक सवाल नहीं उठा रही.

जब हम झारखंड की राजनीति पर बात करें, तो निश्चित रूप से सरकार बनवाने-गिराने की चर्चा से ऊपर उठने का प्रयास भी करना चाहिए, क्योंकि बारह साल में आठ सरकारें बनवा-बिगाड़कर झारखंड ने यह खेल बहुत देख-सुन लिया है. झारखंड के साथ बने दोनों छोटे प्रदेशों की हालत भी कोई बहुत अच्छी नहीं है, पर कम समृद्घ प्राकृतिक संपदा के बावजूद अगर उन राज्यों ने झारखंड से बेहतर विकास किया है, तो वह सिर्फ स्थायी सरकार के चलते. ऐसी सरकार ज्यादा जवाबदेह भी होती है. यह सही है कि झारखंड की वर्तमान दुरावस्था के लिए उसके मौजूदा नेताओं (सभी दलों के) की भूमिका सबसे बड़ी है और थोड़े से अपवादों को छोड़ दें तो सबने लोगों का भरोसा तोड़ा है. पर कथित राष्ट्रीय दलों के नेताओं का खेल भी इसके लिए समान रूप से जिम्मेवार है. उनके लिए झारखंड चंदा या पैसा जुटाने वाला खान और सत्ता का सूत्रधार बनने का अवसर रहा है.

हम राजनेताओं को बहुत कोसते हैं, पर झारखंड की पूरी राजनीति और 12 साल की सभी सरकारों की दुर्गति करवाने में कॉरपोरेट हाउसों और पैसेवालों की भूमिका को भी नहीं भूलना चाहिए. हर सरकार के बनवाने-गिरवाने में ही नहीं, राज्यसभा से लेकर लोकसभा व विधानसभा तक के टिकट बंटवारे में उनकी जितनी और जैसी भूमिका होती आयी है, वह किसी से छिपी नहीं है. दुर्भाग्य से उनकी भूमिका बढ़ती ही गयी है. वे नेताओं और सरकारों को जेब में रख कर इस सोने की मुर्गी को लूटने में लगे हैं.

पर सिर्फ लूटनेवालों को ही दोष क्यों दें, जब लुटनेवाले बेहोश हैं. झारखंड की इस दुरावस्था का दोषी राज्य की जनता भी है, जो बार-बार गलत जनादेश देती रही है. असल में झारखंड में सिर्फ शासन, सरकार और राजनीतिक दल ही फेल नहीं हुए हैं, लोग भी फेल हुए हैं. अभी राज्य का समाज आदिवासी-गैरआदिवासी, अगड़ा-पिछड़ा, हिंदू-मुसलिम, ईसाई, बंगाली-बिहारी जैसे असंख्य विभाजनों वाला है- आदिवासी कबीलों का विभाजन तो है ही. पार्टियों के पास संगठन और विचारधारा तो नहीं ही बची है, ठोस सामाजिक समर्थक समूह भी नहीं है. जो कुछ विचार, संगठन था, बार-बार के चुनाव व सरकार बनाने-बिगाड़ने के खेल में वह भी चौपट हो गया है. पैसे से सांसद-विधायक खरीदनेवालों को विचार-संगठन और आधार वाले नेता पसंद नहीं आते. सो वे क्यों ढंग की राजनीति चलने देंगे. पर लोग, पार्टियां, नेता व अधिकारी भी इसी खेल में जुट जाएं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें