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बदलती रणनीतियों के खतरे

।। अनंत विजय ।।(एसोसिएट एडिटर, आइबीएन-7)– मोदी 2014 का रण जीतना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी स्वीकार्यता के साथ-साथ भौगोलिक उपस्थिति भी बढ़ानी होगी. इसे ध्यान में रखते हुए मुसलमानों को लेकर पार्टी अपनी रणनीति बदल रही है. – लियो टॉलस्टॉय के मशहूर उपन्यास वॉर एंड पीस में एक बेहद दिलचस्प प्रसंग है. इसमें नेपोलियन […]

।। अनंत विजय ।।
(एसोसिएट एडिटर, आइबीएन-7)
– मोदी 2014 का रण जीतना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी स्वीकार्यता के साथ-साथ भौगोलिक उपस्थिति भी बढ़ानी होगी. इसे ध्यान में रखते हुए मुसलमानों को लेकर पार्टी अपनी रणनीति बदल रही है. –

लियो टॉलस्टॉय के मशहूर उपन्यास वॉर एंड पीस में एक बेहद दिलचस्प प्रसंग है. इसमें नेपोलियन और रूस की सेनाओं द्वारा युद्घ की रणनीति तय करने का वर्णन है. उसी प्रसंग में टॉलस्टॉय कहते हैं कि दोनों की सेना वही काम कर रही थी, जिससे उनका खुद का नुकसान हो रहा था, लेकिन दोनों को यह बात समझ में नहीं आ रही थी. नेपोलियन की रणनीति थी कि उसकी सेना सीधे मॉस्को पर कब्जा कर विजय पताका फहराये.

उधर रूस की सेना नेपोलियन को मॉस्को पर कब्जा करने से रोकने में जी-जान से जुटी थी. दोनों की रणनीति से दोनों का ही नुकसान हुआ था. अगर नेपोलियन रूस की परिधि के क्षेत्रों पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ता तो उसकी विजय का अर्थ होता और वह लंबे समय तक कायम रह सकता था. उसका नुकसान नहीं होता. लेकिन मॉस्को फतह के बाद से ही नेपोलियन के पतन की कहानी शुरू हो गयी.

जब उसकी सेना वहां से लौटने लगी तो रास्ते में रूस के मामूली किसानों ने उनका खात्मा कर दिया, क्योंकि नेपोलियन ने मॉस्को के अलावा कहीं ध्यान ही नहीं दिया था और उसकी सेना मॉस्को विजय के बाद आलसी हो गयी थी. उधर रूस की सेना यह आकलन कर पाने में नाकाम रही कि मॉस्को पर कब्जे से नेपोलियन का नुकसान होगा, लिहाजा उसने अपनी पूरी ताकत मॉस्को को बचाने में लगा दी थी.

नतीजा यह हुआ कि पूरी सेना तबाह हो गयी. कुछ इसी तरह की स्थिति इस वक्त देश की दोनों प्रमुख पार्टियों, कांग्रेस और भाजपा, की बन रही है. दोनों ऐसी राजनीतिक रणनीतियां बना रही हैं, जिनसे दोनों को ही नुकसान होने का खतरा है. कांग्रेस नरेंद्र मोदी को रोकने की रणनीति बना कर उसके ट्रैप में पड़ गयी है, जबकि भाजपा अब मुसलमानों को रिझाने की रणनीति बनाने में जुट कर अपनी असल ताकत को खोने का खतरा उठा रही है.

नरेंद्र मोदी द्वारा भाजपा की चुनावी कमान संभालने से देश की सियासत में जबरदस्त ध्रुवीकरण होना लगभग तय है. मोदी की छवि एक ऐसे कट्टर हिंदूवादी नेता की है, जो मुसलमानों से सम्मान की टोपी भी नहीं लेता है. इस ध्रुवीकरण का असर आगामी चुनावों पर साफ तौर पर दिख सकता है. इसे और मजबूती देगा मोदी पर 2002 के गुजरात दंगों का दाग. दंगों के 11 साल बाद भी मोदी ने एक बार भी इस पर अफसोस तक नहीं जताया है, माफी की बात तो दूर. मोदी शायद इसे ही अपनी ताकत समझते हैं, लेकिन अब वे गुजरात के बाहर की राजनीति करेंगे, तो यह उनकी कमजोरी बन सकती है. ऐसे में पार्टी के रणनीतिकार और खुद मोदी इस कमजोरी से निजात पाने की कोशिश में जुट गये हैं.

सबसे पहले भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों जयपुर में ‘अल्पसंख्यकों के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में परोक्ष रूप से मुसलमानों से गुजरात दंगों को भूल कर आगे बढ़ने की अपील की. राजनाथ सिंह ने इस मौके का इस्तेमाल मुसलमानों को रिझाने के लिए भी किया. उन्होंने साफ कहा कि मुल्क की तरक्की के लिए मुसलमानों का साथ चाहिए.

