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राम यदि तारक हैं, तो मारक भी
त्रेतायुग में जन्मे राम ने आदर्श की ऐसी परिभाषा गढ़ी कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये. युग-युगों से वे धर्म विशेष के बजाय प्राणिमात्र के आराध्य और आदर्श हैं. उनका नाम ही प्रभावशाली है और उसके जाप से मोक्ष मिल जाता है. यहां तक कि उल्टा नाम जपने से भी जन्म कृतार्थ हो गया. यह इस […]
त्रेतायुग में जन्मे राम ने आदर्श की ऐसी परिभाषा गढ़ी कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये. युग-युगों से वे धर्म विशेष के बजाय प्राणिमात्र के आराध्य और आदर्श हैं. उनका नाम ही प्रभावशाली है और उसके जाप से मोक्ष मिल जाता है. यहां तक कि उल्टा नाम जपने से भी जन्म कृतार्थ हो गया. यह इस नाम के प्रभाव का ही नतीजा है कि कवियों ने इसे लूटने योग्य करार दिया है. किंतु वर्तमान समाज में यह नाम बदनाम हो रहा है.
हनुमान, विभीषण, वाल्मीकि, तुलसीदास और फिर गांधी जी तक ने इस नाम की महिमा और इसके गुणों का अख्यान किया, किंतु आसाराम, रामपाल और रामरहीम सिंह के दौर में पहुंचते ही यह नाम बदनाम होने लगता है. रामनामी चादर पापियों के पाप ढंकने और आस्तिकों की भावना के साथ खिलवाड़ करने के लिए बुनी गयी है. आज के समाज में कई लोगों ने पाप छुपाने और लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए इसे ओढ़ लिया है.
इस पावन चादर को ओढ़ कर वे सहज ही लोगों का विश्वास जीत कर भक्तों का रक्त पी रहे हैं. पाप अधिक समय तक छिपता नहीं है, इसलिए ऐसे लोगों के चेहरों का पर्दा भी अधिक समय तक टिक नहीं पा रहा है.
ऐसे जाली बाबाओं, संतों और बनावटी रामनाम-धारियों से हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है. हे आसारामो!, हे रामपालो! आपने कई वर्षो तक लोगों की भावनाओं और आस्थाओं के साथ खिलवाड़ किया, खुद को राम कह कर अमानवीय हकरतें कीं और लोगों को लूटा, इसका हिसाब हमारे देश की न्याय व्यवस्था आपसे तो ले ही लेगी, लेकिन इतना तो बता दें कि क्या आपको पता नहीं था कि राम तारक भी हैं और मारक भी.‘रामनाम को यूं क्यूं लूटा, लुट गये सारे भक्त/अंतकाल से पहले ही देखो, आया कैसा वक्त.’
मनोहर पांडेय ‘रुद्र’, रांची
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