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सैनिक सुविधाएं बेहतर हों

प्रकाश सिंह पूर्व महानिदेशक, सीमा सुरक्षा बल delhi@prabhatkhabar.in कुछ दिन पहले सरकार ने संसद को जानकारी दी है कि 2011 से 2018 के बीच भारतीय सशस्त्र बलों (थल सेना, वायु सेना व नौसेना) में 891 सैनिकों ने आत्महत्या की थी. इनमें सबसे अधिक 707 थल सेना के, 148 वायु सेना के और 36 नौसेना के […]

प्रकाश सिंह
पूर्व महानिदेशक, सीमा सुरक्षा बल
delhi@prabhatkhabar.in
कुछ दिन पहले सरकार ने संसद को जानकारी दी है कि 2011 से 2018 के बीच भारतीय सशस्त्र बलों (थल सेना, वायु सेना व नौसेना) में 891 सैनिकों ने आत्महत्या की थी. इनमें सबसे अधिक 707 थल सेना के, 148 वायु सेना के और 36 नौसेना के सैनिक थे. हालांकि यह तथ्य सेना से संबंधित हैं, लेकिन ऐसी दुखद घटनाएं केंद्रीय सशस्त्र बलों में भी होती हैं.
साल 2012 से 2015 के बीच केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में ऐसी 149 मौतें हुई थीं और इसी अवधि में सीमा सुरक्षा बल के 134 जवानों ने आत्महत्या कर ली थी. केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में 56 तथा अन्य बलों में 55 कर्मियों ने अपनी जान ले ली थी. कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर एवं देश के अनेक इलाकों में आंतरिक सुरक्षा की समस्याएं इतनी अधिक गहन हैं कि वहां पूरे साल सुरक्षा बलों को तैनात रखना पड़ता है.
ऐसी टुकड़ियों के पीछे कोई आरक्षित दस्ते की उपलब्धता नहीं रहती है. प्रशिक्षण के लिए जो वार्षिक समय निर्धारित है, उसका भी उपयोग नहीं हो पाता है क्योंकि क्षमता का 95 से 98 फीसदी हिस्से को तैनात करना पड़ता है. सुरक्षा बलों में हर कर्मी के लिए सालभर में एक महीना प्रशिक्षण के लिए निर्धारित है. इस अवधि में कुछ आराम भी मिल जाता है और क्षमता भी बेहतर होती है, पर यह भी नहीं हो पा रहा है.
इन कारणों से सुरक्षाकर्मियों में तनाव का बढ़ना स्वाभाविक है. तैनाती की स्थिति में अवकाश मिलने में भी दिक्कत आती है. यह भी है कि अगर जवानों को छुट्टी दी गयी, तो जरूरत के हिसाब से तैनाती करने में समस्या आती है. ऐसे में आपस में ही गोलीबारी करने या आत्महत्या जैसी घटनाएं होती हैं. तनाव अवसाद का रूप ले लेता है, बेचैनी व चिंता बढ़ने लगती है. अब तो मोबाइल फोन भी आ गया है, जो हमेशा जवान के पास रहता है.
इससे भी तनाव बढ़ रहा है. पहले ऐसा होता था कि सप्ताह में एक चिट्ठी आती थी, जिससे यह मालूम होता था कि घर में क्या हो रहा है. लेकिन अब आप कार्रवाई में लगे हुए हैं, तब भी आपको मोबाइल फोन के माध्यम से मिनट-मिनट की खबर मिलती है कि पत्नी या बच्चा बीमार है या जमीन को लेकर कोई विवाद है या परिवार में कुछ हो रहा है और आपसे छुट्टी लेकर घर आने को कहा जाता है. तो तकनीक के विस्तार ने भी जवानों में तनाव और चिंता बढ़ाने में योगदान दिया है.
तो, मैं समझता हूं कि आत्महत्या या आपसी गोलीबारी की मुख्य वजह नियमित अवकाश का न मिलना है. पहले के अधिकारी अपने मातहतों से संपर्क रखते थे और माई-बाप जैसा संबंध हुआ करता था. यह भी अब धीरे-धीरे कम हो रहा है. नजदीकी संबंध रहने से जवानों की समस्या को समझने और उनके समाधान में मदद मिलती है. इससे परेशान सैनिकों को किसी सुख-दुख में समझाने-बुझाने का मौका भी बना रहता है. मुझे लगता है कि जवानों और अधिकारियों के बीच फासला बढ़ गया है. इस कारण भी तनाव और अवसाद में बढ़ोतरी होती है.
इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार की ओर से बहुत सारे उपाय किये जा रहे हैं. योग के प्रावधान को बढ़ावा दिया जा रहा है और काउंसेलिंग की कोशिशें हो रही हैं. इनसे संबंधित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा रही है. छुट्टी देने जैसे मामलों और अन्य कल्याणकारी उपायों पर भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है तथा इन्हें बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं. लेकिन यह एक बड़ी चुनौती है. अगर यह नियंत्रित भी हो जाये, तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी, पर इसे पूरी तरह से समाप्त कर पाना संभव नहीं है.
सरकार और सुरक्षाबलों द्वारा किये जा रहे प्रयासों को बढ़ावा देने की जरूरत है तथा इन्हें व्यापक स्तर पर लागू करने व प्रभावी बनाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. मेरी राय में जो भी कल्याणकारी योजनाएं व पहलें हैं, उनमें बेहतरी की दरकार है. तनाव कम करने और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर ठीक समय पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है.
जैसा कि मैंने पहले कहा है कि छुट्टी का न मिलना और तैनाती में अंतराल का न होना अवसाद, तनाव, आत्महत्या या साथियों व अधिकारियों पर गोली चलाने जैसी स्थितियों का मुख्य कारण है, सो नियमित व पर्याप्त अवकाश की व्यवस्था की जानी चाहिए. सालभर में एक-दो महीने की छुट्टी तो जरूर दी जानी चाहिए ताकि जवान अपने घर जा सकें और परिवार के साथ ठीक-ठाक समय व्यतीत कर सकें. उनके घर-परिवार से जुड़ी समस्याओं को देखने का उत्तरदायित्व कल्याण बोर्ड जैसे विभागों का है.
अगर इनके अधिकारी सैनिकों के घर न भी जा सकें, तो कम-से-कम स्थानीय पुलिस के माध्यम से समस्याओं की जानकारी जुटाकर सहानुभूति उनके निराकरण का प्रयास किया जाना चाहिए. हमें यह समझना चाहिए कि हौसले और क्षमता से लैस होने के बावजूद हमारे सैनिक भी मनुष्य हैं, इस नाते उनकी जरूरतें भी हैं और उनकी कमजोरियां भी हैं.
इसी नजरिये से उनकी परेशानियों और जरूरतों को समझा जाना चाहिए. भोजन, कपड़े, आवास, परिवार के लिए आवास, बच्चों की शिक्षा और अवकाश में उदारता की सरकारी कोशिश सराहनीय है तथा ऐसी कोशिश की जानी चाहिए कि अधिक-से-अधिक सुरक्षाकर्मियों को बेहतर सुविधाओं का लाभ मिल सके. ये प्रयास बहुत हद तक आत्महत्या और अवसाद को रोकने में मददगार हो सकते हैं.

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