राजनाथ ने दावा किया कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है, वहां सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए है. आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनाथ सिंह ने मुसलमानों को भाजपा पर भरोसा करने का दावत दिया और जोर देकर कहा कि अटल जी की सरकार के दौरान मुसलमानों के विकास के जितने काम किये गये थे, उतने कांग्रेस के साठ सालों के शासन के दौरान नहीं हुए.

राजनाथ सिंह के बयान के बाद भाजपा की चुनाव अभियान समिति की कमान संभाल रहे नरेंद्र मोदी ने भी एक सभा में कुछ ऐसा ही संकेत दिया. मोदी ने मुसलिम तुष्टीकरण की नीति पर प्रहार करते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला, लेकिन साथ ही उन्होंने दिलों को जोड़ने की बात भी कही. मोदी के इस भाषण में अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि को बदलने की बेचैनी साफ दिख रही थी.

देश के मुसलमानों को साफ संकेत दिया जा रहा था कि मोदी बदल रहे हैं. दरअसल मोदी अब अटल बिहारी वाजपेयी जैसा उदारवादी मुखौटा लगाना चाहते हैं. मोदी को लगने लगा है कि मुसलिम विरोध की राजनीति लंबे समय तक नहीं चल सकती है. इसलिए चुनाव की कमान संभालने के बाद से ही उन्होंने मुसलमानों को साथ लाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.

नरेंद्र मोदी के खास सिपहसालार और पार्टी के महासचिव अमित शाह ने उत्तर प्रदेश का प्रभार संभालते ही अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की बैठक की और मुसलमानों को पार्टी के पाले में लाने की रणनीति पर मंथन किया. अमित ने प्रकोष्ठ के नेताओं से अपने समुदाय में मोदी को लेकर जारी दुष्प्रचार का जोरदार प्रतिकार करने का हुक्म दिया.

एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में तकरीबन 19 फीसदी मुसलमान हैं, जो लगभग दो दर्जन लोकसभा सीटों का भविष्य तय करते हैं. मोदी और उनके कारिंदे अच्छी तरह समझते हैं कि उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा सीटों का फायदा मिल सकता है. इसलिए मुसलमानों को रिझाने की रणनीति पर जोरशोर से काम शुरू हो गया है.

अब भाजपा ने मुसलमानों को लेकर एक ‘विजन डॉक्यूमेंट’ बनाने का भी फैसला किया है. इसके लिए पार्टी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी की अध्यक्षता में बकायदा एक कमेटी बनायी गयी है. माना जा रहा है कि यह पहल नरेंद्र मोदी के आशीर्वाद के बाद ही शुरू हुई है. इस विजन डॉक्यूमेंट में मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन की वजहों और उसे दूर करने के उपायों पर विचार किया जाना है.

भाजपा इसको सभी राज्य मुख्यालयों में गाजे बाजे के साथ पेश करने की तैयारी में है. मंशा यह है कि अल्पसंख्यकों के मन में मोदी को लेकर पल रहे संशय को दूर किया जाये.

दरअसल, मोदी की छवि को लेकर एनडीए के सहयोगी भी खुद को असहज महसूस करने लगे हैं. नीतीश कुमार तो मोदी की छवि को लेकर ही एनडीए से बाहर हो गये. सहयोगियों के छिटकने के बाद से पार्टी की देश में भौगोलिक उपस्थिति भी कांग्रेस की तुलना में काफी कम है. लोकसभा सीटों के आधार पर देखें, तो आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओड़िशा, केरल, हरियाणा की कुल 174 सीटों में से बीजेपी की उपस्थिति शून्य है.

बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा और ऊपर जाता है. अगर मोदी 2014 का रण जीतना चाहते हैं, तो उन्हें अपनी स्वीकार्यता के साथ-साथ भौगोलिक उपस्थिति भी बढ़ानी होगी. इसी के लिए नये साथियों की तलाश में पार्टी मुसलमानों को लेकर अपनी रणनीति बदल रही है. लेकिन भाजपा जिस विचारधारा में दीक्षित है, वह सोच मुसलमानों को लेकर बिल्कुल साफ है.

संघ की बुनियाद ही मुसलिम विरोध पर टिकी है. ऐसे में भाजपा की नयी चाल पर मुसलमान कितना भरोसा कर पाएंगे यह तो तय नहीं है, पर मुसलमानों को रिझाने की ज्यादा कोशिशें पार्टी को कट्टर हिंदू वोटों से अवश्य दूर ले जा सकती है.

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