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तो क्या अपराधियों को छूट दे दें!
दिनांक 28 अक्तूबर, 2014 के प्रभात खबर में छपा आकार पटेल का लेख ‘असभ्य समाज का चिह्न् है मृत्युदंड’ पढ़ा. इसमें लेखक ने मृत्युदंड को असभ्य मानते हुए समाप्त करने की वकालत की है. उन्हें इस बात पर भी प्रकाश डालना चाहिए था कि सभ्य समाज के लक्षण क्या हैं? क्या बेसहारा बच्चों का यौन […]
दिनांक 28 अक्तूबर, 2014 के प्रभात खबर में छपा आकार पटेल का लेख ‘असभ्य समाज का चिह्न् है मृत्युदंड’ पढ़ा. इसमें लेखक ने मृत्युदंड को असभ्य मानते हुए समाप्त करने की वकालत की है. उन्हें इस बात पर भी प्रकाश डालना चाहिए था कि सभ्य समाज के लक्षण क्या हैं? क्या बेसहारा बच्चों का यौन शोषण करना और फिर उनके टुकड़े-टुकड़े करके खा जाना सभ्य समाज के लक्षणों में शामिल है?
क्या मानव तस्करी या सामूहिक बलात्कार करके लड़कियों को मार देना सभ्य समाज की पहचान है? पटेल ने निठारी कांड के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को मृत्युदंड देने के बजाय मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का सुझाव दिया है. अगर उनके सुझाव को मान लिया जाए, तो अपराधी को फिर खुली छूट दे देनी चाहिए! भारत में मृत्युदंड का प्रावधान तब से है, जिस समय यहां राज्य की स्थापना हुई है. इसे राजदंड भी कहा जाता है.
भगवान ठाकुर, तेनुघाट
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